होलिका दहन की इजाजत मिलने से मनमानी करने वालों को मिली नसीहत

  
Last Updated:  March 28, 2021 " 05:38 pm"

इंदौर : बीजेपी में दो ऐसे नेता हैं जो हर बात को अपने तरीके से चलाना चाहते हैं। चाहे उनसे जुड़ा कोई मामला हो या न हो। एक तो वो जिनपर ‘बिल्ली के भाग से छींका टूटा’ वाली कहावत सटीक बैठती है। जो केवल भाग्य के सहारे इंदौर से दिल्ली का सफर तय कर चुके हैं और दूसरे वो जो कांग्रेस से आयातित हैं। दोनों को ही ये गुमान हो गया है कि मां अहिल्या के इस शहर को वे जैसे चाहे हांक सकते हैं। प्रदेश के मुखिया का वरदहस्त उनके सिर पर है। खासकर भाग्यवीर को तो ऐसा लगता है मानो शहर के ‘ ‘चौकीदार’ वे ही हैं। हर बात वे ही तय कर लेते हैं और जनता पर थोप देते हैं। अधिकारी भी भाग्यवीर को सीएम का खास समझ कर उन्हीं की बातों पर अमल करते हैं। उन्हें इसका आभास ही नहीं है कि भाग्यवीर के चक्कर में वे उन जमीनी नेताओं की अनदेखी कर रहे हैं जिन्होंने बीजेपी को फर्श से शीर्ष तक पहुंचाया है। किसी ने बीजेपी के संगठन को मजबूत बनाया है तो कोई ऐसे राज्यों में बीजेपी को स्थापित कर सत्ता के गलियारों तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभा रहा है, जहां बीजेपी का कोई नामलेवा नही होता था। जाने- अनजाने में अधिकारी मोहरे के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं।उन्हें ये बात समझनी चाहिए कि असहमति के स्वरों को भी उचित सम्मान दिए जाने की जरूरत है।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है। पिछले साल जैसे हालात फिर से बन रहे हैं। इसे देखते हुए कड़े उपाय किए जाने चाहिए।लेकिन उसके चक्कर में भाग्यवीर जैसे लोग मनमाने निर्णय लेकर जनता पर थोप दें, ये भी उचित नहीं है। होलिका दहन पर ही रोक लगा देना ऐसा ही तुगलकी निर्णय था। सभी को पता है कि होली एक बड़ा पर्व है। होलिका दहन और पूजन की परंपरा सैकड़ों बरसों से चली आ रही है। सरकारी होली का भी अपना एक इतिहास है। उससे शहर की पहचान जुड़ी हुई है। दूसरे जहां होली जलती है, वहां के आसपास का क्षेत्र कीटाणु मुक्त हो जाता हैं, ये वैज्ञानिक तथ्य है। ऐसे में भाग्यवीर और आयातित नेता के कहने पर होलिका दहन पर ही रोक लगा देना समझ से परे था। इस तरह के निर्णय लेकर क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटी, क्राइसिस मैनेज करने की बजाय क्राइसिस क्रिएट करने वाली कमेटी बन गई।
जमाने भर में किरकिरी करवाने के बाद जिन शर्तों के साथ होलिका दहन की अनुमति दी गई, दहन पर रोक लगाने की बजाए यही फैसला उस समय लेकर लागू किया जाता तो कोई विवाद ही खड़ा नहीं होता।
जहां तक सीएम का सवाल है, उन्होंने बड़ी चतुराई के साथ गेंद स्थानीय प्रशासन के पाले में डाल दी। ऐसे में वे चेहरे बेनकाब हो गए जो सीएम की आड़ लेकर मनमाने निर्णय थोप रहे थे।
बहरहाल, इस समूचे घटनाक्रम से भाग्यवीर और आयातित नेता को ये बात समझ में आ जाना चाहिए कि उनका हर निर्णय जनता पर थोपा नहीं जा सकता। निर्णय सामूहिक आधार पर ही होने चाहिए और उन लोगों की सलाह को भी पूरी तवज्जो मिलनी चाहिए जो शहर की नब्ज को जानते हैं।
दरअसल, लोकतंत्र में जनता को भरोसे में लेकर ही किसी जंग को जीता जा सकता है। जनता साथ है तो कोरोना के खिलाफ यह जंग हम अवश्य जीतेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं है।

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