*कीर्ति सिंह*
वो आ गया, अपनी बांसुरी से सबके मन पर छा गया, उसके मुंह पर लगा माखन, गोपियों के मन को भा गया।
तेरे नटखट नैनों से नजर नहीं हटती कान्हा, तू अपने नैनों से सबको बहका गया।
तेरे दरस को बैचेन हैं गोपियाँ जमना के तट पर, और आकर तू धीरे से उनकी मटकियां चटका गया।
तेरी अठखेलियों में दिन कब गुजर जाता है पता नहीं कान्हा। तू हर परेशानी में सबको हंसना सीखा गया।
(कवयित्री कीर्ति सिंह इंदौर की जानी- मानी न्यूज एंकर हैं।)
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