अपनी अपेक्षाओं का बोझ बच्चों पर न डाले परिजन

  
Last Updated:  February 19, 2024 " 01:24 am"

बच्चों को चुनौतियों से जूझना और असफलता से न घबराने की दें सीख।

खेलकूद व रचनात्मक गतिविधियों में भाग लेने के लिए करें प्रेरित।

प्लानिंग के साथ पढ़ाई करें स्टूडेंट्स, बीच – बीच में ब्रेक लेते रहें।

पर्याप्त नींद लें, पौष्टिक आहार लें।

बच्चों में तनाव या डिप्रेशन के लक्षण पाए जाने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लें ।

अवर लाइव इंडिया. कॉम से चर्चा में बोली मनोचिकित्सक डॉ. अनुभूति उपाध्याय।

इंदौर : परीक्षा का नाम सुनते ही नव युवाओं में एक तरह भय समा जाता है। चाहे वो बोर्ड परीक्षाएं हों, प्रोफेशनल कोर्सेज की एंट्रेंस एग्जाम हो या प्रतियोगी परीक्षाएं, सफलता का दबाव उन पर इतना ज्यादा होता है कि असफलता की आशंका मात्र से वे तनाव में आ जाते हैं। माता – पिता भी अपनी अपेक्षाओं का भार बच्चों पर लाद देते हैं। प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने और पेरेंट्स की अपेक्षाओं के बोझ तले दबे ये युवा छात्र – छात्राएं तनाव बर्दाश्त नहीं कर पाते और अवसाद का शिकार होने लगते हैं। कुछ तो ऐसी दशा में अपनी जिंदगी ही दांव पर लगा बैठते हैं। आए दिन इस तरह की घटनाएं पढ़ने – सुनने को मिलती हैं। आखिर। इस एग्जाम फियर से कैसे निपटा जाए। तनाव को कैसे नियंत्रित किया जाए की युवा नकारात्मकता और अवसाद के शिकार न हों। माता – पिता और शिक्षक इसमें किस तरह की भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे तमाम सवालों के जवाब पाने के लिए हमने मनोचिकित्सक डॉ. अनुभूति उपाध्याय से बातचीत की।

ऐसे करें तनाव में होने की पहचान :-

डॉ. अनुभूति ने बताया कि परीक्षा हो या कोई अन्य क्षेत्र प्रतिस्पर्धा जब होती है तो बड़े हों या छोटे (नव युवा) थोड़ा बहुत प्रेशर,तनाव,नर्वसनेस होना सामान्य सी बात है लेकिन जब ये तनाव और प्रेशर कोई हद से ज्यादा महसूस करने लगे तो शारीरिक और मानसिक समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। इनके ये कारण प्रमुख हैं

असफलता का भय।

डॉ. अनुभूति ने बताया कि युवा छात्र – छात्राओं में तनाव, एंजायटी और नर्वस नेस बढ़ने का बड़ा प्रमुख कारण है असफलता का भय। जब उन्हें लगता है कि जिस परीक्षा को वे देने जा रहे हैं चाहे वो बोर्ड की हो या प्रतियोगी परीक्षा, उसमें वे सफल होंगे या नहीं। उनका आत्मविश्वास डोलने लगता है तो उन पर प्रेशर बढ़ता जाता है और तनाव में घिरकर वे हताशा का शिकार होने लगते हैं।

अनिश्चितता का भाव।

डॉ. अनुभूति के अनुसार खासकर स्टूडेंट्स, किसी परीक्षा या काम को फेस करने मौका आता है तो आशंका में पड़ जाते हैं की वे इसे ठीक से कर पाएंगे या नहीं अथवा इसमें कामयाब हो पाएंगे या नहीं। यही मनस्थिति उन्हें तनाव में धकेलती है।

समय सीमा में पढ़ाई पूरी न कर पाना।

उन्होंने बताया कि हमारे यहां पाठ्यक्रम पूरा करने और परीक्षा की तैयारी करने की समय सीमा निर्धारित की जाती है। कई छात्र किसी विषय को समझ नहीं पाने
अथवा अन्य किसी कारण से तय समय सीमा में पाठ्यक्रम पूरा कर पाने में खुद को असमर्थ पाते हैं। ऐसे में जब परीक्षा देने की बारी आती है तो वे तनाव महसूस करने लगते हैं।

