अधिकारियों की लीपापोती को पकड़ लिया श्रम मंत्री ने

  
Last Updated:  March 13, 2024 " 03:53 pm"

हरदा ब्लास्ट की आधी-अधूरी जांच रिपोर्ट को नामंजूर कर प्रह्लाद पटेल ने मिसाल कायम की।

फैक्टरी को स्टे देने के कथित दोषी संभागायुक्त को पहले ही हटा चुकी है सरकार।

🔹कीर्ति राणा🔹

इंदौर : हरदा ब्लास्ट के घोषित 11 मृतकों और उनके परिजनों सहित अन्य सैकड़ों घायलों की प्रह्लाद पटेल पर तो दुआ बरस रही होगी। पांच बार के सांसद रहे और मोहन यादव सरकार में पंचायत, ग्रामीण विकास और श्रम मंत्री प्रह्लाद पटेल ने मंत्री के रूप में यह आदर्श पेश किया है कि प्रदेश सरकार न तो अधिकारियों के सहारे चल रही है और न ही उनकी हर रिपोर्ट को आंख मूंद कर मंजूर करने की उदारता दिखाएगी।

राज्य सरकार ने देर से ही सही इंदौर के संभागायुक्त माल सिंह भयड़िया को इस पद से हटाने का निर्णय लिया, उससे मुख्यमंत्री की यह घोषणा सही साबित हुई कि हरदा ब्लास्ट मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारी चाहे जितने बड़े पद पर हों, प्रदेश के श्रम मंत्री के रूप में पटेल ने जिस तरह हरदा ब्लास्ट की रिपोर्ट को अमान्य किया है वह अपने आप में नजीर है।

अमूमन होता यह है कि सरकार की साख पर बट्टा ना लगे इसलिए जांच कमेटी के गठन की औपचारिकता के साथ ही समिति द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट को आंख मूंद कर मंजूरी दे दी जाती है-जिसे सांप का मरना और लाठी भी नहीं टूटना कहा जा सकता है।प्रह्लाद पटेल ऐसे श्रम मंत्री साबित हुए हैं जिन्हें विभागीय अधिकारियों द्वारा सौंपी गई जांच रिपोर्ट पर भरोसा नहीं है, इसलिए इस रिपोर्ट को मंजूर नहीं किया।
जिस पटाखा फैक्टरी में हर दिन सैकड़ों मजदूर काम कर रहे हों उनकी उपस्थिति के प्रामाणिक रिकॉर्ड के अभाव में श्रम विभाग के अधिकारियों ने रिपोर्ट कैसे पेश कर दी…? यह लीपापोती ठीक वैसी ही साबित हो रही है जैसे तत्कालीन कलेक्टर द्वारा अनियमितता पाए जाने पर फैक्टरी सील करने की अनुशंसा को मान्य करने की अपेक्षा तत्कालीन संभागायुक्त माल सिंह भयड़िया ने स्टे देकर फैक्टरी में कामकाज जारी रखने के रास्ते खोल दिए थे।तब ही यदि फैक्टरी सील कर दी गई होती तो हरदा ब्लास्ट को टाला जा सकता था।

श्रम मंत्री पटेल ने मीडिया से चर्चा में कहा है कि मैंने मजदूरों की आइडेंटिटी को लेकर अपने विभाग से सवाल किए हैं। पूछा है कि यदि 2015 में उसी जगह पर हादसा हुआ था तो उस फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की संख्या का एनरोलमेंट क्यों नहीं था? अभी जो पीड़ित हैं, उसमें पब्लिक की संख्या ज्यादा बताई जा रही है।मजदूरों की संख्या तो 32 ही है। जब सूची ही नहीं हैं तो वेरिफिकेशन किस आधार पर हो रहा है? आप किसी घायल से पूछकर उसे मजदूर बता रहे हैं। उसकी बहस में नहीं पड़ रहा लेकिन अगर आपके पास किसी इंडस्ट्री में काम करने वालों की सूची नहीं हैं तो न्याय करने का आधार क्या होगा? इसलिए प्रथम दृष्ट्या मैने ही रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया है।

