यादों में जिंदा रहेंगे अतुलनीय ‘ अतुल ‘

  
Last Updated:  August 1, 2019 " 04:01 pm"

इंदौर: अतुल एक अतुलनीय व्यक्ति थे, जो लाइम लाइट से हमेशा दूर रहते थे, पर शहर के हर सामाजिक, सांस्कृतिक, रचनात्मक और बौद्धिक कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी हमेशा रहती थी। यह मौजूदगी श्रोता की तरह नहीं, बल्कि आयोजक की भूमिका में होती थी। हमेशा दूसरों की मदद करने वाले एक अच्छे इंसान की कमी तो रहेगी, पर वे हमारी यादों में हमेशा रहेंगे। ये विचार इंदौर प्रेस क्लब में स्व. लागू की स्मृति में गुरुवार को आयोजित कार्यक्रम ‘यादों में अतुल’ में शहर के प्रबुद्धजनों ने व्यक्त किए। दिवंगत वरिष्ठ पत्रकार श्री अतुल लागू की याद में आयोजित इस कार्यक्रम में शहर की पत्रकार बिरादरी, खेल संगठन से जुड़े लोग, सांस्कृतिक एवं संगीत संस्थाओं के पदाधिकारी तथा साहित्यकार शामिल हुए। वक्ताओं ने श्री लागू के व्यक्तित्व और कृतित्व को लेकर अपने-अपने संस्मरण साझा किए। कार्यक्रम के प्रारंभ में इंदौर प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने कहा कि हम यहां श्री लागू को श्रद्धांजलि देने नहीं बल्कि उनसे जुड़ी यादों को ताजा करने के लिए एकत्र हुए हैं। सबका कहना था कि वे जैसे थे, उसी तरीके से हम उन्हें याद करें। काहे का शोक, काहे की श्रद्धांजलि, यह सब उन्हें पसंद ही नहीं था। श्री तिवारी ने कहा कि इंदौर प्रेस क्लब में श्री लागू की याद को अक्षुण्ण रखने के लिए अतुल लागू पुस्तक गैलरी स्थापित की जाएगी।
खास बात यह रही है कि हर संस्मरण श्री लागू के एक नए व्यक्तित्व का दर्शन कराने वाला था। इंदौर प्रेस क्लब में वर्तमान में तीसरी पीढ़ी आ चुकी है। श्री लागू का इन युवा मीडियाकर्मियों से भी मित्रवत नाता रहा है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व महाधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने कहा कि जो आया है, उसे जाना है, यही विधान है। पर लागू अपने पीछे एक अलग पहचान छोड़ गए हैं, जो हमेशा कायम रहेगी। अभ्यास मंडल के संस्थापक मुकुन्द कुलकर्णी ने कहा हमने एक निष्ठावान, सार्वजनिक कार्यकर्ता खो दिया। वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने कहा अतुल का जाना एक ईमानदार साम्यवाद का ढहना है। वे जीवन के प्रति ईमानदार थे और शहर के हर अच्छे कार्यक्रम में हमेशा मिलते थे। भोपाल से विशेष रूप से आए वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने चार दशक की यादों को साझा करते हुए कहा कि एक बहुआयामी व्यक्तित्व को चंद शब्दों में कैसे समेटा जा सकता है। कितनी बातें करें। भारत में हुए एशियाड में उनकी टेबल टेनिस में अंपायरिंग का जिक्र करें या उनके पुस्तक मेलों की बात करें। साम्यवादी आंदोलन में उनकी शिरकत और कोपेनहेगन सम्मेलन के लिए रशिया यात्रा की। हमारे युवा पत्रकार उनकी इस उपलब्धि के बारे में तो जानते ही न हो, और उन्होंने अपनी इस महान उपलब्धि का जिक्र शायद ही कभी किया हो। वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी ने श्री लागू को मस्तमौला और यारी निभाने वाला दोस्त करार दिया। एमपीसीए के सचिव मिलिन्द कनमड़ीकर ने श्री लागू को बड़ा भाई बताते हुए कहा कि उनके कई रूप थे। क्रिकेट भी उन्हीं में से एक है। इंदौर में होने वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मैचों में मीडिया वालेंटियर के रूप में उन्होंने खूब सेवाएं दीं।
पद्मश्री अभय छजलानी ने कहा अतुल जी गंभीर पाठक, चिंतक और लेखक थे। उनका मन समाज की व्यवस्थाओं को लेकर आंदोलित रहता था। हमारी कोशिश होना चाहिए कि उनके विचारों को चिरस्थायी कैसे बनाएं। पद्मश्री जनक पलटा ने कहा कि वे मुझे हमेशा छोटी बहन की तरह स्नेह करते थे, पर वे संबोधन में मुझे बॉस कहते थे। पद्मश्री भालू मोंढे ने भी श्री लागू से जुड़ी यादों को साझा किया।
वरिष्ठ पत्रकार जीवन साहू ने कहा कि अतुल के विलक्षण व्यक्तित्व का सबसे बड़ा उदाहरण है इंदौर प्रेस क्लब का चुनाव। जब वे कोषाध्यक्ष पद पर चुनाव लड़े तो उनके सामने किसी ने भी नामांकन नहीं भरा और वे निर्विरोध निर्वाचित हुए। वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने कहा कि दोस्त बनाना और दोस्ती निभाना लागू जी से सीखा जा सकता है। पत्रकार अनिल त्यागी ने पुरानी यादों को ताजा करते हुए बताया कि वे पुस्तकों के प्रति बहुत गहरी आस्था रखते थे। ये कहा जा सकता है कि शहर में पढऩे, पढ़ाने का दौर आबाद हुआ तो इसमें अतुल जी का योगदान कम नहीं। पत्रकार चंद्रशेखर शर्मा ने उन्हें हरफनमौला व्यक्ति बताते हुए कहा कि वे चलती-फिरती लाइब्रेरी थे। पत्रकार जयश्री पिंगले ने कहा कि हर उम्र और हर वर्ग में वे आसानी से घुलमिल जाते थे। वरिष्ठ पत्रकार नवीन जैन ने कहा कि वे पक्के कॉमरेड थे। जब भोपाल गैस कांड हुआ तो वे अकेले भोपाल चल पड़े। खुद की जान की चिंता न थी, उस कांड में जान गंवाने वाले लोगों का दाह संस्कार उन्होंने किया।
सानंद न्यास के सचिव जयंत भिसे ने कहा कि उन्हें कॉमरेड कहा जाता है। अपनी विचारधारा को कभी दूसरों पर थोपने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की। वरिष्ठ भाजपा नेता गोविंद मालू ने भी इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हम संघ विचारधारा के थे, पर लागू जी के साथ चार दशकों के संबंधों में विचारधारा कभी आड़े नहीं आई।

