हाई कोर्ट ने खारिज किया कुटुंब न्यायालय का आदेश।
इंदौर : अल्पसंख्यक जैन समाज पर भी हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधान ही लागू होंगे। हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने याचिकाकर्ता एडवोकेट वर्षा गुप्ता की याचिका पर ये फैसला सुनाया है।
एडवोकेट वर्षा गुप्ता ने बताया कि हाल ही में कुटुंब न्यायालय ने जैन समाज के अल्पसंख्यक श्रेणी में सूचीबद्ध होने के चलते हिन्दू विवाव्ह अधिनियम के तहत जैन समाज के मामलों की सुनवाई से इनकार कर दिया था। इसपर उन्होंने हाईकोर्ट इंदौर में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट की युगल बेंच ने याचिका पर सुनवाई की और कुटुंब न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए जैन समाज से जुड़े मामले हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही सुने जाने का आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता एडवोकेट वर्षा गुप्ता के मुताबिक एक जैन दम्पत्ति की आपसी विवाह विच्छेद याचिका जिसमें पत्नी स्वयं प्रैक्टिसिंग एडवोकेट इंदौर है, कि ओर से उन्होंने आवेदन कुटुंब न्यायालय में प्रस्तुत किया था I आवेदन को बिना सुने ही इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि जैन समाज अल्पसंख्यक है और जैन विवाह, हिन्दू विवाह से भिन्न है और वह समाज, बहुसंख्यकों के नियमों को नही मानता इसलिए विवाह विच्छेद, हिन्दू विवाह अधिनियम से नही किया जा सकता I
एडवोकेट वर्षा गुप्ता के अनुसार यह आदेश पारित करने की अनुमति सीपीसी की धारा 113 में फैमिली कोर्ट के जज को नही है। उन्हें इस तरह का मुद्दा सीधे हाईकोर्ट को रेफर करना था इसलिए उनका आदेश प्रथम द्रष्टया ही अवैधानिक था। इसपर फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। नितेश बनाम शिखा के रूप में उच्च न्यायालय में यह मामला सुनवाई के लिए प्रस्तुत हुआ। अधिवक्ता वर्षा गुप्ता ने महिला की ओर से सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि जैन समाज को हिन्दू विधि में विशेष मान्यता दी गई है, यह भी कहा गया कि जैन, बौद्ध और सिख समाज के अपने अलग नियम और व्यवहार हैं। सभी अल्पसंख्यक जरुर है परन्तु हिन्दू विवाह अधिनियम में, अल्पसंख्यक कानून में और संविधान में कही भी उन्हें अलग नही किया गया है न ही उनकी विवाह विधि, हिन्दू विधि से भिन्न है। सप्तपदी, कन्यादान, पाणिग्रहण सभी विवाह विधि के अंग है जो दोनों ही समाज से समान है।
उच्च न्यायालय ने एडवोकेट वर्षा गुप्ता के तर्कों से सहमत होते हुए माना कि जैन समाज को हिन्दू विधि का लाभ मिलना चाहिए परन्तु फैसला सुरक्षित रखा गया था।सोमवार को उच्च न्यायालय द्वारा उपरोक्त मामले में अंतिम आदेश पारित कर दिया गया। जिसमें कुटुंब न्यायालय के 8/2/25 के आदेश को खारिज करते हुए नितेश बनाम शिखा की अपील को स्वीकार किया गया। इससे जैन समाज से जुड़े मामले हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही सुने जाने का रास्ता भी साफ हो गया है।