इंदौर: भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से पंचम निषाद संगीत संस्थान द्वारा आयोजित दो दिवसीय गुनिजान संगीत समारोह के समापन सत्र का आगाज ख्यात गायिका मीनल मोडक के शास्त्रीय गायन के साथ हुआ। उन्होंने अपने गायन की शुरुआत धनकोनी कल्याण से की। पंडित सीआर व्यास ने इस राग की रचना की थी। इसमे धैवत की जगह कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है। विलंबित एकताल में मीनल द्वारा पेश की गई बंदिश के बोल थे ‘सरस सुर गाऊ, मन रिझाऊँ’
मीनल मोडक ने बाद में इसी राग पर आधारित मध्यलय त्रिताल में निबद्ध बंदिश ‘देख चंदा नभ निकस आयो’ गाकर अपनी प्रस्तुति को विराम दिया।
मीनल के बाद मंच संभाला नरेश मडगांवकर ने। उनके हाथों का स्पर्श पाकर संतूर से निकल रही ध्वनि श्रोताओं पर जादू सा असर कर रही थी। गोवा से आए नरेश पंडित सतीश व्यास के शिष्य हैं। चितेश के तबले के साथ नरेश के संतूर की जुगलबंदी ने वो माहौल बनाया की उपस्थित श्रोता झूम उठे।
गुनिजान संगीत समारोह का समापन गुंदेचा बंधुओं के ध्रुपद गायन के साथ हुआ। पंडित रमाकांत और उमाकांत गुंदेचा ध्रुपद गायकी के सशक्त हस्ताक्षर हैं। सबसे पहले उन्होंने राग श्याम कल्याण में धमार में निबद्ध रचना गाई। बोल थे ‘आज ब्रज में उड़त गुलाल’। बाद में इसी राग में उन्होंने ‘बाजत बासुर्रियाँ’ की बानगी दी।
राग हिंडोल बसंत में द्रुत चौताल की रचना ‘बादल आयो वसंत’ गाकर गुंदेचा बंधुओं ने श्रोताओं से विदा ली। पखावज पर उनका साथ निभाया अखिलेश गुंदेचा ने।
समारोह के अंतिम दिन अतिथि कलाकारों का स्वागत अश्विन खरे और शोभा चौधरी ने किया। सूत्र संचालन और आभार प्रदर्शन की जिम्मेदारी संजय पटेल ने निभाई।
ध्रुपद गायन के साथ अंजाम तक पहुंचा गुनिजान संगीत समारोह
Last Updated: February 3, 2019 " 07:48 pm"
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