जब न चाहते हुए भी माहौल गमगीन हो गया।

स्मृति प्रसंग को आम श्रद्धांजलि सभा से अलग रखते हुए सिर्फ लागू जी की यादों पर केंद्रित किया गया था। यही लागू जी की भी इच्छा थी। लागू जी पुत्री मोनिका सोलंकी ने जब अपने पिता को याद किया तो उसका गला रुंध गया। नम आंखें और भरी हुई आवाज में मोनिका ने इतना ही कहा कि बाबा प्लीज लौटकर आना, आप कहीं नहीं गए हैं। आपने सबसे दिल से प्यार किया और हमें हर परिस्थिति में जीना सिखाया। बहू मानसी ने कहा मेरा उनसे रिश्ता टॉम एंड जैरी जैसा था। वे हर किस्से को सिलसिलेवार सुनाते थे। आश्रुपूरित आंखों से वह बोली अनन्त का बेटा अनन्त शांति के लिए अनन्त में विलीन हो गया। वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता और श्री लागू के बहनोई कॉमरेड बंसत शिंत्रे ने कहा कि अतुल का जाना चौंकाने वाली घटना है। वे गुणों की खान थे और सदैव हमारी स्मृति में बने रहेंगे। श्री लागू के बचन के मित्र दत्तात्रेय बापट ने कहा कि वे बहुत यारबाज और संवेदनशील व्यक्ति थे। मिजाज से नास्तिक थे, पर हमारी आस्तिकता पर कभी टोका-टोकी नहीं करते थे।
कार्यक्रम में पूर्व सांसद कल्याण जैन, मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति की ओर से हारेराम वाजपेयी, अभ्यास मंडल के अध्यक्ष रामेश्वर गुप्ता, संगीत कला संदेश के संजीव गवते, अभिषेक गावड़े, संस्था सुरीली बिछात के गोपाल बाधवा, विजय खन्ना, सेवा सुरभि के ओम नरेडा, छत्रपति शिवाजी राज्याभिषेक दिवस के संस्थापक इंजीनियर श्रीनिवास कुटुम्बले ने अपनी यादों को साझा किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल, प्रदीप जोशी, संजय त्रिपाठी, वरिष्ठ भाजपा नेता ललित पोरवाल, साहित्यकार प्रदीप नवीन, गायिका सपना केकरे, डॉ. कुमारी रायसिंघानी, गायक अन्नू शर्मा, संगीताचार्य सुनील मसूरकर, कम्युनिस्ट पार्टी के सोहनलाल शिंदे, कैलाश गोठानिया, दिलीप चिंचालकर, सुबोध होल्कर, उपेन्द्र उपाध्याय, पत्रकार राजेंद्र कोपरगांवकर, किरण वाइकर, प्रदीप मिश्रा, निलेश राठौर सहित शहर के कई प्रबुद्धजन, समाजसेवी, श्री लागू से स्नेह रखने वाले कई लोग मौजूद थे।
अंत में आभार महासचिव नवनीत शुक्ला ने माना। उन्होंने कहा कि हमने उन्हें कभी नाराज होते नहीं देखा और वे सबकी मदद के लिए तत्पर रहते थे। अपनी पीड़ा को कभी उन्होंने दूसरों से साझा नहीं किया। बस कभी पूछा तो ठहाका लगाकर बात बदल दिया करते थे। कार्यक्रम के बाद श्री लागू की याद में प्रेस क्लब परिसर में एक पौधा भी लगाया गया।

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