महोत्सव का प्रथम न्यौता खजराना गणेश को समर्पित।
संपत पैलेस पर दिनभर विभिन्न आयोजन होंगे।
इंदौर : आम लोगों को साग-सब्जी, फल-फूल उपलब्ध कराने वाली मां शाकम्भरी देवी सकराय माताजी का जयंती महोत्सव इस बार गुरुवार, 25 जनवरी को बायपास स्थित सम्पत पैलेस, वैष्णो धाम मंदिर के पास मनाया जाएगा। महोत्सव का यह 24वां वर्ष होगा। महोत्सव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस दौरान प्रसिद्ध परंपरागत तांडव आरती भी होगी। महोत्सव में सुबह से रात तक विभिन्न आयोजन होंगे।
महोत्सव का प्रथम निमंत्रण खजराना गणेश को समर्पित किया गया। इस अवसर पर शाकम्भरी परिवार की ओर से गोपाल अग्रवाल, अनिल खंडेलवाल, जयेश ऐरन, गोपाल बंसल, मुकेश अग्रवाल, चंदू गोयल, नारायण खंडेलवाल, रमेश एरन, हरि अग्रवाल, योगेन्द्र अग्रवाल, पंकज अग्रवाल, राकेश अग्रवाल, लक्ष्मण प्रकाश कानूनगो, उमेश भूत, नरेश त्रिवेदी, शिमला अग्रवाल, सरोज ऐरन, सरिता खंडेलवाल सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
महोत्सव का शुभारंभ सुबह 9 बजे स्थापना पूजन के साथ होगा। 9.30 बजे मंडल पूजन, 10.30 बजे दुर्गा सप्तशती पाठ एवं 2.30 बजे से श्रीमती ममता गर्ग के सान्निध्य में मां शाकम्भरी का मंगल पाठ होगा। सायं 6.15 बजे परंपरागत तांडव आरती एवं महाआरती होगी और महाज्योत के दर्शन भी होंगे। सायं 6.30 बजे से कन्या पूजन के बाद 7 बजे से द्वारका मंत्री की भजन संध्या होगी। महोत्सव की दिव्यता को देखते हुए विभिन्न समितियों का गठन किया गया है।
कौन है शाकम्भरी देवी :-
शाकम्भरी देवी आदिशक्ति जगदम्बा का ही एक रूप है। कहीं इन्हें चार भुजाधारी तो कहीं अष्ट भुजाओं वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शाकम्भरी देवी को शताक्षी अर्थात सौ नेत्रों वाली देवी भी माना जाता है। महाभारत के वन पर्व में उल्लेख है कि शाकम्भरी देवी ने शिवालिक पहाड़ियों में सौ वर्ष तक तपस्या की थी। वे तप के दौरान माह में एक बार ही शाकाहारी आहार लेती थीं। उनकी कीर्ति सुनकर कुछ ऋषि जब उनके दर्शन के लिए गए तो उन्होंने भोजन के रूप में शाक परोसा तब से ही उन्हें शाकम्भरी कहा जाने लगा। एक अन्य मान्यता है कि पृथ्वी पर भयानक सूखे के कारण ऋषि मुनियों ने देवी की आराधना की तब आदिशक्ति जगदम्बा ने शाकम्भरी के रूप में अपने शरीर से उत्पन्न शाक से ही संसार का भरण-पोषण किया। एक और प्रचलित कथा यह भी है कि पार्वती ने शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था। तप के दौरान वे एक समय भोजन के रूप में केवल शाक-सब्जियां ही खाती थी इसलिए उनका नाम शाकम्भरी हो गया।