जोड़ों में दर्द बना रहे, चलने – फिरने में दिक्कत हो तो यह गठिया के लक्षण – डॉ. पांडे

  
Last Updated:  October 14, 2022 " 02:52 pm"

इंदौर : आर्थराइटिस याने गठिया रोग से अधिकांश लोगों का उम्र के साथ सामना होता है। इसे संधिवात भी कहा जाता है। आखिर इस रोग की वजह क्या है..? यह कितने प्रकार का होता है..? इसका उपचार उपलब्ध है या नहीं..? ऐसी कई जिज्ञासाओं के समाधान के लिए अवर लाइव इंडिया ने वरिष्ठ चिकित्सक और एमजीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. वीपी पांडे से चर्चा की।

जोड़ों में दर्द बना रहना गठिया के लक्षण।

डॉ. पांडे ने बताया कि जोड़ों में दर्द होना एक कॉमन समस्या है। हर व्यक्ति कभी न कभी इस समस्या से जूझता है। सबसे आम जोड़ों का दर्द होता है पीठ का दर्द, लेकिन जब जोड़ों में सूजन आने के साथ दर्द के चलते हमारी दिनचर्या प्रभावित होने लगती है, तब हमारा ध्यान इस ओर जाता है। ऐसे में किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाकर इसका इलाज करवाया जाना चाहिए।

तीन प्रकार का होता है गठिया।

डॉ. पांडे ने बताया कि गठिया मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है। पहला जोड़ों की झिल्ली में सूजन आना जिसे रूमेटाइड आर्थराइटिस कहा जाता है। दूसरा होता है ओस्टियो आर्थराइटिस जिसमें जोड़ों की हड्डियों में घिसाव हो जाता है। तीसरा प्रकार वो होता है जिसमें जोड़ों के आसपास यूरिक एसिड जमा हो जाता है। इसे गाउट आर्थराइटिस कहा जाता है। हालांकि चिकित्सकीय दृष्टि से गठिया के सौ से अधिक प्रकार होते हैं।

महिलाओं में ज्यादा देखा जाता है रूमेटाइड आर्थराइटिस।

डॉ. पांडे ने बताया कि रूमेटाइड आर्थराइटिस आमतौर पर महिलाओं में ज्यादा देखा जाता है। बीस वर्ष की उम्र अथवा प्रेगनेंसी के बाद इस तरह का गठिया होता है। इसमें महिलाओं के हाथों के छोटे जोड़ों में, उंगलियों में दर्द होता है, सुबह के समय दर्द ज्यादा होता है, को दिन चढ़ने के साथ कम होता जाता है। कभी – कभी यह दर्द बढ़ते हुए पैरों की उंगलियों और घुटनों के जोड़ों में होने लगता है। इससे जोड़ों में विकृति भी आ जाती है। हाथ – पैरों के जोड़ों में दर्द बना रहने से बैठने – उठने, चलने – फिरने और कामकाज करने में कठिनाई होने लगती है। लुपस नाम का गठिया भी महिलाओं में पाया जाता है। चेहरे पर धब्बे और तितलीनुमा रेशेज से इसकी पहचान की जा सकती है।

एंकुलाइज स्पॉन्डिलाइटिस युवाओं में ज्यादा होता है।

डॉ. पांडे ने बताया कि एंकुलाइज स्पॉन्डिलाइटिस गठिया का ही प्रकार है। यह 40 वर्ष से अधिक आयु के युवाओं में ज्यादा देखा जाता है, हालांकि अब यह 20 साल से बड़े युवाओं में भी देखने में आ रहा है। लंबे समय तक कंप्यूटर और मोबाइल पर काम करने वालों में यह गठिया होने की संभावना ज्यादा होती है। इसमें रीढ़ की हड्डी में सूजन आ जाती है, झुकाव आ जाता है। गर्दन में जकड़न आने से इधर – उधर घुमाने में काफी दर्द होता है। कैल्शियम की कमी इसका प्रमुख कारण माना जाता है।

हड्डियों में क्षरण होना याने ओस्टियो आर्थराइटिस।

डॉ. पांडे ने बताया कि 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में ओस्टियो आर्थराइटिस की संभावना ज्यादा होती है। इसमें जोड़ों की हड्डियों में घिसाव होने लगता है।हड्डियां कमजोर होने लगती हैं उनका घनत्व कम होने लगता है जिसे अस्थि क्षरण भी कहा जाता है।

यूरिक एसिड बढ़ने से होता है गाउट आर्थराइटिस।

डॉ. पांडे ने बताया कि अनियमित खानपान, अधिक शराब का सेवन, वजन का बढ़ना यूरिक एसिड को बढ़ाता हैं। यह एसिड जब जोड़ों में जमा होने लगता है तो पैरों के अंगूठे में दर्द शुरू हो जाता है। बढ़ते – बढ़ते यह दर्द शरीर के तमाम जोड़ों तक फेल जाता है, जिससे मरीज को चलने – फिरने और काम करने में दिक्कत होने लगती है।

समय रहते कराएं गठिया का उपचार।

डॉ. पांडे ने बताया कि गठिया किसी भी प्रकार का हो, उसका समय रहते उपचार प्रारंभ करवा लेना चाहिए अन्यथा यह शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है।

गठिया का उपलब्ध है समुचित उपचार।

डॉ. वीपी पांडे के मुताबिक हरतरह के गठिया का कारगर इलाज उपलब्ध है। हालांकि हर तरह के गठिया का इलाज भी अलग – अलग होता है। नियमित दवाई लेने से गठिया को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि बीपी और डायबिटीज की तरह गठिया की दवाइयां भी जीवनभर लेनी पड़ती है। घुटने और कूल्हे के जोड़ खराब होने की दशा में ऑपरेशन के जरिए उनका ट्रांसप्लांट किया जा सकता है।

टेल बोन में दर्द होना गठिया के लक्षण नहीं।

डॉ. पांडे ने साफ किया कि रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से याने टेल बोन में दर्द होना गठिया का लक्षण नहीं है। यह किसी हार्ड सर्फेस पर गिरने अथवा दुर्घटना में टेल बोन को चोट पहुंचने से होता है। टेल बोन का फ्रैक्चर समय के साथ ठीक हो जाता है।

दवाइयों के साइड इफेक्ट्स को नियंत्रित किया जा सकता है।

डॉ. पांडे ने आर्थराइटिस में दी जाने वाली दवाइयों के साइड इफेक्ट्स को लेकर कहा कि मरीजों को साइड इफेक्ट्स से घबराकर दवाइयां लेना बंद नहीं करना चाहिए। अगर किसी दवाई का साइड इफेक्ट हो रहा है तो डॉक्टर उसे बदल देते हैं या उसके साइड इफेक्ट्स को नियंत्रित करने वाली दवाई दे देते हैं।

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