शून्य में समा गया कारपोरेट पत्रकारिता का शिखर

  
Last Updated:  May 22, 2021 " 04:19 pm"

🔺कीर्ति राणा🔺

प्रकाश बियाणी जी को याद करता हूं तो दैनिक भास्कर इंदौर के वो दिन याद आ जाते हैं…वो पहली मंजिल पर बैठते थे…तब कंप्यूटर रूम में अपनी लिखी कॉपी देने जाते तो हेलो-हाय हो जाती थी। कहा जाए तो तब वो कॉरपोरेट घरानों से जुड़ी छोटी-छोटी खबरें लिखते थे। जैसे जैसे भास्कर कॉरपोरेट कल्चर में ढलता गया, उनकी शून्य से शुरुआत जैसी कॉरपोरेट वाली पत्रकारिता भी शिखर छूने लगी और बीते एक-दो दशक में ऐसा बदलाव आया कि हिन्दी पत्रकारिता में औद्योगिक घरानों की खबरों में बियानी जी ने ‘शून्य से शिखर’ तक पहुंचे प्रसिद्ध उद्योगपतियों की फर्श से अर्श तक की वो कहानियां लिखीं कि उन किताबों को कॉरपोरेट हॉउस दीपावली गिफ्ट के साथ आदान-प्रदान करने लगे।
किसने सोचा था कि बियाणी जी कोरोना को हराने के बाद ब्लेक फंगस का शिकार होंगे और न्यूज वॉयरल होगी कि वो हार गए हैं। गीता दर्शन और पंच तत्वों में भरोसा करने वाला प्रकृति प्रेमी समाज इन दो सालों में लगभग हर दिन झटके सह रहा है और मान रहा है कि आज नहीं तो कल मेल-मुलाकात का दौर फिर आएगा।मेले लगेंगे, जीमना-जूठना होगा, उठावनों वाली रस्म अदायगी भी होगी लेकिन इन सारे पारंपरिक आयोजन में अब जो कई चेहरे नजर नहीं आएंगे उनमें एक चेहरा बियाणी जी का भी रहेगा।
एक साल पहले वाले कोरोना से यह कोरोना अधिक घातक है। तीसरी लहर की खूनी पदचाप भी सुनाई देने लगी है। एक दिन जाना सभी को है लेकिन इस तरह जाना तो दिल में छेद होने जैसा ही है।परिजनों को जब डॉक्टर्स भरोसा दिला रहे हों कि दो चार दिन में छुट्टी कर सकते हैं,इस जानकारी को इंदौर प्रेस क्लब और इंदौर मीडिया यूनाइटेड के कोरोना बुलेटिन में एक दिन पहले तक हम बेहतर स्वास्थ्य के रूप में जारी कर रहे हों कि अचानक ब्रेकिंग न्यूज की तरह प्रकाश बियाणी नहीं रहे-यह खबर चलानी पड़ जाए तो क्या माना जाए? इंदौर की पत्रकारिता देश भर में पहचानी जाती है और जब से कॉरपोरेट कल्चर वाला जर्नलिज्म शुरु हुआ, प्रकाश बियाणी ने देश भर में अपनी पहचान बना ली थी।भास्कर के लिए या लोकमत के लिए वो हिंदी में लिखते थे, उनका लिखा मराठी और गुजराती में ट्रांसलेट कर के छापना उन अखबारोँ की मजबूरी इसलिए भी रही कि कारपोरेट घरानों से शुभ-लाभ वाले संबंधों की प्रगाढ़ता बनाए रखना जरूरी था। बियाणी जी को श्रेय जाता है कॉरपोरेट जर्नलिज्म को शिखर पर ले जाने का, इस कोरोना ने उन्हें शिखर से शून्य में मिला दिया। हमारे अपने, शहर की पहचान बने लोग असमय अनंत यात्रा पर जा रहे हैं, यह क्रम इतनी तेजी से चल रहा है कि हमें कुछ समय बाद दिमाग पर यह जोर डालना पड़ेगा कि फलां व्यक्ति जिंदा है या नहीं। कभी सपने में नहीं सोचा था कि शवयात्रा-उठावने डेढ़-दो पेज में छपने लगेंगे और नामचीन अखबार उठावनों के प्रकाशन पर दस प्रतिशत की छूट देने लगेंगे।अब तो उठावने भी गौर से देखना पड़ते हैं कि कोई अपना परिचित तो नहीं है इस भीड़ में।कोरोना ने क्या हाल कर दिया है हस्तियों की अस्थियां भी ढूंढे नहीं मिल रही।तीन दिन बाद चुने जाने वाले फूल अगले ही दिन समय पर जाकर नहीं समेटें तो उस स्थान पर दूसरी चिता धधकती नजर आती है। इस कोराना की परीक्षा में जिला फेल, राज्य फेल, केंद्र फेल…! सब फेल हो जाएं तो ले देकर वही सहारा बचता है जिसे ईश्वर कहते हैं, उसी परमपिता से प्रार्थना है कि बियाणी जी की आत्मा को भी मोक्ष प्रदान करना ।

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