कार्तिक पूर्णिमा पर हुआ सामा चकेबा का विसर्जन।
भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है सामा चकेबा लोक पर्व।
इंदौर : छठ पर्व के प्रात:कालीन अर्घ्य से शुरू हुए भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक, मिथिलांचल के प्रसिद्ध लोक पर्व सामा-चकेबा का विसर्जन सोमवार को शहर में रह रही मैथिल समाज की महिलाओं द्वारा कार्तिक पूर्णिमा की खिलखिलाती चांदनी में किया गया। सात- दिवसीय सामा चकेबा पर्व के दौरान मैथिल समाज की महिलाएं संध्याकाल प्रतिदिन मिटटी का सामा चकेबा बना कर उसे खर पतवार से बनाया गया चुगला और वृन्दावन के साथ डाला में सजाकर एक दूसरे के हाथ में फेरते हुए चुगला एवं वृन्दावन का दहन करती हैं।
रविवार को मैथिल समाज की महिलाओं की संस्था – सखी बहिनपा मैथिलानी समूह द्वारा बापट चौराहा स्थित भारत माता मंदिर परिसर में सामूहिक रूप से सामा चकेबा पर्व मनाया गया। इस दौरान समाज की महिलाओं ने मिटटी के सामा चकेबा का निर्माण किया तथा उसे बांस से बने डाला में सजा कर डाला को एक दूसरे के हाथों में फेरते हुए चुगला एवं वृन्दावन का दहन किया।
मिथिला की इस सुप्रसिद्ध लोकपर्व के बारे में बताते हुए सखी बहिनपा मैथिलानी समूह की ऋतू झा, शारदा झा, मंजुला झा, कविता झा, सुषमा झा, मीरा झा एवं सोनी झा ने कहा कि सामा-चकेवा मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व है। यह पर्व प्रकृति प्रेम, पर्यावरण संरक्षण, पक्षियों के प्रति प्रेम व भाई-बहन के परस्पर स्नेह संबंधों का प्रतीक है। भाई-बहन का यह त्योहार सात दिनों तक चलता है। कार्तिक शुक्ल सप्तमी से कार्तिक पूर्णिमा की शाम ढलते ही महिलाएं सामा का विसर्जन करती हैं। सामा चकेबा पर्व के दौरान मिथिलांचल की बहनें अपने भाइयों के दीर्घजीवन एवं सम्पन्नता की मंगलकामना करती हैं। सामा-चकेवा का पर्व पर्यावरण से संबद्ध भी माना जाता है। उन्होंने कहा कि भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक सात दिवसीय लोक पर्व सामा-चकेवा का विसर्जन कार्तिक पूर्णिमा की चांदनी में सोमवार शाम को किया गया।
भाई, स्वामी के दीर्घ आयु की कामना से मनाया जाता सामा चकेबा लोक पर्व।
सामा त्योहार खासकर अपने भाई तथा स्वामी के दीर्घआयु होने की कामना से मनाया जाता है। इस अवसर पर मिथिला की प्रायः प्रत्येक नारी अदम्य उत्साह के साथ महिला तथा पुरूष प्रभेद की पंक्षियों की मिट्टी की मूर्तियां अपने हाथों से तैयार करती हैं, जो सामा चकेबा के नाम से जाना जाता है। थिला की सांस्कृतिक लोकचित्रकला में वर्णित कथा के अनुसार यह सामा श्रीकृष्ण की बेटी सामा तथा चकेबा उसके स्वामी चक्रबाक का ही द्योतक है। चक्रवाक का अपभ्रंष ही चकेबा बन गया है। इस अवसर पर निम्य वचन के आधार पर एक पंक्ति में बैठे सात पंक्षियों की मूर्तियां भी बनायी जाती है, जो सतभैया कहलाते हैं। ये सप्त ऋर्षि के बोधक हैं। इस समय तीन तीन पंक्तियों में बैठी छह पार्थिव आकृतियों की मूर्तियां भी बनाई जाती है, जिन्हें शीरी सामा कहते हैं। वे षडऋतुओं के प्रतीक माने जाते हैं।