इंदौर : देश की सांस्कृतिक विरासत को संभालने का दायित्व हो या बच्चों के व्यक्तित्व गढ्रने की जिम्मेदारी हो, मां हर दायित्व को शिद्धत के साथ निभाती है। दुनिया के तमाम महापुरुषों की जीवन गाथाएं पढ़ने पर ये ध्यान में आता है कि उनके जीवन को दिशा देने का काम मां ने ही किया है। माता जीजाबाई के संस्कार नहीं होते तो देश को छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे योद्धा नहीं मिलते। हमारी धर्म और संस्कृति में कभी भी जीवन मूल्यों का पराभव नहीं हुआ तो इसका कारण है माँ। दुनिया की किसी भी भाषा में सबसे ज्यादा अगर किसी विषय पर लिखा गया है तो वह है माँ।
मराठी साहित्य सम्मेलन के दूसरे दिन प्रीतमलाल दुआ सभागार में नागपुर के प्रसिद्ध लेखक और वक्ता आशुतोष अडोणी ने माँ विषय पर अपने सारगर्भित व्याख्यान में ये विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति को मिटाने के कई जतन हुए। कई आक्रमण हुए। इन आक्रमणों का इतिहास लगभग दो हजार वर्षो का है। विदेशी आक्रांताओं ने इस बात की बहुत प्रयास किया कि भारतीय संस्कृति का नामोनिशान मिटा दिया जाए, इस सबके बावजूद हमने अपनी संस्कृति को बचाए रखा तो इसका एकमात्र कारण है माँ।
आशुतोष अडोणी ने कहा कि हमारे यहां मां, परिवार की धुरी होती है। इसी के चलते संस्कारों का रोपण एक से दूसरी पीढ़ी को होता रहा और तमाम झंझावातों के बावजूद हमारे मूल्य, परपराएं, संस्कार और संस्कृति जिंदा रहे।
श्री अडोणी ने कई प्रसंगों और उदाहरणों के जरिए मां की महानता को प्रतिपादित किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ श्रीपाद जोशी, जयंत भिसे, मोहन रेडगावकर ने किया।
मन पाखरु पाखरु की प्रस्तुति आज।
मराठी साहित्य सम्मेलन के अंतिम दिन रविवार 30 अक्टूबर को गीत- संगीत का कार्यक्रम मन पाखरु पाखरु की प्रस्तुति दी जाएगी। संस्था मुक्त सवाद के अध्यक्ष मोहन रेडगावकर ने बताया कि मन पाखरु पाखरु का संहिता लेखन व निवेदन डॉ.सुखदा अभिराम भिसे का है। गायक कलाकार गौतम काळे व शिष्यगण हैं। कार्यक्रम प्रीतम लाल दुआ सभागार में सायं 6:30 बजे से आयोजित होगा। मुख्य अतिथि डॉ.शशांक वझे होगे। कार्यक्रम सभी के लिए खुला है।