पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हर रोज हो सकता है बदलाव

  
Last Updated:  April 8, 2017 " 05:50 am"

नई दिल्ली। कई विकसित देशों की तरह भारत में भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में रोजाना बदलाव हो सकता है। सरकारी तेल कंपनियों का कीमतों की रोजाना समीक्षा करने का प्लान है, ताकि वह अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुताबिक हों। अभी 15 दिनों में तेल की कीमतों में बदलाव होता है। इंडियन ऑइल कॉर्प, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम का देश के 95 फीसदी फ्यूल रिटेल मार्केट पर कब्जा है। इन कंपनियों के टॉप एग्जिक्यूटिव्स ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में रोजाना बदलाव के प्लान को लागू करने के तौर-तरीके खोजे जा रहे हैं। इन कंपनियों के अधिकारियों ने इस सिलसिले में हाल ही में ऑइल मिनिस्टर धर्मेंद्र प्रधान और मंत्रालय के अन्य अधिकारियों के साथ मुलाकात की। एक टॉप एग्जिक्यूटिव ने बताया, ‘रोजाना फ्यूल प्राइसिंग के आइडिया पर चर्चा कुछ समय से चल रही है। हालांकि, अब हमारे पास इसे लागू करने के लिए टेक्नॉलजी है।’ ज्यादातर फिलिंग स्टेशनों पर ऑटोमेशन, डिजिटल टेक्नॉलजी की अवेलेबिलिटी और सोशल नेटवर्क्स ने कंपनियों के देशभर के 53,000 पेट्रोल पंपों पर कीमतों में बदलाव को लागू करना काफी आसान बना दिया है। पहले प्राइस ट्रांसमिशन काफी पेचीदा काम होता था और डीलर्स को नई कीमत के लिए कंपनियों से फोन कॉल और फैक्स मेसेज का इंतजार करना पड़ता था। उसके बाद सप्लाइ ऑर्डर को कम करने या इसे बढ़ाने को लेकर हड़बड़ी दिखानी पड़ती थी, जिससे सप्लायर्स को भी असुविधा होती थी। एग्जिक्यूटिव ने बताया, ‘डेली प्राइस रिवीजन से इंडियन फ्यूल मार्केट इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स का बन जाएगा। इससे कस्टमर्स और डीलर्स दोनों को परचेज मैनेजमेंट में मदद मिलेगी।’ पेट्रोल या डीजल की कीमतों में रोजाना बदलाव का मतलब यह होगा कि कीमतों में ज्यादा तेजी से बढ़ोतरी या गिरावट होगी, जैसा कि पिछले हफ्ते हुआ। सरकारी तेल कंपनियों ने 31 मार्च को पेट्रोल की कीमत में 3.77 रुपये प्रति लीटर और डीजल में 2.91 रुपये प्रति लीटर की कटौती की। नए सिस्टम में तेल की कीमतें रोजाना कुछ पैसे ही बढ़ेंगी, लिहाजा कस्टमर्स को झटका नहीं लगेगा। इसका मतलब यह है कि कंपनियां राजनीतिक हमले की चिंता किए बिना कीमतों में बढ़ोतरी कर सकेंगी। चुनावों के दौरान अकसर तेल की कीमतों में बढ़ोतरी को रोक दिया जाता है, क्योंकि यह सत्ताधारी पार्टी के हितों के लिए नुकसानदेह माना जाता है। इसकी भरपाई के लिए सरकार ऑइल कंपनियों को उस वक्त में भी कीमतें ज्यादा रहने की इजाजत देती है, जब इंटरनेशनल कीमतों की तर्ज पर गिरावट की जरूरत होती है।

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