कीर्ति राणा इंदौर : कैंसर को लाइलाज मानकर हताश हो जाने वाले इंदौर सहित देश के हजारों मरीजों में इस बीमारी से लड़ने और हराने का जुनून पैदा करने वाले कैंसर फाइटर विवेक हिरदे देश के संभवत: ऐसे लेखक भी हैं जो इस बीमारी को लेकर लगातार तीन किताबें लिख चुके हैं।ये सभी किताबें हिंदी में लिखने का उद्देश्य यह भी रहा कि कैंसर संबंधी जानकारी व अधिकांश साहित्य कुछ दशक पहले तक अंग्रेजी में ही अधिक उपलब्ध था।उनकी लिखी इन किताबों से मरीजों को इस बीमारी से कैसे मुकाबला करे, यह मार्गदर्शन भी मिल रहा है।अभी जो तीसरी किताब ‘एक और प्रहार’ लिखी है उसका लोकार्पण हाल ही में ख्यात गीतकार स्वानंद किरकिरे ने किया है।
स्थानीय रजिस्ट्रार कार्यालय में उप पंजीयक विवेक हिरदे कैसे कैंसर के शिकार हुए, कैसे फाइट की यह दास्तां भी जितनी रोचक है उतनी ही प्रेरक भी। करीब 28 साल पहले उन्हें गला बैठने की शिकायत हुई। पहले मानते रहे तला-गला खाने से आवाज बैठ रही होगी। यह शिकायत निरंतर बनी रहने पर जांच कराई तो डॉक्टरों ने स्वर यंत्र में प्राब्लम और एहतियात के लिए किसी कैंसर विशेषज्ञ से जांच की सलाह दी। उन्होंने डॉ श्रीकांत पाठक से संपर्क किया, परीक्षण में यह स्पष्ट होने पर कि कैंसर के लक्षण हैं डॉ पाठक ने उन्हें सतर्क किया कि ऑपरेशन में जितना विलंब होगा यह रोग उतना ही फैलता जाएगा।
अंतत: 3 अगस्त 93 को चोईथराम अस्पताल में डॉ पाठक ने ऑपरेशन किया।ऑपरेशन पश्चात कैंसर कोशिकाएं फिर से न फैलें इसके लिए उन्हें रेडिएशन से ही नष्ट किया जा सकता था। रेडिएशन की बेहतरतम सुविधाएं तब इंदौर में न होने से कुछ महीनों के लिए विवेक और पत्नी सुनीता टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल मुंबई गए।करीब दो महीने वहां रेडिएशन (सिकाई) के लिए रुकना पड़ा। खाली समय में दोनों इस बीमारी को लेकर अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए गूगल पर सर्च करते थे लेकिन तब कैंसर संबंधी अधिकांश जानकारी अंग्रेजी में उपलब्ध थी।जबकि कैंसर के मरीज महानगर से लेकर दूरस्थ गांवों तक में हैं।पत्नी सुनीता की सलाह पर विवेक हिरदे ने तय किया कि कैंसर संबंधी जानकारी हिंदी में भी उपलब्ध होना चाहिए।पहली किताब लिखी ‘प्रहार’ इस किताब में उनके अनुभव तो थे ही, कैंसर विशेषज्ञ डॉ दिग्पाल धारकर, डॉ श्रीकांत पाठक आदि के विचार भी थे। इस किताब का लोकार्पण (स्व) बाबा आमटे ने किया था।इसमें कैंसर को लेकर जागरुकता, काम करने वाली संस्थाओं की जानकारी, कैसे लड़े, आत्मबल की मजबूती आदि पर फोकस था।तब से अब तक इंदौर के 950 और देश के विभिन्न क्षेत्रों के 5200 कैंसर मरीज उनके कैंसर फाइटर क्लब से जुड़ चुके हैं।
इसके बाद 2001 में इसी विषय पर दूसरी किताब ‘अलविदा कैंसर’ लिखी। इस किताब को तत्कालीन सांसद सुमित्रा ताई के पीए आशीष तांबे के सहयोग से तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ कलाम को भिजवाया। कैंसर होने पर कैसे हराएं, उपचार के नवाचार, किमोथैरेपी, लाइफ स्टाइल कैसी रखें, हताशा को हावी न होने दे, खुश कैसे रहे, परिवार के बाकी सदस्यों का सहयोग आदि मुद्दे इस किताब में शामिल किए थे।
ऑपरेशन के बाद बस आवाज में फर्क आया लेकिन बाकी सब ठीकठाक चल रहा था कि 2012 में फिर वोकल कॉड के पास थायराइड की गठान उभर आई।घर में बेटी (पूजा) की शादी की तैयारी चल रही थी और तैयारियों में व्यस्त पिता की आवाज गुम होती जा रही थी।बेटी की बिदाई के वक्त वो कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं थे लेकिन आंखों से बहते आंसूओं की भाषा बेटी व अन्य परिजन समझ रहे थे।बाद में जब इस गठान की बायप्सी की तो पता चला वह कैंसर में तब्दील हो चुकी है, गठान से मुक्ति के लिए फिर वही ऑपरेशन वाली प्रक्रिया।
कैंसर ने इनका पीछा नहीं छोड़ा तो इन्होंने भी कैंसर पर किताब लिखना नहीं छोड़ा।अब तीसरी किताब लिख डाली है ‘एक और प्रहार’। मुंबई में कोरोना वाली सख्ती के चलते विवेक तो जा नहीं सके लेकिन अपनी किताब भेज दी थी जिसका लोकार्पण करते हुए स्वानंद किरकिरे ने उनकी लिखी कहानी को प्रेरणादायी बताया है। यह भी कहा है कि मानवीय इच्छा शक्ति और आत्मबल के समक्ष कैंसर अत्यंत बौना है।
कैंसर मरीजों को अपना उदाहरण देकर रोग से लड़ने का हौंसला बढ़ाते रहते हैं।
स्थानीय पंजीयन कार्यालय में उप पंजीयक विवेक हिरदे शहर और देश के हजारों कैंसर मरीजों के हीरो बने हुए हैं।वे इन मरीजों-परिजनों की काउंसलिंग करने के दौरान यह कहने से नहीं चूकते कि कैंसर और ऑपरेशन के बाद जब मैं 28 साल से सरकारी नौकरी करते हुए सामान्य जीवन जी सकता हूं तो आप क्यों निराश होते हैं।कैंसर फाइटर हिरदे की इस जीवटता की पंजीयन स्टॉफ, डीआईजी, रजिस्ट्रार बीके मोरे से लेकर महानिरीक्षक पंजीयन तक सराहना करते रहते हैं।