स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और सदानंद होंगे स्व. स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि

  
Last Updated:  September 13, 2022 " 12:39 pm"

नरसिंहपुर : द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का उत्तराधिकारी कौन होगा इसका फैसला हो गया है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ और स्वामी सदानंद सरस्वती जी को द्वारका शारदा पीठ का प्रमुख घोषित किया गया है। इन दोनों के नाम की घोषणा शंकरचार्य की पार्थिव देह के सामने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निजी सचिव स्वामी सुबुधानंद सरस्वती ने की। बता दें कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अपने दो शिष्यों को दंडी स्वामी परंपरा के अनुरूप शिक्षा दी थी, जिसमें पहले और बड़े शिष्य स्वामी सदानंद सरस्वती और दूसरे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हैं।यह दोनों ही उनके उत्तराधिकारी की रेस में शामिल थे। बड़े शिष्य के रुप में स्वामी सदानंद सरस्वती को उन्होंने कई अहम कर्तव्य सौंपे और उन्हें शास्त्र सम्मत किस्म के धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़ा। स्वामी सदानंद सरस्वती को जीवित रहते शंकराचार्य ने द्वारका शारदा पीठ के प्रमुख के तौर पर नियुक्त किया। यही नहीं वहां की जिम्मेदारियां भी सौंपी थी।

कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद..?


अविमुक्तेश्वरानंद: अविमुक्तेश्वरानंदसरस्वती महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ। पूर्व नाम उमाकांत पांडे था। छात्र जीवन में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रनेता भी रहे। वह युवावस्था में शंकराचार्य आश्रम में आए। ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप हो गया। बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नाम से जाना जाने लगा। वह उत्तराखंड बद्रिकाश्रम में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में ज्योतिषपीठ का कार्य संभाल रहे हैं। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती काशी में शंकराचार्य के मठ और आश्रमों की देखरेख के साथ उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। श्रीविद्या मठ में वो रहते हैं और इसके साथ ही ज्योतिर्मठ बद्रिका आश्रम भी उन्ही के हवाले है। वहां का संचालन और परंपरा को आगे ले जाने की जिम्मेदारी अविमुक्तेश्वरानंद के कंधों पर है।

कौन हैं स्वामी सदानंद सरस्वती..? 

स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज का जन्म नरसिंहपुर के बरगी नामक ग्राम में हुआ था। पूर्व नाम रमेश अवस्थी था। वह 18 वर्ष की आयु में शंकराचार्य आश्रम खिंचे चले आए। ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी सदानंद हो गया। बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी सदानंद के नाम से जाना जाने लगा। सदानंद गुजरात में द्वारका शारदापीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में कार्य संभाल रहे हैं।

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