बीपीसीएल : जश्न के लिए हवेली की नीलामी..!

  
Last Updated:  November 23, 2019 " 01:39 pm"

*यूपीए की सरकार कहती थी कि घाटे के सरकारी उपक्रम सरकार क्यों चलाए? अब एनडीए के नेता कहते है कि सर कार कारोबारी उपक्रम चलाए ही क्यों? भारत पेट्रोलियम के विनिवेश पर मंत्रीजी कहते हैं कि क्या सरकार का काम तेल बेचना है?*

*सही कहा मंत्री जी ने। सवाल है कि पेट्रोलियम, बीमा, बैंक, रेलवे, विमानन, शिपिंग आदि पहले प्राइवेट ही तो थे। क्यों किया गया था राष्ट्रीयकरण? बीपीसीएल तो अरबों के मुनाफे में है तो उसका विनिवेश क्यों? जश्न मनाने के लिए पुश्तैनी हवेली की नीलामी क्यों?*

इंदौर : ( प्रकाश हिंदुस्तानी ) केन्द्र सरकार जश्न के लिए हवेली की नीलामी करने जा रही है। भारत की नवरत्न कंपनियों में से एक भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) का विनिवेश करने का फैसला कुछ इसी तरह का है। बीपीसीएल में भारत सरकार का 53.23 प्रतिशत हिस्सा है और सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी किसी और को सौंपने जा रही है। यह देश की दूसरी सबसे बड़ी तेल कंपनी है। विनिवेश के बाद सरकार का नियंत्रण इस कंपनी से हट जाएगा।

बीपीसीएल के अलावा 4 और कंपनियां हैं, जिनका विनिवेश किया जाना है, लेकिन वे कंपनियां इतनी बड़ी नहीं हैं। एससीआई के विनिवेश से सरकार को 2000 करोड़ और कॉनकॉर के विनिवेश से 10800 करोड़ मिलने की संभावना है। इसके अलावा टीएचडीसी इंडिया और एनईईपीसीओ का भी विनिवेश किया जाना है। ये सभी कंपनियां भारत सरकार के नियंत्रण में हैं, क्योंकि इनके आधे से अधिक भाग पर सरकार का अधिकार है।

यह विनिवेश की स्थिति इसलिए आई है कि सरकार का टैक्स कलेक्शन का लक्ष्य बहुत पीछे छूटने वाला है। इसमें 2 लाख करोड़ रुपये की कमी की आशंका है। सरकार के नियंत्रण वाली कंपनियों में हिस्सेदारी के विनिवेश से सरकार को 1 लाख 5 हजार करोड़ रुपये इकट्ठे करने हैं। जो सरकारी कंपनियां घाटे में हैं, उनका विनिवेश तो समझ में आता है, लेकिन बीपीसीएल जैसी भारी भरकम मुनाफा कमाने वाली कंपनी के विनिवेश से न केवल इन कंपनियों के कर्मचारियों में रोष है, बल्कि यह बात आम लोगों की समझ से भी परे है।

मुनाफा कमाने वाली कंपनियों की हिस्सेदारी बेचते वक्त सरकार का तर्क होता है कि सरकार का काम कोई तेल बेचना नहीं है। विनिवेश के दौर में सरकार ने पहले घाटे में चल रहे पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेस के विनिवेश की नीति रखी। सरकार का कहना था कि इन कंपनियों के विनिवेश से सरकार पर बोझ कम होगा।

नीति आयोग ने डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट को ऐसी 50 कंपनियों की लिस्ट सौंपी है, जिन्हें सरकार बेचना चाहती है। लोकसभा चुनाव के पहले फरवरी में ही नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट ने ऐसी सरकारी कंपनियों की बिक्री की अनुमति दी थी और लक्ष्य रखा था कि 90 हजार करोड़ रुपये इससे जुटाए जाएं, लेकिन अब अर्थव्यवस्था पर ज्यादा दबाव है, इसलिए सरकार चाहती है कि विनिवेश के जरिये अधिक से अधिक धन जुटा लिया जाए।

बिक्री के लिए उपलब्ध कंपनियों की सूची में नीति आयोग ने एनटीपीसी, सीमेंट कार्पोरेशन ऑफ इंडिया, भारत अर्थ मूवर्स और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) जैसी कंपनियों की पहचान की है। यह सभी कंपनियां इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में बहुत मजबूत हैं। नीति आयोग का कहना है कि वक्त आने पर हम ऐसी और भी कंपनियों की लिस्ट बनाएंगे। अधिकारी का कहना है कि एनटीपीसी का बदलपुर प्लांट बंद पड़ा है, उसके पास 400 एकड़ जमीन है। सेल के पास ब्राउन फील्ड प्रोजेक्ट जैसी कंपनियां हैं।

