जब तक गांव जीवित रहेंगे, लोक संस्कृति जीवित रहेगी।
नर्मदा साहित्य मंथन के तीसरे और अंतिम दिन विभिन्न विषयों पर वक्ताओं ने रखे विचार।
धार : नर्मदा साहित्य मंथन के तीसरे और अंतिम दिन भी विभिन्न विषयों पर अलग – अलग सत्रों में विचार मंथन का दौर जारी रहा। प्रारंभ में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के ब्रह्मलीन होने पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने के साथ हुआ। इसके बाद लोक ग़ायक पद्मश्री कालूराम बामनिया एवं सुश्री अर्पिता बामनिया द्वारा संत कबीर रचित भजन की प्रस्तुति दी गई ।
जब तक गांव जीवित रहेंगे, लोक संस्कृति जीवित रहेगी।
प्रथम सत्र में सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. श्रीराम परिहार का लोक संस्कृति की परंपरा विषय पर व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा कि लोक संस्कृति मनुष्य जीवन जितनी ही पुरानी हैं। जब तक गाँव जीवित रहेंगे हमारी लोक संस्कृति जीवित रहेगी। प्रकृति किसी भी भेदभाव के बिना अपना स्नेह और संसाधन सभी को उपलब्ध कराती हैं इसलिए पुरातन से ही लोक सदैव से प्रकृति पूजक रहा हैं। लोक परंपराओं को जीवित रखने के लिए स्व को जीवित रखना होगा।
हमारे देश में लोग पहले घर के सामने पक्षियों को दाना डालते हैं और उसके बाद ही जलपान करते हैं ये भी हमारी लोक परंपराएँ ही हैं। उन्होंने कहा “ लोक भाषा को बचाने की शुरुआत हमें अपने घर से करनी होगी । लोक भाषाओं के संरक्षण से ही लोक संस्कृति और साहित्य संरक्षित हो पाएगा ” ।इस सत्र का संचालन डॉ. राजेश रावल ने किया।
लोक कल्याण को समर्पित रहा छत्रपति शिवाजी महाराज का शासन।
द्वितीय सत्र में “छत्रपति शिवाजी महाराज के सपनों का भारत “ विषय पर धर्म संस्कृति संगम केंद्र काशी के समन्वयक संदीप राव महिंद ने अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कहाँ कि शिवाजी महाराज ने अपने शासनकाल में देश के सभी ग़ुलामी के चिन्हों को मिटाने का कार्य किया। आज हमे देश में स्थित समस्त ऐसे कलंक ध्वस्त करने की आवश्यकता हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने सामंतवाद की व्यवस्था समाप्त कर दी थी, उन्होंने ऐसी व्यवस्था खड़ी की थी जिसमें किसान मजदूर और व्यवसायी हर वर्ग समृद्ध था। समाज के प्रत्येक वर्ग के कल्याण के लिए समर्पित शासन के कारण कारण प्रजा ने उन्हे ‘जाणता राजा’ कहा।
शिवाजी महाराज और हिंदवी स्वराज के प्रति सम्मान इसी बात से पता चलता हैं कि रायगढ़ में आज भी युवा क़िले की चढ़ाई करते समय अपने जूते-चप्पल क़िले के नीचे उतारते हैं क्योंकि वह क़िले पर नहीं बल्कि स्वराज के मंदिर के दर्शन के लिए जाते हैं। देश में फिर एक बार स्वाभिमान स्थापना का प्रारंभ हुआ हैं। आज से 350 वर्ष पूर्व शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक और हिंदवी स्वराज की स्थापना ही सही मायनों में भारत का पहला स्वतंत्रता दिवस हैं। दूसरा जब हमारी राजकीय व्यवस्था बदली वो अर्थात् 15 अगस्त और तीसरा 22 जनवरी जिस दिन अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई। सत्र का संचालन सचिन बघेल ने किया।
