एक्यूट मायोलाइड ल्यूकेमिया से पीड़ित थी 13 वर्षीय बच्ची।
इंदौर : एमजीएम मेडिकल कॉलेज के सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में एक्यूट मायलोइड ल्यूकेमिया (एएमएल) से पीड़ित 13 वर्षीय लड़की का हेप्लोइडेन्टिकल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया जो उसके बचने का एकमात्र उपाय था। इसके बाद जी.वी.एच.डी., वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण, रक्तस्रावी सिस्टिटिस, पेशाब में रुकावट, दर्दनाक प्रक्रियाओं, सदमे, ऑक्सीजन पर निर्भरता, डायलिसिस और कई बार रक्त आधान के साथ 134 दिनों की कड़ी जंग चली।
सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के समर्पित डॉक्टरों और नर्सों की टीम ने अथक संघर्ष किया। उन्होंने न केवल बच्ची का चिकित्सकीय उपचार किया, बल्कि उसे और उसके परिवार को लगातार संबल और प्रेरणा दी।
डॉक्टरों की मेहनत, बेहतर उपचार और नर्सिंग स्टाफ का सहयोग रंग लाया और बच्ची स्वस्थ हो गई। उसे बीएमटी यूनिट से एक मुस्कान और और ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ विदाई दी गई।
डॉक्टर अक्षय लाहोटी, क्लिनिकल हेमेटोलॉजी विभाग के प्रमुख इसे एक चमत्कार बताते हैं। उनका कहना है कि दृढ़ता, टीमवर्क, नैदानिक उत्कृष्टता, नर्सिंग देखभाल, सरकारी सहायता और प्रार्थनाओं से उक्त बच्ची का मानों पुनर्जन्म हुआ है। उन्होंने इलाज में सहयोग के लिए केंद्र व मध्य प्रदेश सरकार, जनप्रतिनिधि,जिला प्रशासन, डीन एमजीएम, निदेशक, अधीक्षक एमवाय अस्पताल, सीएसआर पहल और एनजीओ को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह केवल एक सफलता की कहानी नहीं है – यह इस बात का प्रमाण है कि जब सिस्टम काम करता है और लोग परवाह करते हैं तो चमत्कार होते हैं।