इंदौर : लंबे समय से चला आ रहा मप्र के धार जिले में स्थित भोजशाला का विवाद भी कोर्ट के दरवाजे पर पहुंच गया है। मप्र हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने इस सिलसिले में दायर याचिका को स्वीकार कर संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए हैं।
भोजशाला सरस्वती मंदिर है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि भोजशाला सरस्वती मंदिर है, वहां नमाज पढ़ने पर रोक लगाई जानी चाहिए। हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने याचिका स्वीकार कर आठ लोगों को नोटिस जारी किया है। इसमें केंद्र सरकार भी शामिल है।
फिर से स्थापित हो सरस्वती प्रतिमा।
दरअसल, धार स्थित भोजशाला का विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने याचिका दायर कर मांग की है कि भोजशाला में सरस्वती प्रतिमा फिर से स्थापित की जाए। साथ ही पूरे भोजशाला की कलर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की जाए। याचिका दायर करने वाले वकील हरिशंकर जैन ने बताया कि राजा भोज ने सरस्वती सदन का निर्माण कराया था। उस समय यह शिक्षा का बड़ा केंद्र हुआ करता था। बाद में यहां मुस्लिम समाज के लोगों को नमाज के लिए अनुमति दी गई थी क्योंकि यह इमारत बेकार पड़ी थी। इसी परिसर में मुस्लिम धर्म गुरु कमाल मौलाना की दरगाह है। इसी वजह से मुस्लिम समाज यहां नमाज अदा करता हैं। इसके बाद मुस्लिम संगठन यह दावा करने लगा कि यह कमाल मौलाना की मस्जिद है। अब इन्हीं दावों का खारिज करने के लिए हिंदू संगठनों ने इंदौर हाईकोर्ट में याचिका लगाई है।
हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने याचिका स्वीकार कर लिया है। इसके बाद कोर्ट ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, एमपी पुरातत्व विभाग, धार कलेक्टर, एसपी, मौलाना कमाल वेलफेयर सोसाइटी और भोजशाला समिति को नोटिस जारी किया है।
राजा भोज ने स्थापित की थी
भोजशाला।
धार की यह ऐतिहासिक भोजशाला, राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन है। परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईस्वी तक शासन किया था। 1034 में उन्होंने सरस्वती सदन की स्थापना की थी। यह एक महाविद्यालय था जो बाद में भोजशाला के नाम से मशहूर हुआ। राजा भोज के शासनकाल में ही यहां मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इतिहासकारों के मुताबिक साल 1875 में खुदाई के दौरान यह प्रतिमा यहां मिली थी। 1880 में अंग्रेजों का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इसे लेकर इंग्लैंड चला गया था। यह वर्तमान में लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित भी है।
विवाद की शुरुआत 1902 में हुई जब धार के तत्कालीन शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुद देखे। इस आधार पर उन्होंने इसे भोजशाला बताया। था। 1909 में धार रियासत ने भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया था। इसके बाद यह पुरातत्व विभाग के अधीन आ गया।