हमारी संस्कृति ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा पर केंद्रित है : शास्त्री

  
Last Updated:  June 2, 2024 " 03:55 pm"

रतलाम : विश्व हिन्दू परिषद् के शिक्षा वर्ग में पिछली 25 मई से शिक्षा ले रहे 100 से अधिक कार्यकर्ताओं को विभिन्न विषयों पर मार्गदर्शन दिया जा रहा है।इसी कड़ी में ‘कुटुम्बप्रबोधन’ विषय पर संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रान्त संघचालक प्रकाश शास्त्री ने बताया कि हमारी पारिवारिक व्यवस्था कैसी थी और हम विदेशी संस्कृति को अपना कर अपने परिवार को कैसे नष्ट कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी हिन्दू कुटुम्ब संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा समाहित है।

प्रकाश शास्त्री ने कहा कि हम जब भी हमारे परिवार की बात करते है, तब सारे पारिवारिक रिश्तों की बात करते हैं। माता पिता से प्रारम्भ रिश्ते नाना – नानी, दादा- दादी तक ही नहीं रुके। अनेक रिश्ते हमें हिन्दू कुटुम्ब में मिलेंगे।

उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है।

प्रकाश शास्त्री ने कहा कि आज समाज भ्रष्ट होता जा रहा है। भ्रष्टाचार छोटी इकाई में आ गया है, जिससे वह समाज में दिखाई देने लगा है, इसलिए छोटी इकाई सही हो जाएगी तो बड़ी इकाई स्वतः ही दुरूस्त हो जाएगी। पश्चिमी देशों में समाज की सबसे छोटी इकाई व्यक्ति है, व्यक्ति स्वयं के बारे में सोचता है वह समाज के बारे में नहीं सोचता, जिसके कारण देखने मे आता है व्यक्ति में कुरीति आने के कारण समाज में कुरीतियाँ आ जाती हैं।

हमारी संस्कृति में गाय माता है, धरती भी माँ है, नदिया भी माँ है, पर्वत, वृक्ष भी पूजनीय हैं, इस प्रकार सभी हमारे परिवार संस्कृति का हिस्सा है। हमारी संस्कृति में “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया” अर्थात सभी सुखी हों सभी निरोगी हों का मंत्र दिया गया है। उन्होंने कहा कि यहां जन्म से मृत्यु तक 16 संस्कारों का वर्णन किया गया है सभी संस्कार जीवन में महत्चपूर्ण और वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है। हमारी संस्कृति में सभी को समान माना गया है।

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