गोवा में हजारों हिंदुओं ने अपना बलिदान देकर धर्म की रक्षा की।
तृतीय सत्र “हिंदू नरसंहार” विषय पर केंद्रित रहा। इस पर प्रसिद्ध सोशल मीडिया इंफ्ल्यूएंसर श्रीमती शैफ़ाली वैद्य ने अपने विचार रखे। पुर्तगाली सरकार के समय पोप निकोलस ने सन् 1546 में एक आदेश निकाला जिसमें मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया और हिंदुओं को क्रिश्चियन बनाने का कहा था। पोप ने कहा कि ये ईसाइयों का कर्तव्य है। आज भी पुराने गोवा में जो अधिकतर चर्च बने हैं मंदिरों को तोड़कर उसी की ज़मीन पर बने हैं। हिंदुओं पर चोटी (शिखा) रखने पर भी टैक्स लगाया। उनकी मातृभाषा बोलने पर भी प्रतिबंध लगाया गया। हिंदू धर्म की पुस्तकें, साहित्य रखने पर भी प्रतिबंध था। 15 साल से कम उम्र के बच्चों को क्रिश्चियन साहित्य पढ़ना अनिवार्य था। यही कारण था कि सन् 1560 के बाद लगभग बीस हज़ार हिंदू परिवार पुर्तगाल छोड़कर चले गये। जो लोग नहीं गये ऐसे
लगभग 16741 लोगो पर प्रकरण दर्ज किए गए । अधिकतर को प्रताड़ना देकर मार दिया गया। हज़ारो बलिदान देकर गोवा के हिंदुओं ने अपने धर्म की रक्षा की हैं। उन्होंने कहा कि आज देशभर में सॉफ्ट कन्वर्शन हो रहा हैं जो उस समय के कन्वर्शन से बहुत अधिक घातक हैं। इससे हम सबको मिलकर लड़ने की आवश्यकता हैं।सत्र संचालन समीक्षा नायक ने किया।
फिल्मों ने हमारी धर्म – संस्कृति को बहुत नुकसान पहुंचाया।
चौथे सत्र में सक्रिय पत्रकारिता से जुड़े वरिष्ठ लेखक अनंत विजय ने “समाज की भावनाओं से खिलवाड़ करता सिनेमा” विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि किसी भी सभ्यता को नष्ट करने के लिये उसकी भाषा को नष्ट कर दिया जाता हैं यही काम कई दशकों तक हमारे साथ हुआ । उन्होंने कहा कला हमेशा राजा का आश्रय चाहती है परंतु भारतीय सिनेमा दादा साहेब फाल्के के भक्तिकाल के सिनेमा से नेहरू काल में तुष्टिकरण के चरम पर पहुँचा और सामाजिक भेद उत्पन्न करने वाली फ़िल्में बनने लगी जिसने समाज का बहुत नुक़सान किया। इसके बाद इंदिरा गांधी ने सिनेमा और शिक्षा को वामपंथी विचारधारा को गिफ्ट कर दिया। उन्होंने उसी विचारधारा से उसे आगे बढ़ाया। परंतु अब समय बदल गया हैं अब लिटरेचर फेस्टिवल के स्टॉल पर प्रथम पंक्ति में राम मंदिर और संघ का साहित्य उपलब्ध रहता हैं।
उन्होंने कहा कि हिंदुओं में सहिष्णुता के कारण ही वो अपने पर अत्याचार करने वालों को माफ़ कर देता हैं। फ़िल्मों के माध्यम से दर्शकों के दिमाग़ में विष फैलाने का काम दशकों से जारी रहा परंतु अब समय बदल गया है। त्रिस्तरीय व्यवस्था के कारण अब कोई हमारी सामाजिक एवं धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता।
उन्होंने कहा कि ओटीटी प्लेटफ़ार्म पर जो कंटेंट युवाओं को भ्रमित कर रहे हैं, उन्हें देखना बंद करना होगा तभी इस प्रकार के कंटेंट बनना बंद होंगे। दर्शक सदैव स्वविवेक से निर्णय लेता हैं, समय समय पर वह राष्ट्र के पक्ष में निर्णय लेते रहे हैं और आने वाले समय में भी दर्शक अपनी भूमिका निभाते रहेंगे। सत्र का संचालन देवेंद्र मालवीय ने किया।
चौथे और अंतिम सत्र के साथ तीन दिवसीय नर्मदा साहित्य मंथन का भी समापन हुआ।