इंदौर : गीता भवन में चल रहे अ.भा. गीता जयंती महोत्सव में जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद ने दिए आशीर्वचन।
हजारों भक्तों ने गीता जयंती पर किया गीता के 18 अध्यायों का सामूहिक पाठ – सनातन
इंदौर : मनुष्य को यदि आत्म निरीक्षण, आत्म कल्याण और आत्म मंथन करना है तो गीता का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि यह वह अदभुत और अनुपम सृजन है जो विज्ञान की कसौटी पर भी खरा उतरा है। भारतीय संस्कृति ज्ञान के साथ विज्ञान सम्मत भी है। गीता जैसे दिव्य ग्रंथ मानव मात्र के लिए हर युग में मार्गदर्शक हैं। तमोगुण की अधिकता से ही विनाश का मार्ग प्रशस्त होता है। वेदों और उपनिषदों का भी निचोड़ है-गीता। गीता मनुष्य को कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े अर्जुन की तरह हर संशय के मौके पर दिव्य दृष्टि प्रदान करती है। गीता के श्रवण, मनन, मंथन और चिंतन से मनुष्य अहंकार मुक्त हो सकता है।
ये दिव्य विचार हैं जगदगुरु शंकराचार्य, पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के, जो उन्होंने गीता भवन में चल रहे 66वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव की महती धर्मसभा में व्यक्त किए। शंकराचार्यजी के गीता भवन आगमन पर ट्रस्ट मंडल की ओर से मंगलाचरण के बीच ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, कोषाध्यक्ष मनोहर बाहेती, संरक्षक ट्रस्टी गोपालदास मित्तल तथा ट्रस्ट मंडल के महेशचंद्र शास्त्री, प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, दिनेश मित्तल, हरीश माहेश्वरी, पवन सिंघानिया, राजेश गर्ग केटी, संजीव कोहली एवं एवं सत्संग समिति के सदस्यों ने शंकराचार्यजी का पादुका पूजन किया।
इसके पूर्व सुबह मोक्षदा एकादशी के उपलक्ष्य में हजारों भक्तों ने गीता के 18 अध्यायों का जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज की अध्यक्षता में सामूहिक पाठ किया। बड़ी संख्या में भक्तों ने अपने सामर्थ्य के अनुसार दान का पुण्य लाभ भी उठाया। सामूहिक पाठ का समापन गीताजी की महाआरती के साथ हुआ।
दोपहर के सत्र में डाकोर से आए स्वामी देवकी नंदनदास, पानीपत की साध्वी ब्रह्मज्योति सरस्वती, अजमेर की साध्वी अनादि सरस्वती, हरिद्वार के स्वामी श्रवण मुनि, गोंडा (उ.प्र.) के पं. प्रहलाद मिश्रा रामायणी, उज्जैन के रामकृष्णाचार्य महाराज, हरिद्वार के स्वामी सर्वेश चैतन्य, गोधरा की साध्वी परमानंदा सरस्वती एवं उज्जैन के स्वामी वीतरागानंद ने अपने प्रेरक विचार व्यक्त किए। शाम को पुरी पीठाधीश्वर, जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज गीता भवन पहुंचे तो आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री एवं अन्य विद्वानों ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उनके पादुका पूजन की विधि संपन्न कराई।
सनातन धर्म एवं संस्कृति की मजबूती के लिए हजारों भक्तों ने ली शपथ।
गीता जयंती के महापर्व पर जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने हजारों भक्तों को गीता भवन में सनातन धर्म एवं संस्कृति की मजबूती के लिए अपने-अपने पूजा घर में रामायण, गीता अथवा भागवत में से किसी एक या तीनों धर्मग्रंथों को रखने और प्रतिदिन इनमें से किसी एक ग्रंथ के कम से कम एक श्लोक का नियमित पाठ करने की शपथ दिलाई। सनातनी बंधुओं ने अपने घरों में पूजा घर के लिए उपयुक्त स्थान बनाने की शपथ भी ली।
गीता जयंती पर हुई सामूहिक महाआरती ।
गीता जंयती के मुख्य महापर्व पर आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में विद्वानों द्वारा भगवान शालिग्राम के विग्रह पर विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ से सहस्त्रार्चन किया गया। बाद में देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों से आए संत, विद्वानों के साथ हजारों भक्तों ने एक साथ बैठकर गीता के 18 अध्यायों का सामूहिक पाठ किया और महाआरती में भी भाग लिया। मोक्षदा एकादशी पर दान की महत्ता को देखते हुए सैकड़ों भक्तों ने फल, वस्त्र एवं अन्य वस्तुएं दान की। जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज के सान्निध्य में करीब पांच हजार भक्तों ने गीताजी की सामूहिक आरती में भाग लिया। इसके पूर्व अपने आशीर्वचन में स्वामी रामदयाल महाराज ने कहा कि भारत भूमि भक्ति और आराधना की भूमि है। यह गीता जैसे अनूठे ग्रंथों, संतों, ऋषियों और मुनियों का देश है। गीता भवन ऐसा तीर्थ है, जहां हर तरह की विकृतियों का इलाज होता है। गीता भवन तो तीर्थों का भी तीर्थ है। एक साथ इतने महापुरुषों का दर्शन, उनकी वाणी का श्रवण और मनन-मंथन भी यहां होता है। पीड़ित मानवता की सेवा और भक्ति का ऐसा समन्वय कहीं और नहीं हो सकता। गीता केवल ग्रंथ नहीं, साक्षात परमात्मा के दर्शन करने का सहज माध्यम है। मोह का क्षय होना भी मोक्ष है। अपनी ही आत्मा का साक्षात्कार होना मोक्ष के समान है। जिस दिन हम अपनी आत्मा को पहचान लेंगे, उस दिन हमें मोक्ष की मंजिल भी मिल जाएगी।