जन्माष्टमी पर विशेष:-
“मन में उठता शोर भी वो
उम्मीदों की डोर भी वो,
वो जो श्याम सलोना है
मुख पर जिसके डीठोना है।
इस जग का चितचोर भी वो
इस जग में चहुंओर है वो,
उसकी सबको अभिलाषा है
उससे ही सबको आशा है।
मन में पड़ी कोई छाप है वो,
सच्चाई की पदचाप है वो
ममता की मूरत में वो,
हंसती हुई सूरत में वो
प्रेम की वही परिभाषा है,
उससे ही सबको आशा है।
माखनचोर, मटकी फोड़ है वो,
सांवला सलोना रणछोड़ है वो
“मैया मैया” की रट वो लगाता,
मैं नहीं माखन खायो, गाता
सबको अपनी धुन पे नचाता,
फिर मुरली की धुन वो सुनाता।
राधा के अधरों की मुस्कान है वो,
गोपियों पे अपनी मेहरबान है वो
वो जो तमस को दूर कर दे,
वो जो हर दूख को हर ले
युगों युगों का अभिमान है वो,
इस संस्कृति की पहचान है वो
मन में उठता शोर भी वो,
उम्मीदों की डोर भी वो।”
– *सुरभि नोगजा*
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