जगदगुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती की चीन, पाक को ललकार, यदि वे युद्ध चाहते हैं तो हम भी तैयार हैं

  
Last Updated:  December 15, 2021 " 03:24 pm"

इंदौर,: जगदगुरु शंकराचार्य, पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने चीन और पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा कि वे यदि हमें युद्ध के मुहाने पर खड़े देखना चाहते हैं तो हम वहां भी तैयार हैं। यदि चीन ने पाकिस्तान के समर्थन में आक्रमण करने का दुष्प्रयास किया तो हम भी तैयार हैं। हम गीता के कर्मयोग में विश्वास रखने वाले लोग हैं। देश में रहने वाले सभी लोगों के पूर्वजों के नाम सनातनी वैदिक हिन्दुओं के नाम पर ही थे। वे यदि आज हिन्दू धर्म की निंदा या आलोचना करते हैं तो यह उनके अपने पूर्वजों को लांछित करने का ही काम होगा। अब तो अपने-अपने क्षेत्र के नायक भी हिन्दू धर्म स्वीकार कर रहे हैं।
जगदगुरु शंकराचार्य मंगलवार शाम गीता भवन में चल रहे 64वें अभा गीता जयंती महोत्सव की धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। सभा की अध्यक्षता अंतराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने की। गीता भवन आगमन पर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच शंकराचार्यजी का पादुका पूजन गीता भवन ट्रस्ट मंडल की ओर से रामविलास राठी, प्रेमचंद गोयल, महेशचंद्र शास्त्री, मनोहर बाहेती, हरीश जाजू, दिनेश मित्तल, टीकमचंद गर्ग आदि ने किया। इसके पूर्व सुबह मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती के मुख्य पर्व पर तीन हजार से अधिक भक्तों ने देश के जाने माने संतों के सान्निध्य में गीता के 18 अध्यायों का सामूहिक पाठ किया। सुबह भगवान शालीग्राम के विग्रह पर आचार्य पं.कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में विद्वानों ने विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ से सहस्त्रार्चन भी किया। गीता की सामूहिक आरती में हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, समाजसेवी कैलाश शाहरा, पं. कृपाशंकर शुक्ला, रामेश्वर असावा, ईश्वर बाहेती जे.पी. फड़िया सहित अनेक श्रद्धालुओं ने सभी संत-विद्वानों का स्वागत किया। गीता पाठ के बाद महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने अपने उदबोधन में गीता की महत्ता बताई। अध्यक्षीय आशीर्वचन में जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने कहा कि गीता विश्व का ऐसा विलक्षण ग्रंथ है तो पठन, श्रवण और मनन मंथन करने वालों को मुक्ति प्रदान करता है। गीता मौत को मोक्ष में बदलने का ग्रंथ है। मोह का क्षय होना ही मोक्ष है। बार-बार जन्म लेने और बार-बार मरने से मुक्ति दिलाने का एकमात्र ग्रंथ गीता ही है।

दोपहर की सत्संग सभा का शुभारंभ डाकोर से आए संत देवकीनंददास के प्रवचनों से हुआ। हरिद्वार से आई साध्वी भूमाभारती ने कहा कि गीता का ज्ञान सबसे श्रेष्ठ है। ज्ञान के साथ भक्ति भी जरूरी है। गीता जैसे धर्मग्रंथों का आश्रय ग्रहस्थ धर्म के लिए सबसे श्रेष्ठ माना गया है। नाथद्वारा-इंदौर के गोस्वामी दिव्येश कुमार ने कहा कि जीवन में कर्त्तव्य पथ पर चलने के लिए गीता मार्गदर्शन करती है। गीता के श्रवण में मानसिक दृढ़ता होना चाहिए। यह भी तय करें कि गीता केवल समय गुजारने के लिए नहीं, बल्कि जीवन के किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सुनना चाहिए। गीता का ज्ञान सबसे पहले अर्जुन को प्राप्त हुआ क्योंकि उन्होंने भगवान की शरणागति प्राप्त की थी। गीता निराशा से आशा की ओर ले जाती है। यह ऐसा धर्मग्रंथ है जो आशावाद जागृत करता है। गीता कर्मयोग का भी संदेश वाहक है। जंगल के राजा शेर को भी शिकार के लिए कर्म करना पड़ेगा। कोई भी मृग शेर के मुंह में स्वयं नहीं पहुंचता। हमारा जीवन इस तरह का होना चाहिए कि दूसरे व्यक्ति के चेहरे पर प्रसन्नता आ जाए। हमारी तृष्णाएं कभी जीर्ण नहीं होती। हम भले ही बूढ़े हो जाएं, हमारी कामनाएं कभी बूढ़ी नहीं होती। भीलवाड़ा से आए महामंडलेश्वर स्वामी जगदीश पुरी ने कहा कि सनातन संस्कृति में गीता प्राणी मात्र के कल्याण का ऐसा ग्रंथ है, जो कभी भी किसी के भी साथ पक्षपात या भेदभाव नहीं करता। संजय और धृतराष्ट्र के बीच संवाद के प्रसंग पर उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति अपना कर्त्तव्य और धर्म विस्मृत कर किंकर्त्तव्यविमूड़ हो जाता है तब उसे गीता का आश्रय जरूर लेना चाहिेए। गीता में पहला शब्द धर्म है और अंतिम शब्द मम है। इन दोनों को मिलाकर धर्ममम अर्थात धर्म मेरा है का संदेश गीता में नीहित है। संशयग्रस्त व्यक्ति की प्रत्येक समस्या का समाधान गीता में ही मिलेगा, क्योंकि गीता धर्मस्वरूपा है। हरिद्वार से आए महामंडलेश्वर स्वामी विवेकानंद ने कहा कि हमारा पूरा शरीर ही वह खेत है, जिसमें हम कर्मरूपी बीज बोकर कर्मयोग को साधते हैं। देवता भी इस सुख से वंचित है। मनुष्य शरीर भी कुरुक्षेत्र से कम नहीं है।

जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि गीता गंभीर ग्रंथ है। व्यक्ति समर्थ हो और निमित्त नहीं हो तो उसे अपने लक्ष्य में सफलता नहीं मिलेगी। कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध के लिए निमित्त बनने के लिए उत्साहित किया और इसीलिए अर्जुन को सफलता मिली। आदि शंकराचार्य द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि मूर्ति भंजकों ने बद्रीनाथ और द्वारकापुरी में जो हमले किए थे, उन्हें फिर से स्थापित करने का श्रेय आदि शंकराचार्य को ही है। उन्होने ही जगन्नाथपुरी में पंडों के लिए ऐसी व्यवस्था करवाई कि आज हजारों लोगों को आजीविका मिल रही है। सबके पूर्वजों के नाम सनातनी वैदिक हिन्दू के नाम पर थे। बुद्धि का स्वभाव है सत्य का पक्षधर होना। आज अपने -अपने क्षेत्र के नायक लोग भी हिन्दू धर्म स्वीकार कर रहे हैं। पूरी गीता को एक वाक्य में कहें तो कर्मयोग का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है। अर्जुन का विषाद गंभीर किस्म का है। जो विषाद प्रलोभन प्राप्त होने पर भी नहीं टूटे, वह अर्जुन का ही विषाद हो सकता है। हम आक्रमण सहते भी नहीं है और आक्रमण करते भी नहीं है, लेकिन यदि चीन पाकिस्तान के समर्थन में आक्रमण करता है तो हम तैयार हैं। वे यदि हमें युद्ध के मुहाने पर खड़े देखना चाहते हैं तो हम वहां भी खड़े हैं।

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