किसी भी एडवेंचर से बढ़कर होता है विश्वकप में पाकिस्तान को रौंदने का आनंद

  
Last Updated:  June 19, 2019 " 12:39 pm"

{चंद्रशेखर शर्मा } एक अकेले मो. आमिर को अलग कर दें तो पाकिस्तान की ये टीम अपनी टीम के सामने पासंग भी न। न गेंदबाजी में, न बल्लेबाजी में, न फील्डिंग में, न खुदयकीनी में और न एकजुटता में। पाकिस्तान का ये है कि हमारे खिलाफ आमिर न चले तो उनकी हालत वैसी हो जाती है कि नौ नकटों में एक नाक वाला भी नकटा।
इसके बावजूद इसने चंद दिन पहले टूनामेंट के सबसे बड़े शेर इंग्लैंड का शिकार कर दिखाया था। सो जाहिर है धुकधुकी में कल पूरा हिंदुस्तान भी था। मजा देखिए कि धुकधुकी के बावजूद हर कोई चाहता था कि सारे बादल मैनचेस्टर के उस मैदान पर मंडराने से बाज आएं और मैच हो ! इस एडवेंचरस मेंटेलिटी को समझना आसान नहीं। अलबत्ता मैदान खेल का हो, जंग का हो या कोई और, पाकिस्तान को दोंचने की हमारी लालसा इतनी तीव्र और उससे मिलने वाला आनन्द इतना अपूर्व होता है कि उसके लिए हमें हर एडवेंचर, हर कीमत मंजूर।
फिर क्रिकेट में तो रिकॉर्ड है कि वर्ल्ड कप में पाकिस्तान जब भी हमारे उल्ले पर आया है, हमेशा पिटा है। गोया चक्की के मुंह में जो डालो, मैदा होकर निकला है। सो वो पाकिस्तान की कोई टीम रही हो और कितनी ही धुरंधर रही हो, वर्ल्ड कप में हमने हमेशा उसे मैदा किया है। कहने की जरूरत न कि वर्ल्ड कप में पाकिस्तान को पीटने का वो अपूर्व आनन्द हम सबकी दाढ़ में खून की मानिंद लगा हुआ है। इसके बावजूद जब भी नया मैच होता है तो कोई ऐसा नहीं होता जो धुकधुकी के हिंडोले में ऊपर-नीचे नहीं होता।
इस बार भी जब सरफराज अहमद ने टॉस जीता और पहले फील्डिंग का फैसला किया तब हालात बल्लेबाजी के लिए मुफीद न थे और आमिर उनके पास थे ही। ऐसे में सबसे पहले चैंपियंस ट्रॉफी का वो फाइनल आंखों में उतरा, जो इसी आमिर के जौहर से इसी टीम ने हमारी टीम को हराकर जीता था। सो धुकधुकी और बढ़ी। हालांकि जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ा, साफ हो गया कि पाकिस्तान फूंक मारकर पर्वत हिलाने का मंसूबा बांधे हुए था। असल में रोहित और केएल राहुल ने वो शुरुआत दी कि जल्द ही पाकिस्तानी खिलाड़ियों के हाथ-पैर भारी थे। ये दिखा भी, जब उन्होंने रन आउट के दो आसान मौके गंवाए। रोहित तो कल साफ दोहरे शतक के मूड में थे। चोट ये हुई कि जैसे ही उन्होंने गेंदबाजी को खिलौना बनाने का पहला प्रयास किया, उसी में वो आउट हो गए। यही कारण था कि 140 रन बनाने के बाद भी आउट होकर वो खुद से बुरी तरह नाराज थे। वैसे आप जान लें कि रोहित इस टूर्नामेंट में अलग रणनीति से खेल रहे हैं। जी हां, अब वो शुरू से लेकर आखिर तक बल्लेबाजी करने की फिराक में रहते हैं। बहरहाल टीम इंडिया के टोटल से थोड़ी निराशा हुई। उसे 360 के पार जाना चाहिए था। मालूम हो कि ऐसी कसर अंग्रेजों के सामने नहीं धकने वाली। खैर।
अपना साफ और हर सूरत मानना था कि चार नम्बर पर विजय शंकर के बजाय डीके यानी दिनेश कार्तिक को ही खेलाया जाए। सो इसलिए कि विजय की बल्लेबाजी बहुत सीमित है। फिर भी उन्हें ही खेलाया गया और उनकी किस्मत देखिए। धवन चोटिल हुए तो उन्हें टीम में जगह मिली और मैच में भुवी चोटिल हुए तो उन्हें ही ओवर की बकाया दो गेंदें फेंकने को मिली। नतीजा ये कि वर्ल्ड कप के अपने पहले ही मैच में अपनी पहली ही गेंद पर पाकिस्तान का पहला विकेट उनके नाम था। इससे डीके को खेलाने की अपनी जिद और एक किस्सा मुझे याद आया। किस्सा ये था कि इंदौर के एक पुराने सटोरिये थे। बड़े बुकी थे वो और अपने ग्राहकों से एक ही बात कहते थे कि उनके यहां सट्टा लगाने भले पीर-पैगम्बर और कोई भी सिध्द आ जाए, लेकिन बस कोई किस्मत वाला न आए। ख्याल आया कि अपन भी कहाँ डीके को खेलाने के पीछे पड़े थे और यूँ विजय की किस्मत से भिड़ रहे थे !
बहरहाल कुलदीप ने जिस गेंद पर पाकिस्तान के विराट कोहली कहे जाने वाले बाबर आजम के डंडे चटकाए, वो बहुत खूबसूरत और जानलेवा थी। हालांकि पंड्या ने जिस तरह शोएब मलिक को रवाना किया, उससे मलिक से सहानुभूति होना लाजिमी थी। उनके आखरी वर्ल्ड कप की शायद ये आखरी पारी थी। कुल जमा मैच एकतरफा हुआ, लेकिन वर्ल्ड कप में पिछली छह जीतों की तरह ये भी उतनी ही आनंददायक थी। बधाई आप सबको।

{लेखक इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार और खेल समीक्षक हैं।}

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