‘चाँद के पार चलो’ नाटक के जरिये इंसान की महत्वाकांक्षा पर कसा तंज..

  
Last Updated:  February 2, 2020 " 01:17 pm"

इंदौर : महाराजा शिवाजी राव हायर सेकंड्री स्कूल के पूर्व छात्रों द्वारा हिन्दी नाटक “चाँद के पार चलों” *The Pain Of Moon* का मंचन महाराजा स्कूल के ही 100 साल पुराने हॉल में स्कूल के प्राचार्य एवं वरिष्ठ शिक्षकों के मार्गदर्शन में किया गया। नाटक में मुख्य भूमिका में स्कूल के ही 20-25 वर्ष पुराने छात्र सोम, मंगल, बुध, गुरु,शुक्र, शनि, रवि जैसे साप्ताहिक नामों के साथ ज़िंदगी और जिम्मेदारी के तनाव से भटके हुए युवाओं की भूमिका में नज़र आये। एक घन्टे की अवधि वाले इस कॉमेडी नाटक की कहानी 35-40 की उम्र पार चुके युवाओं की थी, जो रोज़-रोज़ के संघर्ष और तनावयुक्त तमाम जिम्मेदारियों से भरी ज़िन्दगी से मुक्ति, उससे कुछ दिन की छुट्टी पाकर स्वच्छंद तरीके से ऐश और आज़ादी की ज़िंदगी जीने के लिये चाँद पर जाना चाहते हैं। वहां पहुंचाने में इनकी मदद करते हैं भगवान भोलेनाथ। भोलेनाथ की भूमिका में जीबीएस जैसी गम्भीर बीमारी से ज़िंदगी की जंग जीत चुके स्कूल के पूर्व छात्र जीबीएस फाइटर जीवन कनेरिया थे। जिन्हें अभिनय करता देख भरोसा करना मुश्किल था कि जीबीएस का मरीज मंच पर अभिनय करता हुआ। चाँद पर पहुंचने के बाद धर्म, विज्ञान, राष्ट्रप्रेम, राजनीति, पर्यावरण, प्रकृति पृथ्वी सहित खुद के ग़म और दुनिया के अहम पर हास्यास्पद चर्चा एवं बहस का भागीदार बना हुआ है। अंततः चाँद के अचानक प्रवेश के बाद यह कहानी रोचक मोड़ लेती है। जब चाँद इनसे खुद का दर्द बयां करता है, कि कैसे मानव उसका शत्रु है, नीचे किस तरह चाँद और मंगल पर दुनिया बसाने के लिये प्रयोगों की होड़ मची है, ताकि चाँद और मंगल पर सबसे पहले पहुंचकर अपना अधिकार और कब्ज़ा जमाया जा सके। पृथ्वी के कुछ सक्षम सपन्न ताकतवर देशों में रेस लगी है। जबकि 50 साल पहले 100 करोड़ डॉलर खर्च कर चांद पर कदम रखने से अमेरिका को कुछ खास हांसिल नही हुआ। फिर भी कुछ देश अपनी ताकत और वर्चस्व दिखाने के लिये प्रकृति के खिलाफ जाकर वहां दुनिया बसाने, कब्ज़ा जमाने की योजना बनाकर चांद मंगल सहित सौरमंडल के तमाम ग्रहों उपग्रहों पर हद से ज़्यादा प्रयोग कर उन्हें नुकसान पहुंचा रहे है। अंततः नाटक नशामुक्त हिंसामुक्त समाज का निर्माण, जिम्मेदार नागरिक-इंसान बनने के साथ ही मानवता, इंसानियत, पृथ्वी,प्रकृति को बचाने के संदेश के अलावा सौरमंडल के तमाम ग्रहों पर हो रहे अत्यधिक प्रयोगों और विकास के नाम पर विनाश का विरोध कर प्रकृति को उसके मूल स्वरूप में रखें जाने का समर्थन करने के साथ खत्म होता है। नाटक में सौर मंडल के तमाम ग्रहों पर हो रहे शोध, प्रयोग, मानवों की दुनिया बसाने के दावों का चांद के दृष्टिकोण से अलग ही नज़रिया(दर्द) प्रस्तुत किया गया। नाटक का लेखन एवं निर्देशन अजय सरोज़ यादव ने किया था। नाटक में सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, सनी, भोलेनाथ, चाँद एवं बार बॉय की भूमिका में क्रमशः आकाश कुशवाह, प्रवीण केलोनिया, केतन शर्मा, नीरज तिवारी, सूरज सुनहरे, अमित यादव, जीवन कनेरिया, अंकिता केशव एवं अंकित केलोनिया नज़र आए। संगीत नितिन कुशवाह, आकाश वर्मा एवं प्रकाश व्यवस्था मुकेश लिखार की थी। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्कूल के पूर्व एवं वर्तमान छात्र मौजूद थे। इस अवसर पर प्राचार्य पांडे मैडम, वरिष्ट शिक्षक महेंद्र सिंह कुशवाह ने सभी कलाकारों का सम्मान किया। साथ ही स्कूल के पूर्व छात्र और वरिष्ठ रंगकर्मी मानसिंह चौधरी का सम्मान किया गया, जिन्होंने कलाकारों का मार्गदर्शन भी किया था। आभार जताते हुए स्कूल के पूर्व छात्र नेता जीतू दीवान ने महाराजा स्कूल के नाम से गैर-राजनैतिक समूह बनाने पर जोर दिया ताकी देश विदेश के पूर्व छात्रों के माध्यम से सौ साल पुराने महाराजा स्कूल का अस्तित्व बचाकर, उसका वर्तमान आवश्यकताओं के अनुसार उन्नयन किया जा सकें। महाराजा बॉयस ग्रुप के संरक्षक पूर्व छात्र नवनीत शुक्ला ने भी स्कूल में सभी के सहयोग और सहमति से आधुनिक शैली के ऑडिटोरियम की आवश्यकता और निर्माण पर जोर दिया।

Facebook Comments

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *