इंदौर: (राधिका कोडवानी)प्रदेश की शैक्षणिक राजधानी इंदौर की छात्रा हर्षिता विकास दवे ने अंतराष्ट्रीय युवा उत्सव का खिताब अपने नाम किया है।
कहती है कि अंतरराष्ट्रीय युवा उत्सव का अनुभव यादगार रहा। अभी तक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में केवल भारत के विभिन्न राज्यों की संस्कृति के बारे में जाना था, लेकिन पहली बार अंतरराष्ट्रीय युवा उत्सव में मुझे ना केवल भारत की, बल्कि विश्व की अलग-अलग संस्कृतियों के बारे में जानने का, समझने का और देखने का अवसर मिला। सभी देशों के लोगों से बात की। उनकी भाषा, वेशभूषा, खान-पान और उन देशों की संस्कृतियों को जानने की कोशिश की। हालांकि अंतरराष्ट्रीय युवा उत्सव का अनुभव अलग इसीलिए भी था क्योंकि इस स्तर पर कोई प्रतियोगिता नहीं थी। राष्ट्रीय स्तर पर विजयी रहे प्रतिभागियों को अपने देश का प्रतिनिधित्व करना था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्टिफिकेट और मेडल मिलना मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रही।
कड़ी मेहनत और लंबे संघर्ष के बाद मिला ये मुकाम।
हर्षिता ने बताया, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चयनित होने से पहले का सफर बहुत लंबा था। नवंबर से युवा उत्सव की स्पर्धा में चयन शुरू होता है।डिपार्टमेंट लेवल, यूटीडी लेवल, अंतर महाविद्यालयीन स्तर, जिला स्तर, राज्य स्तर, ज़ोनल के सिलेक्शन, ज़ोनल स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर वाद विवाद और भाषण दोनों में विजेता रहने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। यानी कुल मिलाकर 8 स्तर पर दो विधाओं में चयनित होकर यहां तक पहुंची। प्रतियोगिता चाहे राष्ट्रीय स्तर की हो या फिर जिला स्तर की कोशिश हमेशा यही रहती थी कि अपना सौ प्रतिशत दूं। वाद- विवाद और भाषण में तो मैंने लगभग 100 प्रतियोगिताओं में पुरस्कार प्राप्त किया है लेकिन युवा उत्सव सबसे अलग इसलिए है क्योंकि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय का हमेशा से वाद- विवाद और भाषण प्रतियोगिताओं में विजयी रहने का इतिहास रहा है। मेरे भैया ने दो बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाद- विवाद में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। इच्छा थी कि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करूं लेकिन कोरोना के चलते 2 साल तक राष्ट्रीय युवा उत्सव नहीं हो सका। ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष में राष्ट्रीय युवा उत्सव में पहली बार प्रतिभागिता की और सौभाग्य से मुझे देशभर से चयनित होकर आए प्रतिभागियों के बीच वाद- विवाद और भाषण दोनों प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ।
युवा उत्सव में विषय 24 घंटे पहले आता है इसलिए तैयारी करने का बहुत कम समय मिलता है। खासकर राष्ट्रीय स्तर पर, जबकि वाद-विवाद में 10 मिनट और भाषण में भी 10 मिनट बोलना हो तब इतनी सारी विषय वस्तु तैयार करना और उसे याद करना बहुत मुश्किल था लेकिन परिवार और शिक्षकों का सहयोग मिला। मंच पर केवल कंटेंट याद होना ही काफी नहीं होता, मैं मंच पर बोलने से पहले शायद 25 बार प्रैक्टिस करती हूं ताकि गलती ना हो। बेंगलुरु में राष्ट्रीय युवा उत्सव में भाषण के कुछ कठिन नाम याद नहीं कर पा रही थी तब भैया ने कहा कि जो नाम याद नहीं हो रहे, नेट पर उनकी फोटो देख, उनके बारे में पढ़ फिर नाम याद करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। अगले दिन बिना रुके मंच पर पूरा भाषण बोला। मंच पर बोलने के पहले पूरा भाषण भैया को सुनाती हूं ताकि वह कमियों को पकड़ सके।
मेरी कला का श्रेय मेरे परिवार का है क्योंकि हमारे घर में वातावरण ही कुछ ऐसा है। दादाजी भी मंच पर बोला करते थे, उसी कला को पापा ने आगे बढ़ाया, उसी वक्तृत्व कला को पापा ने भैया को सिखाया और भैया ने मुझे। दादी ने हर जीत पर उत्साहवर्धन किया जिससे मुझे आगे भी जीतने की प्रेरणा मिली। बोलने से पहले थोड़ा नर्वस होती हूं तो भैया से बात करती हूं और आत्मविश्वास आ जाता है। वाद-विवाद प्रतियोगिता में पहली बार सातवीं कक्षा में भैया के कहने पर भाग लिया और मुझे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। फिर स्कूल में कई सारी वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में सहभागिता की। शुरुआत में कभी हार मिली, तो कभी जीत लेकिन प्रतियोगिताओं में भाग लेती रही और कॉलेज में भी इसे जारी रखा।
अगर आप बचपन से पढ़ाई के साथ आप अपने में कोई कला विकसित करते हैं तो आप कम समय में अधिक चीजें करना सीख पाते हैं। मेरे साथ ऐसा एक या दो बार नहीं बल्कि कई बार हुआ जब 2 दिन लगातार परीक्षा भी थी और दोनों ही दिन प्रतियोगिता भी थी लेकिन ना तो परीक्षा छोड़ी और ना ही प्रतियोगिता। दोनों प्रतियोगिताओं में भी प्रथम स्थान प्राप्त हुआ और दोनों पेपर भी बहुत अच्छे रहे। ऐसा कई बार हुआ जब एक ही समय पर परीक्षा और प्रतियोगिता होने पर 3 घंटे का पेपर 1:30 घंटे में किया हो लेकिन जब परिणाम अच्छे मिलते हैं तो यह सब मायने नहीं रखता। इन्हीं अनुभवों से हम टाइम मैनेजमेंट सीखते हैं।
सभी युवाओं से कहना चाहूंगी कि किसी रचनात्मक गतिविधि से जुड़े हो तो कभी भी गलत रास्ते पर जाने के विचार नहीं आते। हमारे मन में स्वत: ही सकारात्मकता और रचनात्मकता विकसित होती है। चाहे गायन हो, नृत्य हो, चित्रकला हो या वक्तृत्व कला, हमें ज़रूरत नहीं हर जगह सर्वश्रेष्ठ होने की। आवश्यकता केवल इस बात की है कि हम अपने विद्यार्थी जीवन में जितना हो सके उतना सीखने की कोशिश करें। हम सफल नहीं, काबिल बनने की कोशिश करें।