200 साल पुरानी है होलकर कालीन गणेशोत्सव की परंपरा

  
Last Updated:  September 1, 2022 " 01:17 am"

इंदौर : लोकमान्य पं. बाल गंगाधर तिलक ने भले ही गणेश उत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाने की शुरुआत की हो, लेकिन इंदौर में गणपति उत्सव का इतिहास 200 साल से ज्यादा पुराना है। मालवा के अधिपति रहे होलकर राजघराने में गणपति उत्सव धूमधाम से मनाने की परंपरा रही है, जो पांच दिन मनाया जाता है। इसकी शुरुआत तुकोजीराव होलकर द्वितीय (1844-1886) के शासनकाल में हुई थी।

होलकर स्टेट में गणेश उत्सव मनाने की गौरवशाली परंपरा का निर्वहन अब भी गणपति स्थापना व पूजन के साथ किया जा रहा है। गणपति अब भले ही राजबाड़ा के गणेश हॉल के बजाय मल्हार मार्तंड मंदिर के अपेक्षाकृत छोटे प्रांगण में विराजते हों, लेकिन उनके राजसी ठाठ अब भी देखते ही बनते हैं। होलकर स्टेट के कुल देवता मल्हार मार्तंड के मंदिर के सामने चौकी पर इंदौर के राजा गणपति पांच दिन के लिए विराजित होते हैं। तीसरे दिन उनके साथ महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित की जाती है। पांचवें दिन गौरी-गणेश का विसर्जन किया जाता है। इसी कड़ी में इस बार भी शनि गली जूनी इंदौर स्थित खरगौणकर परिवार के निवास से पालकी में सवार होकर गणपति बप्पा शाही लवाजमें के साथ राजवाड़ा के मल्हारी मार्तंड मंदिर पहुंचे, जहां उन्हें होलकर राजपरिवार की परंपरा के अनुसार पूजा – अर्चना कर स्थानापन्न किया गया।

मिट्टी की बनी होती है होलकर रियासत की गणेश प्रतिमा।

होलकर स्टेट के राजबाड़ा में स्थापित होने वाली मूर्ति ठोस मिट्टी की बनी होती है। परंपरागत रूप से गणपति की मूर्ति तराशने व निर्माण का कार्य खरगोनकर परिवार ही कर रहा है।

भगवान श्री गणेश को पहनाई जाती है होलकर पगड़ी।

होलकर स्टेट के राजपुजारी लीलाधर वारकर कहते हैं, राजबाड़ा के गणेश थोड़े अलग हैं। उन्हें होलकर पगड़ी पहनाई जाती है, अलग तरीके से सजाया जाता है, जिससे वे राजसी नजर आते हैं। राजबाड़ा में गणपति की दो मूर्तियां लाई जाती हैं। छोटे गणेश राजपरिवार के लिए, जबकि बड़े गणेश आम लोगों के पूजन के लिए। पूजन के समय हमें अंगरखा पहनना पड़ता है।

मल्हार मार्तंड मंदिर आ गए गणपति।

मंदिर मैनेजर राजेंद्र जोशी कहते हैं, पहले गणपति होलकर राजघराने के राजबाड़ा के गणेश हॉल में विराजते रहे। 1984 की भयानक आग व दंगे की चपेट में आए मल्हार मार्तंड मंदिर का जीर्णोद्धार 2007 में कराया। इसके बाद से गणपति की स्थापना इस मंदिर में की जाने लगी। इसकी एक वजह यह भी थी कि राजबाड़ा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन चला गया है।

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