स्कूटर्स इंडिया, भारत पम्प्स एंड कंप्रेसर्स, प्रोजेक्ट एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड, हिन्दुस्तान प्रीफेब, हिन्दुस्तान न्यूजप्रिंट, ब्रिज एंड रूफ कंपनी, हिन्दुस्तान क्लोरोकार्बन्स आदि की भी पहचान बिक्री के लिए की गई है। अब सरकार के निशाने पर मुख्यत: बीपीसीएल और एयर इंडिया है। खास बात यह हैं कि नीति आयोग ने रक्षा संपदा की उन संपत्तियों की भी पहचान कर रखी है, जो मौका आने पर विनिवेश के दांव पर लगाई जा सकती हैं।

नीति आयोग का कहना है कि सैनिक छावनियों में बड़ी-बड़ी जगहें गोल्फ कोर्स और क्लब हाउस के नाम पर आरक्षित करके रखी गई है। उनका कोई उपयोग नहीं है। जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब सरकार ने विदेश संचार निगम लिमिटेड, हिन्दुस्तान ज़िंक, बालको और आईपीसीएल जैसी कंपनियों को प्राइवेट सेक्टर के हाथ में दे दिया था।

मोदी सरकार का यह विनिवेश अभियान इतिहास में सबसे बड़ा विनिवेश अभियान होगा। बीपीसीएल की हिस्सेदारी भारत के पेट्रोलियम कारोबार में 21 प्रतिशत है और देशभर में इसके 15 हजार से ज्यादा पेट्रोल पम्प और 6 हजार से ज्यादा एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर्स हैं। जो भी कंपनी बीपीसीएल खरीदेगी, उसे देश की 14 प्रतिशत ऑयल रिफाइनिंग क्षमता पर नियंत्रण मिल जाएगा। बीपीसीएल पर नियंत्रण के साथ ही उस कंपनी को दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते ऊर्जा बाजार में एक चौथाई फ्यूल मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के अधिकार मिल जाएंगे। बीपीसीएल की मुंबई, कोच्चि, बिना और नुमालीगढ़ में रिफाइनियां हैं, जिनकी क्षमता करीब 4 करोड़ टन की है। उसके पास एलपीजी के 51 बॉटलिंग प्लांट भी हैं।

कर्मचारी यूनियन के नेताओं का कहना है कि हमारी सरकार की आंखों की लाज शर्म खत्म हो गई है। हमारे सामने ही पुरखों की विरासत को बेचा जा रहा है यानी जश्न के लिए घर की नीलामी की तैयारी है। विपक्ष यह पूछने को ही तैयार नहीं है कि बीपीसीएल जैसी कंपनी को आखिर क्यों बेचा जा रहा है? 2018-19 में बीपीसीएल ने 7132 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया था, उसके पहले यह मुनाफा 7976 करोड़ रुपये और उसके पहले 8039 करोड़ रुपये का था। 2011-12 में बीपीसीएल को 1311 करोड़ का ही मुनाफा हुआ था, 7 साल में बीपीसीएल अपना मुनाफा 6 गुना बढ़ा चुकी है। यह वैसा ही है, जैसे सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का एक बार में ही पेट फाड़कर सारी अंडे निकाल लेना।

बीपीसीएल के विनिवेश की कहानी तीन साल पहले ही शुरू हो गई थी, जब हजारों करोड़ के मुनाफे वाली बीपीसीएल को किसी निजी या विदेशी कंपनी को बेचने की व्यवस्था कर दी गई थी। मोदी सरकार ने 2016 में राष्ट्रीयकरण संबंधी कानून रद्द कर दिया था। उस कानून के अभाव में अब बीपीसीएल को बेचने के लिए सरकार को संसद की अनुमति लेने की भी ज़रुरत नहीं पड़ेगी।

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी नहीं रहने से उनका पीएसयू का टैग हट जाएगा और ये कंपनियां स्वतंत्र बोर्ड द्वारा संचालित कंपनियां बन जाएंगी। इन स्वतंत्र बोर्डों में सरकार के पसंदीदा लोग होंगे। स्वतंत्र होने के कारण इन कंपनियों का ऑडिट, सीएजी और सीवीसी जैसी सरकारी एजेंसियां भी नहीं कर पाएंगी। फिर वहां जितने भी घपले और घोटाले होंगे, वे पब्लिक डोमेन में नहीं होंगे। उनकी हिस्सेदारी को खरीदने वाले सारे पूंजीपति या निजी कंपनियां उसकी संपत्तियों पर कब्जा कर लेंगी।

पिछले साल सरकार ने हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन का विनिवेश किया था, लेकिन यह विनिवेश एक सरकारी कंपनी ओएनजीसी ने ही किया था। ओएनजीसी नहीं चाहती थी कि एचपीसीएल का अधिग्रहण करे, लेकिन सरकार के दबाव में उसे करना पड़ा। एचपीसीएल का कामकाज भी अच्छा चल रहा था। ओएनजीसी के नियंत्रण में जाने के बाद कहा जा सकता है कि एचपीसीएल का सारा कामकाज अभी भी सरकारी कंपनी के नियंत्रण में ही है। उसके बाद सरकार ने आईडीबीआई बैंक के लिए विनिवेश प्रक्रिया शुरू की थी, जब कोई नहीं मिला, तब एलआईसी को बैंक का अधिग्रहण करने के लिए कहा गया। विनिवेश प्रक्रिया के लिए सरकार ईटीएफ फंड का उपयोग करती रहती है।

बीपीसीएल में अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए इच्छुक सरकार ने पूरी योजना बना रखी है। यह विकल्प अभी खुला है कि कोई विदेशी कंपनी भी इसमें बोली लगा सकेगी। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार बीपीसीएल का हाल एचपीसीएल से अलग होगा। बीपीसीएल को सीधे-सीधे किसी निजी कंपनी के हाथों में सौंप दिया जाएगा। वह निजी कंपनी बीपीसीएल की संपत्ति के नाम पर सरकारी बैंकों से ही बड़ी राशि कर्ज़ में ले लेगी या वह विदेशी कंपनियों से तालमेल करके उन्हें इसका हिस्सा दे देगी और मुफ्त में अरबों रुपये का मुनाफा कमाएगी।

यह बात कही जा रही हैं कि बीपीसीएल के निजीकरण से अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। कारण यह बताया जा रहा है कि जो भी निजी क्षेत्र की कंपनी बीपीसीएल पर नियंत्रण करेगी, वह और महंगे दामों पर पेट्रोल, डीज़ल और गैस बेच सकेगी। इस कारण कंपनी को ज्यादा मुनाफा होगा और इससे उसके शेयर होल्डरों का मुनाफा अपने आप बढ़ जाएगा।

शेयर होल्डरों का मुनाफा बढ़ने का मतलब यह है कि उपभोक्ता को मिलने वाल ईंधन महंगा हो जाएगा, लेकिन इससे सरकार को कोई लेना-देना नहीं है। सरकार ने एचपीसीएल का अपना हिस्सा ओएनजीसी को 18 प्रतिशत के प्रीमियम पर बेचा था। बीपीसीएल के हिस्से को बेचते वक्त भी सरकार को काफी प्रीमियम मिलने की आशंका हैं। जब से बीपीसीएल के विनिवेश की बातें ज्यादा जोर से शुरू होने लगी हैं, तब से उसके शेयरों का भाव तेजी से उछलता जा रहा है। वर्तमान में बीपीसीएल की नेटवर्थ करीब 55 हजार करोड़ रुपये है। सरकार को आशा है कि अपनी हिस्सेदारी प्रीमियम पर बेचकर वह विनिवेश का आधे से अधिक लक्ष्य पूरा कर सकती है।

बीपीसीएल के कर्मचारी सरकार के कदम का विरोध कर रहे हैं। बीपीसीएल की कोच्ची में स्थिति रिफाइनरी देश की सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी रिफाइनरी है। बीपीसीएल के निजी हाथों में जाने पर वहां के कर्मचारियों के वेतन और भत्ते प्रभावित होंगे। बीपीसीएल में करीब 12 हजार स्थायी कर्मचारी हैं और हजारों कर्मचारी कांट्रेक्ट पर भी हैं। केरल की कोच्चि रिफाइनरी में स्थायी कर्मचारी तो ढाई हजार हैं, लेकिन कांट्रेक्ट पर 6 हजार से अधिक कर्मचारी कार्य कर रहे हैं। अगर किसी विदेशी कंपनी ने बीपीसीएल का हिस्सा खरीदा, तो वह हजारों कर्मचारियों को नौकरी से बाहर करने में नहीं चूकेगी, क्योंकि विदेशी कंपनियों में स्थाई कर्मचारियों के लिए कोई बहुत अच्छी स्थितियां नहीं होतीं। हो सकता है विदेशी कंपनी कुछ यूनिट को बंद भी कर दे और केन्द्रीकृत उत्पादन केन्द्र संचालित करने लगे। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में नियुक्तियां लगभग बंद हो चुकी हैं।

बीपीसीएल की कोच्ची यूनिट में ही कर्मचारियों की नियुक्तियां जारी हैं। केरल की सरकार कोच्ची में बीपीसीएल रिफाइनरी के पास 25 हजार करोड़ के निवेश से एक पेट्रोकेमिकल पार्क की स्थापना करना चाहती थी। वह योजना भी अब खटाई में पड़ती नज़र आ रही है। कर्मचारियों का कहना है कि यह केवल हमारे रोज़गार का सवाल नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय का भी मुद्दा है। कर्मचारी जोर-शोर से आंदोलन की रूपरेखा बना रहे है।

जानकारों का कहना है कि बीपीसीएल का निजीकरण होना दूसरी सरकारी पेट्रोलियम कंपनियों के लिए अच्छा नहीं होगा। उस अवस्था में पेट्रोलियम सेक्टर में जो प्रतिस्पर्धा होगी, वह सही नहीं होगी। ऐसा माना जा रहा है कि रिलायंस पेट्रो केमिकल्स और विदेशी आरामको कंपनी बीपीसीएल में रूचि ले सकती है।

ये दोनों ही कंपनियां बीपीसीएल में बड़ा निवेश कर सकती हैं। आरामको की रूचि रिलायंस में है ही। रिलायंस अपने पेट्रोल पम्प कारोबार में असफल होने के बाद बीपीसीएल के कंधे पर सवार होकर पेट्रोलियम उत्पाद बेच सकता है। निजीकरण के बाद सरकार का इन कंपनियों से कोई लेना-देना रहेगा नहीं।

केन्द्रीय मंत्री पहले ही कह चुके हैं कि सरकार का काम नीतियां बनाना और उन पर अमल कराना है, तेल बेचना नहीं। वर्तमान में केन्द्र सरकार के पास धन की भारी कमी है। राज्यों को जीएसटी से वसूली जाने वाली राशि की भरपाई भी नहीं हो पा रही है। सरकारी विकास योजनाएं अधूरी पड़ी हैं और धीमी गति से चल रही हैं। जीएसटी से वसूली का 60 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को मिलना चाहिए था। वह भी नहीं हो रहा है। डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन भी काफी कम है।

निजी हाथों में जाने के लिए मज़बूर भारत पेट्रोलियम कंपनी अंग्रेजी हुकूमत के दौरान स्थापित की गई थी। पहले भी यह निजी क्षेत्र की ही कंपनी थी। इस कंपनी की स्थापना 1886 में स्कॉटलैंड में की गई थी। बाद में इसका नाम बर्मा ऑयल कंपनी और फिर बर्मा शेल पड़ा। 1928 में एशियाटिक पेट्रोलियम कंपनी (इंडिया) के नाम से इसने कामकाज शुरू किया और भारत में अपना नाम रखा बर्मा शेल। 1950 के दशक में इस कंपनी ने केरोसिन और डीज़ल भी बेचना शुरू किया। साथ ही गैस सिलेंडर का कारोबार भी शुरू किया। 1976 में भारत सरकार ने निजी तेल कंपनियों की दादागिरी के खिलाफ राष्ट्रीयकरण का रास्ता अपनाया और विदेशी तेल कंपनियों बर्मा शेल, एससो और कालटेक्स का राष्ट्रीयकरण किया। 1 अगस्त 1977 को भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन की स्थापना की गई और बॉम्बे हाई में इसने अपनी रिफाइनरी स्थापित की। अब निजी क्षेत्र की यह कंपनी वापस निजी क्षेत्र के हाथों में जा रही है। निजी क्षेत्र की मनमानी के खिलाफ इसका राष्ट्रीयकरण किया गया था और भारी मुनाफा कमाने वाली तथा नवरत्न कंपनियों में शामिल इस कंपनी को वापस निजीकरण के दरवाजे पर धकेला जा रहा है।

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