इदौर : मप्र मराठी साहित्य सम्मेलन के तीसरे और अंतिम दिन मन की बात गीत – संगीत के साथ हुई। लीक से हटकर यह एक अलहदा प्रयोग था जिसमें डॉ.सुखदा भिसे ने मन के भावों, संवेदनाओं और कल्पनाओं की व्याख्या गीत- सगीत के माध्यम से श्रोताओं तक पहुंचाने की कवायद की। शहर के प्रसिद्ध सगीतज्ञ गौतम काळे और उनके शिष्यों ने मनोभावों से जुड़े मराठी,हिदी गीतों की बानगी पेश की। इनमे शास्त्रीय सगीत की बंदिशों का भी समावेश था।
डॉ.सुखदा भिसे ने सुख दुःख को लेकर मन की अवधारणाओं को विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से अवगत कराया। चंचल मन को धैर्य रखते हुए स्थिर अवस्था में कैसे लाएं इसका आत्मावलोकन भी उन्होंने श्रोताओं को कराया। सुखदा भिसे के कथन के अनुरूप गौतम काळे और उनके शिष्यों द्वारा पेश किए गए गीत कार्यक्रम में रंग भरने के साथ लोगों के मन को छूने में भी कामयाब रहे।
प्रीतमलाल दुआ सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारभ डॉ.शशाक वझे व पुरुषोत्तम सप्रे ने किया। मुक्त संवाद साहित्यिक समिति के प्रमुख मोहन रेडगावकर ने बताया कि 12 वे मराठी साहित्य सम्मेलन में पुस्तक प्रदर्शनी से लेकर साहित्य व सगीत के कार्यक्रमों को शहर के मराठीभाषी ही नही बल्कि गैरमराठी भाषियों का भी जोरदार प्रतिसाद मिला।