श्रम मंत्री का कहना है यदि मजदूरों की वास्तविक संख्या वाले कोई दस्तावेज हरदा के कलेक्टर या हमारे विभाग के पास हो तो वह भी दिखाएं। 2015 में ठीक इसी तरह की घटना हो चुकी है। उसके बाद भी सूची अगर उपलब्ध नहीं है, ऐसे में हमें अपने मैकेनिज्म पर विचार करना पड़ेगा कि क्या तरीका अपनाएं।
गौरतलब है कि पिछले माह 7 फरवरी को हरदा की फैक्टरी में हुए विस्फोट से जमीन भी थर्रा गई थी और पत्थरों की बारिश भी हुई। इसकी सबसे बड़ी वजह थी फैक्टरी के तलघर का उपयोग गोडाउन की तरह करना। गोडाउन में एक हजार किलो से ज्यादा बारूद का स्टॉक बड़े बम की तरह फटा। उससे बिल्डिंग की नींव टूट गई।दीवार और छत का मलबा 400 मीटर तक तेजी से बरसा, जो लोगों की मौत की वजह बना।इस ब्लॉस्ट में आधिकारिक तौर पर 11 लोगों की मौत की पुष्टि की गई और दर्जनों लोग घायल हुए थे।
इस हादसे को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पहले ही कह चुके हैं कि राज्य शासन की सजगता, राहत और बचाव के सभी कदम एक साथ उठाने से जनहानि को कम से कम करने में सफलता मिली। हादसा जितना भयावह था, उसकी भयावहता को दृष्टिगत रखते हुए त्वरित पुख्ता प्रबंधन कर लोगों को अविलंब उपचार के लिए अस्पतालों तक तत्परता से पहुंचाया गया।

पहले भी तीन बार सील किया जा चुका था फैक्टरी को।

इस पटाखा फैक्ट्री को इससे पहले तीन बार सील किया जा चुका था।दिवाली के वक्त भी इस पटाखा फैक्ट्री पर बड़ी कार्रवाई की गई थी और इसे सील कर दिया गया था।दिवाली से पहले यह कार्रवाई अपर कलेक्टर ने की थी।इसके बावजूद भी पटाखा फैक्ट्री को खोलकर फिर से निर्माण कार्य शुरू किया गया।फैक्ट्री संचालन शुरू होने के बाद तत्कालीन एसडीएम श्रुति अग्रवाल ने इसकी जांच की थी। जांच रिपोर्ट उन्होंने कलेक्टर को सौंपी थी, जिसमें कई खामियां थीं। इसके बाद तत्कालीन कलेक्टर ऋषि गर्ग ने अनफिट घोषित होने के बाद इसे सील करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद नर्मदापुरम संभाग के तत्कालीन कमिश्नर माल सिंह भयड़िया कलेक्टर के फैसले पर स्टे लगा दिया था।तत्कालीन सीएम ने माल सिंह को इंदौर संभागायुक्त पदस्थ कर दिया था ।मोहन यादव सरकार ने तीन दिन पहले उन्हें फील्ड की पोस्टिंग से हटाकर उनकी जगह दीपक सिंह को संभागायुक्त पदस्थ किया है।
संभागायुक्त द्वारा स्टे देने के बाद यह फैक्टरी फिर से चलने लगी थी। हरदा के बैरागढ़ स्थित पटाखा फैक्टरी के मालिक अग्रवाल बंधु है। बताया जाता है कि 2015 में दोनों भाइयों ने किराए पर गोदाम लेकर पटाखा निर्माण का काम शुरू किया था। उस वक्त भी इसकी फैक्टरी में हादसा हुआ था। इसमें दो लोगों की जान चली गई थी। इसे लेकर 2021 में राजेश अग्रवाल को 10 साल की सजा हुई थी। बाद में इसे हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। इसके बाद अग्रवाल बंधुओं की फैक्टरी फिर से चलने लगी।

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