🔹कीर्ति राणा🔹
प्रदेश की 230 सीटों में शायद ही कोई ऐसी सीट हो, जहां नीबू निचोड़ कर दूध फाड़ने की फितरत नहीं हुई हो। कांग्रेस में तो नीबू डालकर कमलनाथ ने ही दूध फाड़ दिया और दिग्विजय सिंह ने इसकी छाछ बना कर रायता भी फैला दिया।
भाजपा में भी असंतोष कम नहीं है, लेकिन साइडलाइन किए गए दावेदारों ने अनुशासन के दुपट्टे से मुंह लपेट रखा है। पार्टी नेतृत्व के घाघ नेताओं को मैदान में पटकनी देने का दांव गौरीशंकर बिसेन ने जिस तरह चला है, उसकी काट तलाशी जा रही है। बेटी को टिकट दिलाया और ऐन वक्त पर उसकी तबीयत ठीक नहीं होने जैसे कारण बता कर खुद नामांकन दाखिल कर आए।
कांग्रेस में निशा बांगरे को साथ में मंच पर बैठाया। वे पूर्व घोषित प्रत्याशी की जगह अपना नाम घोषित होने के सपने में खोई हुई थीं और कमलनाथ ने यह कह कर रायता फैला दिया कि उनकी सेवाओं का और बेहतर उपयोग करेंगे।
निर्वाचन कार्यालय के सामने बजने वाले ढोल-ढमाके तो आज शाम तक बंद हो जाएंगे, अगले 48 घंटे का शुभ मुहूर्त भेरू पूजा का है। भाजपा घर बैठे नाराज नेताओं के पैर पूजने निकलेगी, तो अधिकृत प्रत्याशियों को चुनौती देने वाले जिन दावेदारों को विकराल भैरव की सवारी आ रही है, कमल नाथ और दिग्विजय सिंह पूजापा लेकर इच्छा पूरी करने की मनुहार के साथ भेंटपूजा चढ़ाएंगे। भाजपा को तो अपने लोगों को डराना-धमकाना-चमकाना आता है। कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि यहां तो सरकार बनने का दावा करने वाले बड़े नेताओं में ही एका नहीं है। सुरेश पचोरी, अरुण यादव, अजय सिंह से लेकर गोविंद सिंह परिदृश्य से लगभग गायब हैं। सज्जन वर्मा की दुर्जन-वाणी से घायल दिग्विजय सिंह मन ही मन तो कमलनाथ से खुश इसलिए भी हैं कि उनके कुनबे के हर सदस्य को तो टिकट मिल ही गया है। जाहिर है, इन सब की जीत के लिए दिग्विजय सिंह अतिरिक्त परिश्रम भी करेंगे ही।
एक सप्ताह से यकायक चुनावी हवाओं में जो बदलाव आया है, वह कांग्रेस की चिंता बढ़ाने और भाजपा को राहत पहुंचाने वाला बनता जा रहा है। कल तक भाजपा घबराई हुई थी, लेकिन अब कांग्रेस के नेता एक-दूसरे के नीचे से टाटपट्टी खींच कर रायता फैलाने के साथ संगत में पंगत वाली बातों को ‘रात गई बात गई’ की तरह भूलते जा रहे हैं।
ग्वालियर चंबल क्षेत्र हो, भोपाल क्षेत्र हो या मालवा-निमाड़, विंध्य क्षेत्र हो – पहले प्रत्याशी घोषित कर बाद में किसी और को प्रत्याशी बनाने का जो खेल कांग्रेस ने खेला है, वही उसकी हवा बिगाड़ने का कारण भी बन गया है। टिकट बांटने में मुख्य रूप से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की भूमिका रही है, तो बागियों को मनाने का दायित्व भी इन्हीं के जिम्मे है।
भाजपा की सरकार बनती है तो ये दो नेता ही दूध फाड़ने, रायता फैलाने के जिम्मेदार भी माने जाएंगे। भाजपा की तमाम उम्मीदों पर पानी फेरते हुए साल 2018 की तरह फिर से कांग्रेस सत्ता में आ जाती है, तो पहले दिन से ही ‘रायता फैलाओ’ के राज्यस्तरीय मुकाबले शुरू हो जाएंगे।