इंदौर : देवी अहिल्या सेवा न्यास, राष्ट्र सेविका समिति इंदौर व भोजपुरी साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी) स्मृति व्याख्यानमाला के दूसरे और अंतिम दिन श्रीमती अलका इनामदार ने अपने विचार रखे। विषय था ‘देश हमें देता है सब कुछ’।
संदर्भित विषय पर बोलते हुए श्रीमती अलका इनामदार ने कहा, विविधता के बाद भी हम एक हैं। हमारे क्रांतिकारी भी पुनः इसी भारत भूमि पर जन्म लेना चाहते हैं। भगवान भी इसी भूमि पर अवतार लेते हैं। देश ने सबकुछ हमें दिया है। वन्देमातरम के रचयिता बंकिमचंद्र भी इसी भारत भूमि को वंदनीय बताते हैं। यह भूमि जीवन का मर्म है। धर्म और रिलीजन अलग है। रिलीजन एक पंथ का अनुसरण करने को कहता है। धर्म इससे अलग है। ये एक जीवन पद्धति है। इसमें किसी पूजा पद्धति पर जोर नहीं दिया जाता है। धर्म को कर्तव्य माना गया है। हर माता, पत्नी, बेटी अपने धर्म का पालन करती थी।हमारी समाज व्यवस्था किसी कानून से नहीं बनीं। धर्म का पालन करते हुए अधिकार अपने आप मिल जाते थे। हमारे लिए सुख की कल्पना अलग है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हमारे चार पुरुषार्थ बताए गए। जीवन के नियमों पर चलना ही धर्म है।
पश्चिम की अवधारणा हमारे अनुकूल नहीं।
श्रीमती इनामदार ने कहा कि आज हम विवाह को संस्कार मान रहे हैं क्या..? ये बड़ा सवाल है। ये चिंतन का विषय है। जीवन का रस विवाह संस्कार के बाद ही है। पश्चिमी अवधारणा हमारे अनुकूल नहीं है।
नई पीढ़ी को सामंजस्य बिठाना सिखाया ही नहीं।
श्रीमती इनामदार ने कहा कि डिपेंड होकर भी इंडिपेंडेंट रहना हम परिवार में ही सीखते हैं। हमने नई पीढ़ी को सामंजस्य बिठाना सिखाया ही नहीं। हम सबकुछ उन्हें रेडीमेड देने लगे हैं। उन्हें जीवन के असली आनंद से विमुख रखते हैं। किसी अमीर को देखकर कोई गरीब ईर्ष्या नहीं करता था, क्योंकि परिवार में सिखाया जाता था, जो मिला है, उसमें खुशी मनाएं।उन्होंने कहा कि परिवार चलाने का संस्कार बेटियों के साथ बेटों को भी दिए जाना चाहिए। हमें इस मामले में चिंतन करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि शिक्षा क्षेत्र की ओर हमारी रुचि कम होती जा रही है। विद्या दान को करियर बनाने की बात हम सोचते नहीं है। ये सही है की शिक्षकों को जितना मानधन मिलता है, वो बहुत कम है। जो हमने अपने गुरुओं से सीखा है, उसे हम नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास नहीं करते। यह गुरु ऋण चुकाने का काम है।यह समाज सेवा का काम है। समाज के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। हम हैं तो मैं हूं। समाज के लिए समय निकालकर हम गुरु का ऋण चुका सकते हैं।
भूखे को खाना खिलाना हमारी संस्कृति।
श्रीमती इनामदार ने कहा, अभिलाषाएं कम हों तो कई समस्याएं हल हो सकती हैं। जिनके पास है वो दान करें तो जिनके पास नहीं है, वो भी संतुष्ट हो सकते हैं। गाय को चारा खिलाना, भूखे को खाना खिलाना हमारी संस्कृति है। देश हमें सबकुछ देता है, हम भी कुछ देना सीखें।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रबुद्ध महिलाएं और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।