दिवाली पर अपने अंतर्मन में भी जलाएं प्रभु प्रेम की ज्योति

  
Last Updated:  October 30, 2019 " 03:15 pm"

संत श्री राजिंदर सिंह जी

दिवाली के दिन लोग दिये, मोमबत्ती व लैंप आदि लगाकर रोशनी करते हैं। यह पर्व प्रभु श्रीराम और माता सीता के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटने की खुशी में मनाया जाता है। लोग एक- दूसरे को मिठाई खिलाकर इस पर्व की खुशियां मनाते हैं। यह पर्व शरद ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है।
रोशनी के पर्व दिवाली का आध्यात्मिक पहलू भी है जो हमें बताता है कि हमारे अंदर प्रभु की ज्योति विद्यमान है। इसका अनुभव हम अपनी आत्मा के जरिये कर सकते हैं। प्रत्येक मनुष्य का यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह अपने जीवन में प्रभु की ज्योति का अनुभव करें और परम पिता में लीन हों। ये तभी सम्भव है जब हमारे अंतर्मन में प्रभु को पाने की तड़प हो। परम पिता ने हमें दुनिया में भेजा है तो वापस जाने का रास्ता भी बनाया है। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को कुछ स्वतंत्र अधिकार भी दिए हैं। यदि उन्हें कोई कहे कि हमें अपने घर वापस ले चलो तो परम पिता उनकी पुकार जरूर सुनेंगे बशतें हमारी प्रार्थना किसी के दबाव में न हो।
जिसप्रकार एक दौलतमंद इंसान अपनी दौलत बांटना चाहें तो उन्हीं में बांटता है जो उसके पास मांगने आते हैं। एक डॉक्टर उन्हीं मरीजों को ठीक करता है जो अपनी बीमारी का इलाज करने की गुहार लेकर उसके पास आते हैं । ठीक उसी तरह पिता परमेश्वर के पास हम सबके लिए रूहानी खजाने हैं। पिता परमेश्वर अगर उन्हें यह खजाना दें जिन्हें इसकी चाहत ही नहीं है अथवा जिन्हें इसका महत्व नहीं पता वे शायद इसे स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि उन्होंने कभी इसके लिए प्रार्थना नहीं की। पिता परमेश्वर तब तक हमारा इंतजार करते हैं, जब तक हम उससे कुछ मांगते नहीं। एक बार हमारे भीतर प्रभु प्रेम को पाने की तड़प पैदा हो गई तो वे उसे पाने में हमारी मदद अवश्य करते हैं।
केवल मनुष्य जन्म ही ऐसा है जिसमें हम आत्मा का परमात्मा से मिलाप करा सकते हैं। कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो अपने जीवन में इस उद्देश्य को प्राप्त करते हैं। हम भी अपना ध्यान अंतर्मुख कर प्रभु प्रेम की ज्योति को अपने अंदर जला सकते हैं। अपने ध्यान को अंतर्मुख करने की ध्यान- अभ्यास की यह विधि बहुत सरल है जिसमें हम अपने शरीर को शांत कर अपना ध्यान दोनों आंखों के बीच ‘शिवनेत्र’ पर केंद्रित करते हुए अपने विचारों को सुमिरन के जरिये शांत कर प्रभु प्रेम की ज्योति अपने अंदर जलाते हैं। इससे हमारी आत्मा अंतर्मन के रूहानी मण्डलों में सफर करते हुए परमात्मा में लीन हो जाती है।
आईये, दिवाली के इस पावन पर्व को हम केवल बाहरी तौर पर रोशन कर आनंदित न हों बल्कि रोजाना ध्यान- अभ्यास कर अपने अंतस में जल रही प्रभु ज्योति का अनुभव करें और सदा के लिए सुख- चैन व शांति को को महसूस करें।

( यह आलेख सावन कृपाल रूहानी मिशन की इंदौर शाखा द्वारा भेजा गया है। )

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