इंदौर: (चंद्रशेखर शर्मा) मिशन चंद्र यान-2 पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया का नोटिस लेना बनता है। सो इसलिए कि अरसे बाद उसने विरोध की हड़बड़ीजनित ऊलजुलूल उछलकूद के बजाय परिपक्व, संतुलित और सधी हुई समझदारी दिखाई। इस मिशन पर सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका ने कुल जमा इसरो और उसके वैज्ञानिकों पर गर्व जाहिर किया है और कहा है समूचा राष्ट्र उनके साथ है। सो न मनीष तिवारी की कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस और न रणदीप सुरजेवाला की। क्या ये बदलाव सुविचारित है या इसरो और उसके मिशनों को लेकर कांग्रेस ने अपने किसी अघोषित संविधान या सिध्दांत का पालन किया है ?
मुश्किल है इसका जवाब। फिर भी उसके एक नेता उदित राज अपनी डेढ़ अक्ल लगाने से बाज नहीं आए। उनका बयान था कि यदि इसरो के वैज्ञानिक पूजा-पाठ के फिजूल कर्मकांड से बचे होते तो इस आंशिक विफलता का मुंह न देखना पड़ता। यों वो खुद इस राजनीतिक बकवास से बचे होते तो अधिक ठीक होता।
चंद दिन पहले ही कांग्रेस के कई नेताओं ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या सरकार के अच्छे कामों की तारीफ होना चाहिए। इसके उलट उनके धुर विरोध से मोदी को ही फायदा होता है। बिलकुल सच बात है ये। हालांकि इस मिशन का केंद्र सरकार या मोदी से कोई सीधा लीजे-दीजे न था। इसके बावजूद मोदी ने इसे लेकर जो त्वरा, लपक और सक्रियता दिखाई, उसे लेकर खासकर सोशल मीडिया पर खूब बातें हैं। उसमें भी ज्यादातर अंधी आलोचना है। कुछ तो ऐसी मूर्खतापूर्ण हैं कि लगता है पाकिस्तान अपने आतंकी और सैनिकों की भारत में घुसपैठ न करवा पाया हो, किंतु उसके कुछ गधे जरूर किसी तरह सीमा पार करके यहां चले आये हैं। जो हो। कुछ लोग कह रहे हैं कि इंदिरा गांधी और अटलबिहारी बाजपेयी के समय भी ऐसे काम हुए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी जी जैसी अतिशय सक्रियता तो दूर, किसी को कानोंकान खबर तक न होने दी जाती थी। सही बात है। अलबत्ता पहले ऐसा नहीं होता था और अब मोदी जी कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है ? जाहिर है इस सवाल का यही जवाब होगा कि वो, उनकी पार्टी और सरकार इसका राजनैतिक माइलेज लेने की फिराक में थे। ठीक है, लेकिन ये भी तो मुमकिन है कि देश के वैज्ञानिकों की बरसों की मेहनत, साध और अनूठे मिशन के अंतिम पड़ाव की ओर अग्रसर होने ने उन्हें इतना आंदोलित और प्रसन्न कर दिया था कि मिशन की एक संभावित अप्रतिम कामयाबी का उन्हीं वैज्ञानिकों के साथ साक्षी होने से वो खुद को रोक नहीं सके। आखिर भारत दुनिया का पहला देश था, जिसका चंद्र यान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला था ! हो सकता है बतौर प्रधानमंत्री उनके जिज्ञासु मन में ऐसी सहज पुलक उठी हो। यदि ऐसा था तो भी इसमें कोई संशय न कि उनके उसी जिज्ञासु मन को उनकी इस अतिशय सक्रियता के राजनीतिक जमा-नामे न सूझे हों।
असल में आप उनके प्रधानमंत्री होने के बाद के कालखंड पर निगाह डालेंगे तो पाएंगे कि हर मौके पर उनकी ये अतिशय सक्रियता हाजिर रही है। मेरा मानना है कि उनका सरकार चलाना और राजनीति करना ट्रैन की पटरियों वाली जुगलबंदी है। वो दोनों साथ चलती हैं या एक साथ दोनों काम करना या साधना उनका स्टाइल है। फिर कांग्रेस को उन्होंने शुरू से निशाने पर रखा है। चाहे वो उनका गुजरात का पहला विधानसभा चुनाव रहा हो या पिछले लोकसभा चुनाव हों। 2014 में तो उनका नारा ही कांग्रेस मुक्त भारत था। सो कई बार ऐसा लगता है कि वो अपनी इस अतिशय सक्रियता से सोची-समझी योजना के तहत कांग्रेस को उकसाते हैं। मकसद ये कि कांग्रेस खीझे और कलपकर कुछ ऐसा करे कि वो उसका और बेड़ा गर्क कर सकें। मजे की बात ये कि कांग्रेस उनकी इस ट्रैप में फंसती भी रही है। गोया उनकी योजना ही ये होती है कि उनकी हर पहल या काम का कांग्रेस विरोध करे और यदि नहीं करती है तो करने के लिए उसे उकसाया जाए।
पिछले दिनों कुछ कांग्रेस नेताओं ने जब बयान दिया कि मोदी के अच्छे कामों की तारीफ भी होना चाहिए तो मुझे लगा था कि मोदी के जाल को उन्होंने ठीक ताड़ा है और वाजिब काट सुझाई है। अलबत्ता सोनिया, राहुल और प्रियंका ने अभी तक उस पर मुंह नहीं खोला है। हां, मिशन चंद्र यान पर इन तीनों की प्रतिक्रिया से लग रहा है कि शायद पूरी कांग्रेस ने मोदी की उस चाल को भांप लिया है। असलियत तो आईन्दा पता चलेगी। यद्यपि यदि ऐसा है तो ये मोदी, उनकी सरकार और भाजपा के लिए सावधान होने का इशारा है। हालांकि कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा टास्क ये है कि सोशल मीडिया पर उसके जो कूढ़मगज शुभचिंतक और हितैषी हैं, उनको वो कैसे सुधारेगी या साधेगी ?
मिशन चंद्रयान 2 पर कांग्रेस की सधी प्रतिक्रिया सोची-समझी रणनीति..!
Last Updated: September 8, 2019 " 02:45 pm"
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