उन्हें विद्रोही कलाकार कहना सही नहीं।
कबीर के दर्शन से था कुमारजी का जुड़ाव।
स्टेट प्रेस क्लब के रूबरू कार्यक्रम में बोली कुमारजी की बेटी, ख्यात गायिका कलापिनी।
क्लब की ओर से कलापिनी कोमकली को किया गया सम्मानित।
इंदौर : “कुमार जी संगीत में विचार होना चाहिए, इस पर दृढ़ रहे। गुरु के अंधानुकरण की परिपाटी के वे पक्षधर नहीं थे। गुरु तो गुरु है ही, लेकिन शिष्य का भी तो अपना व्यक्तित्व है। इस बात को आज से साठ बरस पहले कहना बड़ी हिम्मत की बात थी। उन्होंने शास्त्रीय संगीत के मूल में कभी बदलाव नहीं किया। उन्हें विद्रोही कलाकार कहना सही नहीं है। कुमारजी का कबीर से गहरा जुड़ाव रहा है।”
यह बात वरिष्ठ गायिका कलापिनी कोमकली ने स्टेट प्रेस क्लब, मध्यप्रदेश के रूबरू कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए कही।
पुरस्कार के साथ जिम्मेदारियां भी जुड़ी हैं।।
हाल ही में संगीत नाटक अकादमी द्वारा प्रतिष्ठित राष्ट्रपति पुरुस्कार ग्रहण करने पर उन्होंने कहा कि इस पुरुस्कार के साथ जिम्मेदारियां भी जुड़ी हुई हैं।
कुमार गंधर्व जन्मशती समारोह में सभी घरानों को जोड़ा।
अपने पिता और गुरु पंडित कुमार गंधर्व के जन्मशती समारोह के कार्यक्रमों को पूरे देश में आयोजित कर रहीं कलापिनी कोमकली ने बताया कि इस प्रसंग के लिए वे पिछले अनेक वर्षों से योजना बना रही थीं। कुमार जी के अलहदा व्यक्तित्व के अनुरूप इन आयोजनों में सिर्फ कुमारजी के शिष्यों को नहीं जोड़ा गया बल्कि सभी घरानों के श्रेष्ठ गायकों को जोड़ा गया। यूं भी पंडित कुमार गंधर्व कहते थे कि हमें सभी घरानों की अच्छी बातों को आत्मसात करना चाहिए। कुमारजी केवल शिष्य तैयार करने वाली फैक्ट्री नहीं थे वे कलाकार और कलाप्रेम को गढ़ते थे।
कुमारजी ने कभी संगीत के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ नहीं की।
कलापिनी ने कहा कि कुमारजी को विद्रोही कलाकार कहा जाता था लेकिन उन्होंने संगीत के मूल शास्त्र या स्वरूप से कभी छेड़छाड़ नहीं की। उसी सरगम, आरोह अवरोह और चलन के बाद भी केवल उनके अपने विचार के कारण कुमार जी का गायन अलग नज़र आता था। कुमारजी कहते थे कि हमारा कोई मित्र यदि जा रहा हो तो क्या हम उसे सीधे या साइड से देखकर नहीं पहचानेंगे ? इसी तरह राग मित्र की तरह हैं। कुमार जी रागों को आत्मसात कर चुके थे,एल शताब्दी वर्ष में इसीलिए कुमार जी संगीत जगत में आच्छादित हैं।
पुस्तक पढ़ते हुए सुनी भी जा सकती है कुमारजी की बंदिशें।
कलापिनी कोमकली ने बताया कि कुमारजी के जन्मशती वर्ष में नई पीढ़ी को कुमारजी के व्यक्तित्व से अवगत कराने के लिए तीन पुस्तकें प्रकाशित की गईं हैं, जिनमें दिए QR कोड स्कैन करने पर संबंधित बंदिश या भजन भी सुने जा सकते हैं।
कबीर से था कुमारजी का जुड़ाव।
कुमार जी को सख्त गुरु बताते हुए कलापिनी ने कहा कि मेरे लिए भी गाना आसान नहीं था क्योंकि कुमारजी की सुपुत्री होने के कारण सुनने वालों की अपेक्षाएं बहुत ऊंची थीं।
कुमारजी के इंदौर से जुड़ाव को याद करते हुए उन्होंने कहा कि संक्रामक बीमारी के कारण रामू भैया दाते की धर्मपत्नी डरती थी कि उनके उस समय छोटे बच्चे रवि और अरुण बीमार ना हो जाए, तब रामू भैया ने कहा था कि कुमार गंधर्व वह हस्ती है कि एक कुमार के लिए दस रवि और ई अरुण कुर्बान हैं। इंदौर कुमारजी का दूसरा घर था। अपनी शारीरिक तकलीफों के संघर्ष के दिनों में ही वे कबीर से गहरे जुड़ गए। एक छोटी सी चिड़िया की लगातार चहचहाहट से नींद खराब होने के बाद उनके मन में विचार आया कि इतनी छोटी सी चिड़िया के फेफड़ों में इतनी जान है तो मैं तो फिर इंसान हूं, और यहीं से उनके अंदर के कलाकार की जिजीविषा को बल मिला।
स्टेट प्रेस क्लब ने किया सम्मान।
कलापिनी कोमकली का स्टेट प्रेस क्लब, मप्र और अभिनव कला समाज की ओर से सम्मान अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल, वरिष्ठ कलाकार सर्वश्री दीपक गरुड़, पं.सुनील मसूरकर, सत्यकाम शास्त्री, पूर्वी निमगांवकर,अभिषेक गावड़े, सुदेश गुप्ता,पंकज क्षीरसागर, जयवंत शिंदे,रुखसाना मिर्ज़ा, रंगकर्मी रवि महाशब्दे, संदेश व्यास, सिया व्यास, आकाशवाणी इंदौर के संतोष अग्निहोत्री, वरिष्ठ फोटोग्राफर तनवीर फारूकी एवं समाजसेवी अनिल त्रिवेदी ने किया। कार्यक्रम का प्रभावी संचालन बहुविध संस्कृतिकर्मी एवं पत्रकार आलोक बाजपेयी ने किया। अंत में कलापिनी कोमकली को स्मृति चिन्ह प्रवीण कुमार खारीवाल एवं देवास के वरिष्ठ पत्रकार मोहन वर्मा ने प्रदान किया। क्लब के प्रकाशन श्रीमती मीना राणा शाह, जयश्री पिंगले एवं रुखसाना मिर्ज़ा ने भेंट किए। अंत में आभार प्रदर्शन प्रवीण कुमार खारीवाल ने किया।