‘अहम ब्रह्मास्मि’ का अर्थ मैं का परमात्मा में लीन हो जाना है

  
Last Updated:  November 11, 2022 " 09:57 pm"

‘अद्वैत सनातन परंपरा और जीवन’ प्रबंधन विषय पर व्याख्यान में बोले पंडित विजय शंकर मेहता

इंदौर : इंसान के जीवन में ‘मैं’ अहम के होने का नहीं बल्कि अहंकार के गिरने का प्रतीक है। ‘अहम ब्रह्मास्मि’ का अर्थ ही मैं का ईश्वर में लीन हो जाना है। समय का प्रबंधन कैसा हो यह आदि शंकराचार्य ने हमें सिखाया।

ये विचार स्टेट प्रेस क्लब, मप्र द्वारा आयोजित ‘धर्म व्याख्या’ कार्यक्रम में ख्यात जीवन प्रबंधन गुरु पं. विजय शंकर मेहता ने व्यक्त किए। श्री मेहता ने ‘अद्वैत सनातन परंपरा एवं जीवन प्रबंधन’ विषय पर कहा कि आत्मा, परमात्मा का ही अंश है। जब तक शरीर मन और आत्मा एकाकार नहीं होते, इंसान अहम में जकड़ा रहता है। उन्होंने कहा कि आदि गुरु शंकराचार्य का वेदांत सिद्धांत हमें अहम से परे होने का मार्ग दिखाता है।

स्त्री – पुरुष के मनोविज्ञान को समझना जरूरी।

पंडित विजयशंकर मेहता ने आदि गुरु शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत दर्शन की सरल शब्दों में व्याख्या करते हुए कहा कि आदि गुरु को भी कई चुनौतियों से गुजरना पड़ा था। उन्होंने मंडन मिश्र के बाद उनकी पत्नी उभय भारती से शास्त्रार्थ करने के लिए स्त्री – पुरुष के मनोविज्ञान का भी गहरा अध्ययन किया। उन्होंने कहा कि स्त्री – पुरुष के मनोविज्ञान को जाने, समझे बिना कोई सही अर्थों में महात्मा नहीं बन सकता।

आत्मा से परमात्मा को याद करने पर वह मदद जरूर करते हैं।

पंडित मेहता ने रामायण और गीता के विभिन्न प्रसंगों के जरिए अपनी बात रखते हुए कहा कि परमात्मा को जब हम आत्मा से याद करते हैं तो वह हमारी मदद करने किसी न किसी रूप में जरूर आते हैं। जीवन में संकट आए तो परमात्मा को आत्मा की गहराई से याद करें। उसका कृपा प्रसाद हमें जरूर मिलेगा।

भ्रम से निजात पाने के लिए गीता का अध्ययन करें।

श्री मेहता ने गीता का जिक्र करते हुए कहा कि सत्य का साथ और धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना पड़े तो वह जायज है। उन्होंने कहा कि भ्रम से निजात पानी हो तो गीता का अध्ययन जरूर करें। उससे जीवन में स्पष्टता आती है। पंडित मेहता ने कहा कि अभी जो करोगे कभी उसका फल जरूर मिलेगा, ये हमेशा याद रखें।

अद्वैत ज्ञान परंपरा का केंद्र बनेगा ओंकारेश्वर।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि आनेवाले समय में ओंकारेश्वर अद्वैत ज्ञान परंपरा का बड़ा केंद्र बनकर उभरेगा। यहां आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का निर्माण, अद्वेत ज्ञान के विश्व स्तरीय केंद्र स्थापना का कार्य राज्य सरकार द्वारा तटस्थता के साथ किया जा रहा है। महालोक लोक के बाद ओंकारेश्वर भी आध्यात्मिक पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान बन जाएगा।
उन्होंने ओंकारेश्वर तीर्थ विकास योजना ने बाधक बन रहे लोगों पर भी निशाना साधा।

प्रारंभ में अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण किया। अतिथियों का स्वागत कीर्ति राणा, संजीव आचार्य, पं. सुनील मसूरकर, सत्यकाम शास्त्री, नवनीत शुक्ला,रवि चावला एवं आकाश चौकसे ने किया। अतिथियों को रचना जौहरी, सोनाली यादव एवं संजय रोकड़े ने स्मारिका भेंट की। इस अवसर पर पं. मेहता का शॉल-श्रीफल और स्मृति चिन्ह से अभिनंदन किया गया ।अंत में नवनीत शुक्ला ने आभार व्यक्त किया।कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी मौजूद थे।

Facebook Comments

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *