इंदौर : मध्य भारत के सबसे बड़े साहित्य उत्सव तीन दिवसीय इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल का शुभारंभ एक गरिमामय समारोह में शुक्रवार को इंदौर की ऐतिहासिक धरोहर गांधी हॉल में कबीर गायन से हुआ। मुकेश चौहान के समूह ने जरा धीरे-धीरे हांको मेरे रामजी को सूफियाना अंदाज में प्रस्तुति किया तो सारा हॉल तालियों की गडग़डाहट से गूंज उठा। इसके बाद माजिद खान एवं समूह द्वारा पधारो म्हारे देश की प्रस्तुति दी गई। पश्चात् छोटी सी बालिका वामिका पंड्या द्वारा शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय, डॉ विक्रम संपत, वैज्ञानिक एवं लेखक डॉ. आनंद रंगनाथन, सद्गुरु अवस्थी, अभिषेक श्रीवास्तव ने दीप प्रज्वलन से किया।
लिटरेचर फेस्टिवल में वैचारिक मंथन का आगाज स्वातंत्र्यवीर सावरकर व्यक्ति, मिथक और भ्रांतियां पर डॉ. विक्रम संपत के टॉक शो के साथ हुआ। उनसे बातचीत की वैज्ञानिक एवं लेखक डॉ. आनंद रंगनाथन ने। इस मौके पर विक्रम संपत ने कहा कि 20 वर्ष पहले स्वातंत्र्यवीर सावरकर के बारे में बात करना भी मुश्किल था, आज वह स्थिति नहीं है। जब स्वर कोकिला लता मंगेश के भाई हृदयनाथ मंगेशकर ने सावरकर की कविताओं को स्वरबद्ध कर आकाशवाणी से प्रसारित किया तो उन्हें अपनी नौकरी तक छोडऩा पड़ी थी।
उन्होंने कहा कि यह कहना एकदम गलत है कि सभी मुस्लिम गलत या आतंकवादी होते हैं। इतिहास उठाकर देखें तो हमारे यहां रसखान कवि, रहीम और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे मुस्लिम भी हुए हैं जिन्होंने समाज में अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया। एक प्रश्न के जवाब में संपत ने कहा कि किसी व्यक्ति विशेष को जीते-जी या मृत्यु उपरांत भारत रत्न मिले जरूरी नहीं। कईं हस्तियों को मरणोपरांत भी भारत रत्न मिला। इसलिए वीर सावरकर को भी मिल सकता है।
दूसरे सत्र में विचारों में पक्षपात विषय पर वैज्ञानिक एवं लेखक डॉ. आनंद रंगनाथन से लेखिका डॉ. सरिता राव एवं सद्गुरूशरण अवस्थी ने बातचीत की। इस मौके पर डॉ. आनंद रंगनाथन ने कहा कि सोशल मीडिया किसी के लिए अच्छा और किसी के लिए बुरा हो सकता है, यह व्यक्ति पर निर्भर है कि वह इस मीडिया का किस तरह से इस्तेमाल करता है। दरअसल सोशल मीडिया अपनी बात को कहने का एक माध्यम है। जब ये मीडिया नहीं आया था तब लोग यही समझते थे कि देश को आजादी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ही दिलाई है और देश पर सबसे अच्छा शासन इंदिरा गांधी ने ही किया है जबकि यह सही नहीं है। आपातकाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
सोशल मीडिया पर हर व्यक्ति अपनी-अपनी भावना और बात को व्यक्त कर सकता है। यदि आपको अपनी बात व्यापाक रूप से कहनी है तो हमें अलग-अलग तरह की किताबों का अध्ययन करना होगा। अभिव्यक्ति की आजादी का अपना महत्व है। विज्ञान पत्रकारिता है और पत्रकारित भी एक विज्ञान है। हमारा दूरदर्शन आज भी सरकार की भाषा ही बोलता है। एक प्रश्न के उत्तर में श्री रंगनाथन ने कहा कि हमारी सोच और व्यापार दोनों अलग-अलग होती है। हम अपने व्यापार पर अपनी आईडियोलॉजी को नहीं थोपें और अपनी आईडियोलॉजी पर व्यापार नहीं थोपें। दोनों को अलग-अलग रहने दें। अतिथियों का स्वागत प्रवीण शर्मा ने किया।
लक्ष्य को पाने की ललक जरूरी है।
संस्कृति के रंग, सोनल मानसिंह के संग विषय पर पद्मविभूषण सोनल मानसिंह से बातचीत सुचित्रा हरमलकर एवं सुगंधा बेहरे ने की। इस दौरान सोनल मानसिंह ने कहा कि, किसी भी कार्य में पूर्णता तभी मिलती है जब व्यक्ति के मन में लक्ष्य को पाने की ललक हो। आज कथक सीखने के तमाम साधन और सुविधाएं होने के बावजूद कथक में कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर के नाम कम देखने को मिलते हैं। इसका मुख्य कारण भी यही है। दरअसल नृत्य नाचना भर नहीं है। यह एक तरह की साधना और तपस्या है। हमारा शरीर भी एक वीणा है, पखावज है और उससे सत्यम, शिवम और सुंदरम की अभिव्यक्ति दे सकते हैं। कलाकार को भाषा और ज्ञान की मर्यादा होनी चाहिए।
महिला सशक्तिकरण आयातित शब्द है।
एक सवाल के जवाब में सोनल मानसिंह ने कहा कि मुझे महिला सशक्तिकरण शब्द अच्छा नहीं लगता है, हमारे यहां कि महिलाएं शुरू से ही सशक्त रहीं। आज भी हम देखें तो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। स्त्री और पुरुष एक रथ के दो पहिए हैं। इस दुनिया में स्त्रियों को ही मातृत्व का वरदान मिला है। सृष्टि का धारण स्त्री करती है। नारी वह है जिसमें नर समाया हुआ है। यह गलत धारणा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पैरों के स्पर्श से अहिल्या पुनर्जिवित हुई। श्रीराम मर्यादा में बंधे और क्षत्रिय कुल के हैं इसलिए यह संभव नहीं है कि वे अपने पैरों से पाषाण को स्पर्श कर अहिल्या को जीवित कर दें। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि गुरू शिष्य परंपरा सहस्त्र वर्ष पुरानी है। जो आज भी जारी है। शिष्य को अपने गुरु के प्रति न केवल श्रद्धा का भाव रखना चाहिए, वरनï् उसका पूरे मनायोग के साथ चरण स्पर्श भी करना चाहिए।
दो पुस्तकों का किया विमोचन।
इस मौके पर पद़्मविभूषण सोनल मानसिंह ने वरिष्ठ लेखक एसके मिश्रा की पूस्तक जीरो एंड बियांड और लेखिका अतिदि सिंह भदौरिया की पूस्तक खामोशियों की गूंज का विमोचन किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ कथाकार डॉ. शरद पगारे, प्रो. सरोज कुमार, नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, हरेराम वाजपेयी, सत्यनारायण व्यास, प्रशासनिक अधिकारी सपना शिवाले सोलंकी, विनीता तिवारी, ज्योति जैन, अमर चढ्ढा, संध्या राय चौधरी, राधेश्याम यादव, मुकेश तिवारी, सदाशिव कौतुक, सीमा तिवारी सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी एवं गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।
अलग-अलग सत्रों का संचालन सरिता राव, सुगंधा बहरे, सुचित्रा हरमलकर ने किया।
आयोजक प्रवीण शर्मा ने बताया कि साहित्य उत्सव के दूसरे दिन शनिवार 25 नवंबर को सुबह 9.30 बजे से रात्रि 8 बजे तक 14 सत्र होंगे।