इंदौर : आरएसएस से जुड़ी संस्था संस्कृत भारती के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीश देवपूजारी ने इंदौर प्रवास के दौरान मीडियाकर्मियों से चर्चा करते हुए संस्कृत भाषा के उत्थान में संस्कृत भारती द्वारा किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि संस्कृत देश को जोड़ने वाली भाषा है, यह घर- घर पहुंचे, इसी उद्देश्य को लेकर बीते 4 दशक से संस्था संस्कृत भारती कार्य कर रही है। देश के 84 फीसदी हिस्से अर्थात 610 जिलों में और 24 देशों में भी इस संस्था के जरिए संस्कृत सिखाने, पढ़ाने और प्रचार- प्रसार का काम चल रहा है। जो लोग संस्कृत सीख चुके हैं, वे अब दूसरों को पढा रहे हैं।
वर्चुअल तरीके से पढाई जा रही संस्कृत।
श्री देवपुजारी ने बताया कि कोरोना काल में भी संस्था का कार्य वर्चुअल तरीके से चलता रहा। प्रतिदिन रात को 9 से 10 बजे तक संस्कृत की ऑनलाइन क्लास लगाई जाती थी। संस्कृत में कथा का प्रसारण भी वर्चुअल किया गया।
झिरी गांव में सभी परिवार संस्कृत में बात करते हैं।
श्रीश देवपुजारी नें बताया मप्र के राजगढ़ जिले के झिरी गांव में सभी परिवार संस्कृत में संवाद करते हैं। यहां तक कि वहां के निवासी अपने पशुओं को संस्कृत में ही आवाज देकर बुलाते हैं। वहां एक महिला प्रचारक को भेजा गया था। उसने पहले गांव की महिलाओं को संस्कृत सिखाई। बाद में महिलाओं ने अपने बच्चों और घर के अन्य सदस्यों को संस्कृत पढाई। इसका असर ये हुआ की समूचा गांव संस्कृत में पारंगत हो गया।
विवि में हो संस्कृत शिक्षक की नियुक्ति।
संस्कृत भारती के महामंत्री देवपुजारी के मुताबिक मप्र 26 से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से आग्रह किया गया है कि वे अपने यहां संस्कृत शिक्षक की नियुक्ति करें ताकि जो विद्यार्थी संस्कृत पढ़ने के इच्छुक हों, उन्हें पढाई जा सकें।
तकनीकि और प्रबन्ध संस्थानों में भी सिखाई जा रही संस्कृत।
श्री देवपुजारी ने बताया कि आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों में भी संस्कृत का प्रचार- प्रसार किया जा रहा है। आईआईटी रुड़की में तीन माह का संस्कृत सिखाने और संवाद का विशेष पाठ्यक्रम चलाया गया था। उसे अभूतपूर्व प्रतिसाद मिला। इसीतरह आईआईटी इंदौर में भी संस्कृत कक्षाएं लगाई गई। इस दौरान भारतीय गणितज्ञ भास्कर द्वितीय द्वारा 1150 ईसवी में रचित गणित की पुस्तक ‘लीलावती’ को संस्कृत में पढ़ाया गया। इसे गणित की पहली पुस्तक माना जाता है।आईआईएम इंदौर के निदेशक हिमांशु राय ने भी संस्कृत भारती के माध्यम से संस्कृत सीखी है। वे अब धाराप्रवाह संस्कृत पढ़ते- बोलते हैं।
प्राचीन ग्रंथ व पांडुलिपियां संस्कृत में हैं।
देवपुजारी के अनुसार भारत में सनातन काल से अंग्रेजों के आने तक ज्ञान की भाषा संस्कृत रही है। रामायण, महाभारत सहित तमाम प्राचीन ग्रंथ और पांडुलिपियां संस्कृत में ही रची गई हैं। भारत सरकार के संग्रहालय में 45 लाख पांडुलिपियां संरक्षित की गई हैं, जो संस्कृत में है। अतः ज्ञान की इस अनमोल विरासत को पढ़ने व समझने के लिए हमें संस्कृत सीखनी चाहिए।