माता – पिता की अपेक्षाएं, स्कूल, कोचिंग क्लास का दबाव भी बढ़ाता है तनाव।

डॉ. अनुभूति के मुताबिक कई ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें माता – पिता जिस लक्ष्य को खुद हासिल नहीं कर पाते उसकी अपेक्षा वे अपने बच्चों से करने लगते हैं, बिना यह जाने की बच्चे की रुचि उसमें है या नहीं। इसी के साथ स्कूल के शिक्षक और कोचिंग क्लास में भी स्टूडेंट्स से अच्छे प्रदर्शन का दबाव बनाया जाता है, इससे वे तनाव में आ जाते हैं और फेलियर का डर उन्हें सताने लगता है।

ये होते हैं तनाव व डिप्रेशन के लक्षण।

डॉ. अनुभूति ने बताया कि कुछ ऐसे लक्षण होते हैं जिनसे पेरेंट्स महसूस कर सकते हैं कि उनका पुत्र या पुत्री तनाव और डिप्रेशन में है जैसे :-

लगातार उदास रहना, किसी बात में मन नहीं लगना,

जो काम पहले रुचि से, उत्साह से करते थे, उससे विमुख हो जाना।

दिनभर थकान महसूस करना, किसी काम को करने की इच्छा न होना।

खुद को बेकार, असहाय और बोझ समझने लगना।

नींद बहुत कम या बहुत ज्यादा आना।

भूख बहुत कम लगना या ज्यादा खाने की इच्छा होना।

चिड़चिड़ापन महसूस करना।

नकारात्मक विचारों से घिर जाना, जीवन के प्रति निराशा का भाव जागना।

उपरोक्त लक्षण दो हफ्ते या उससे अधिक समय तक नजर आए तो तत्काल डॉक्टर (मनोचिकित्सक)की सलाह लेनी चाहिए।

काउंसलिंग के साथ तनाव प्रबंधन के सिखाते हैं गुर।

डॉ. अनुभूति ने बताया कि उनके पास परीक्षा में असफलता, माता – पिता की अपेक्षाओं का बोझ या अन्य किसी वजह से तनाव और अवसाद में रहने वाले कई स्टूडेंट्स आते हैं। उन्हें इस अवस्था से बाहर निकालने के लिए मल्टीपल तरीके अपनाएं जाते हैं। काउंसलिंग के जरिए तनाव और डिप्रेशन की मूल वजह जानने का प्रयास किया जाता है और उसके अनुरूप तनाव प्रबंधन के गुर सिखाने के साथ डिप्रेशन से बाहर आने की दवाइयां दी जाती हैं। ज्यादातर स्टूडेंट्स इससे ठीक हो जाते हैं।

बच्चों पर अपेक्षाओं का बोझ न लादे पेरेंट्स।

डॉ. अनुभूति के अनुसार तनाव ग्रस्त अथवा डिप्रेशन के शिकार बच्चों के उपचार में उनके परिजनों की भी अहम भूमिका होती है। उन्हें कहा जाता है कि वे अपनी अपेक्षाओं का बोझ बच्चों पर न डालें। उन्हें उनकी रुचि और क्षमता के अनुरूप ही आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें। घरेलू विवाद का असर बच्चों पर न पड़ने दें। हमेशा सकारात्मक भाव रखें।

चुनौतियों से लड़ना सिखाएं।

डॉ. अनुभूति के मुताबिक पेरेंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चों को चुनौतियों से जूझना सिखाए। उन्हें फिजिकल एक्टिविटीज अर्थात खेलकूद में भाग लेने के लिए प्रेरित करें जिससे उनमें स्पोर्टमैन स्पिरिट विकसित होगी और वे असफलता के भय से विचलित नहीं होंगे। इसी के साथ उनकी रुचि के अनुकूल विधा को अपनाने में भी सहयोग करें।

प्लानिंग के साथ पढ़ाई करें, बीच में ब्रेक लेते रहें।

डॉ. अनुभूति ने छात्र – छात्राओं से कहा कि वे प्लानिंग के साथ पढ़ाई करें। पाठ्यक्रम को छोटे – छोटे हिस्सों में बांटकर पढ़ें। बीच – बीच में ब्रेक लेते रहें। पौष्टिक आहार लें। नींद पर्याप्त लेते रहें क्योंकि नींद अच्छी नहीं होगी तो उसका असर याददाश्त पर होता है। किताबी कीड़े न बनें। तनाव से राहत पाने के लिए ध्यान, योग, प्राणायाम करें। अपने दोस्तों, परिजनों और परिचितों से संवाद करते रहें। असफलता से न घबराएं और चुनौतियों का डटकर मुकाबला करें। इससे तनाव और डिप्रेशन जैसी समस्या से वे बचे रह सकेंगे।

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