सानंद के मंच पर किया गया इस नाटक का मंचन।
इन्दौर : युद्ध की विभीषिका में मानवीय संवेदना का अर्थ और उसकी अहमियत को रेखांकित करता मराठी नाटक देव माणूस का मंचन सानंद न्यास के मंच पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के खंडवा रोड स्थित सभागृह में किया गया।
दिल को छू लेने वाले इस संवेदनशील नाटक का कथानक दरअसल एक युद्ध की कहानी है, जिसे डायरी के रूप में लिखा गया है। नाटककार शांतनु चंद्रात्रे ने सीरिया युद्ध की विभीषिका को नाटक का रूप देते हुए उसे मार्मिक पटकथा में परिवर्तित किया है। नाटक का केंद्रीय पात्र एक डॉक्टर है जो सीरिया के ऐसे शहरों में जाकर युद्ध पीड़ितों की सेवा करता है, जहां आसानी से चिकित्सा उपलब्ध नहीं है। ऐसे युद्धग्रस्त शहरों में डॉक्टर को जिन विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, घायल मरीजों की पीड़ा,उनकी बेबसी युद्ध से मानवता का हो रहा नुकसान ये तमाम पहलू नाटक के विभिन्न प्रसंगों के जरिए दर्शकों के सामने आकर उन्हें झकझोर देते हैं। युद्धभूमि में एक डॉक्टर को केवल चिकित्सा ही नहीं करनी पड़ती बल्कि मरीजों में जीने की उम्मीद भी जगानी पड़ती है। ऐसे मरीजों का मनोविज्ञान क्या होता है और डॉक्टर किस तरह से उसे हौसला देते हैं, इसे बेहद संवेदनशीलता के साथ नाटक में उकेरा गया है। इस तरह के कथानक पर नाटक लिखना और उसे प्रस्तुत करना बेहद चुनौतीपूर्ण है। लेखक शांतनु चंद्रात्रे और निर्देशक जयेश आप्टे इस चुनौती को न केवल स्वीकार किया बल्कि एक अविस्मरणीय और मर्मस्पर्शी नाटक के रूप में दर्शकों के सामने रखा। युद्धग्रस्त शहर को मंच पर साकार करना भी एक चुनौती थी, जिसे नेपथ्यकार हर्षद माने, विशाल नवाथे, अंकुश कांबळी ने बखूबी निभाया। इसी तरह प्रकाश योजना ने भी नाटक का प्रभाव बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इसके लिए अमोघ फड़के की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।
कलाकारों ने निभाई एक से अधिक भूमिका।
नाटक की विशेषता यह है कि इसकी 15 भूमिकाओं को 6 कलाकारों ने अदा किया है। यानी एक कलाकार ने एक से अधिक भूमिका निभाई हैं। मेकअप और वेशभूषा के मामले में
क्रमशः सचिन वारीक और अपूर्वा शौचे भी कहीं कमतर नहीं पड़े।
नाटक का प्रमुख संदेश यही है कि युद्ध कभी किसी प्रश्न का उत्तर नहीं होता। दुनिया का प्रत्येक मनुष्य शांति से जीना चाहता है। युद्ध किसी को भी पसंद नहीं होता क्योंकि युद्ध किसी समस्या का कभी हल नहीं हो सकता। युद्ध रत सैनिकों को भी युद्ध से नफरत रहती हैं।नाटक का यह भी संदेश है कि शांति मनुष्य के भीतर होती हैं। इसलिए मानवता के लिए हर एक व्यक्ति को अपने भीतर झांकना चाहिए।
श्रीपाद देशपांडे ने डॉक्टर की केंद्रीय भूमिका निभाते हुए अविस्मरणीय अभिनय किया है। वे नाटक में प्रारंभ से अंत तक मौजूद रहते हैं। पूरा नाटक उन्होंने अपने कंधे पर उठा रखा है। नाटक यह भी बताता है कि समाज में चिकित्सकों का स्थान कितना महत्वपूर्ण है। चिकित्सक,दरअसल देवदूत की तरह होते हैं। नाटक के अन्य कलाकार थे प्रणव प्रभाकर, दुर्गेश बुधकर, आशीष चंद्रचूड, शर्वरी पेठकर और ऋतुजा पाठक। सभी कलाकारों का भावाभिनय कमाल का था।
भद्रकाली प्रॉडक्शन प्रस्तुत नाटक ‘देवमाणूस’ के सानंद के पांच समूहों के लिए पांच शो मंचित किए गए।
ये थे नाटक के किरदार :-
प्रणव प्रभाकर – फिरोज, करीम, अब्दुल्ला, मुस्तफा।
दुर्गेश बुधकर – डॉक्टर एलियट, दस्तगीर, साहिर।
आशीष चंद्रचूड़ – शोएब,विद्रोही कवि, रहमान।
शर्वरी पेठकर – हमीदा, जहीरा।
ऋतुजा पाठक – शबाना, शाहीन
श्रीपाद देशपांडे – डॉ राघव दीक्षित ।
पर्दे के पीछे के नायक :-
लेखक-शंतनु चंद्रात्रे,
दिग्दर्शक-जयेश आपटे,
नेपथ्य-हर्षद माने, विशाल नवाथे, अंकुश कांबळी, संगीत – शुभम जोशी, सायली सावरकर, प्रकाश योजना – अमोघ फडके,
वेशभूषा – अपूर्वा शौचे,
रंगभूषा- सचिन वारीक,
व्यवस्थापक – श्रीकार कुळकर्णी,
निर्माती – कविता मच्छिंद्र कांबळी