तनाव बढ़ने से जीवन में हो गई है हास्य- विनोद की कमी : प्रो. जोशी

  
Last Updated:  November 28, 2023 " 12:33 am"

इंदौर : मुक्त संवाद साहित्यिक समिति द्वारा आयोजित 13वे मराठी साहित्य सम्मेलन में तीसरे और अंतिम दिन विद्वान वक्ता प्रो.मिलिंद जोशी ने महाराष्ट्र के ख्यात साहित्यकार आचार्य अत्रे और पु.ल. देशपांडे के साहित्य पर प्रकाश डाला।

प्रीतमलाल दुआ सभागृह में संपन्न हुए इस साहित्य सम्मेलन में संदर्भित विषय पर बोलते हुए प्रो. जोशी ने कहा कि वर्तमान समय में जीवन में तनाव बहुत बढ़ गया है। ऐसे में सामान्य व्यक्ति के जीवन में हास्य की कमी हो गई है। कृत्रिमता दैनिक जीवन में हावी हो गई है। हास्य का लोप हो गया है। इसी वजह से जब हास्य के क्षण जब निर्मित होते हैं, तब हमारा ध्यान उस पर नहीं जाता जबकि सुबह हम गार्डन में जाकर हास्य योग करने की कृत्रिम चेष्टा करते हैं।हमारे यहां हास्य को उपलब्ध औषधियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

राजनीति से भी हो गई है हास – परिहास की कमी।

प्रो. जोशी ने कहा कि वर्तमान दौर की राजनीति में भी हास्य विनोद की कमी हो गई है। इस वजह से हास्य- व्यंग्य को डाइजेस्ट करना मुश्किल हो गया है। वर्तमान राजनीति में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को शत्रुता माना जाता है। ऐसे में राजनीति में हास परिहास और सामान्य विनोद भी नजर नहीं आता।

उन्होंने ख्यात मराठी साहित्यकार आचार्य अत्रे और पु.ल. देशपांडे के हास्य व्यंग्य विषयक साहित्य पर भी रोचक ढंग से अपने विचार रखे। हास्य- विनोद के क्षेत्र में इन दोनों साहित्यकारों के अवदान पर चर्चा करते हुए प्राध्यापक जोशी ने कहा दोनों के हास्य- व्यंग्य बेहद तीखे पर स्तरीय होते थे। प्रो. मिलिंद जोशी ने आचार्य अत्रे और पु.ल. देशपांडे की तुलना करते हुए कहा कि आचार्य अत्रे हास्य – विनोद को हथियार मानते थे। उनके इस हथियार ने महाराष्ट्र में अनेक लोगों को घायल किया दूसरी तरफ पुल देशपांडे का हास्य – विनोद आनंद के लिए होता था। दोनों ना सिर्फ अपने लेखनी के जरिए बल्कि उद्बोधन के माध्यम से भी हास्य उत्पन्न करते थे।प्रो. जोशी ने बताया कि इन दोनों महान मराठी साहित्यकारों ने राजनीति में भी अपनी छाप छोड़ी। आचार्य अत्रे ने महाराष्ट्र एकीकरण समिति के माध्यम से सक्रिय राजनीति में हिस्सा लिया। जबकि पुरुषोत्तम लक्ष्मण देशपांडे ने आपातकाल के समय तीखे व्यंग्य लिखकर व्यवस्था के खिलाफ विरोध व्यक्त किया। इन दोनों ने हीं हास्य और विनोद के माध्यम से समाज प्रबोधन और जन जागरण का काम किया। इन दोनों ने हास्य और व्यंग को नई दृष्टि और समृद्धि प्रदान की।

संत परंपरा में भी रही है हास्य विनोद की परंपरा।

प्रो. जोशी ने कहा कि महाराष्ट्र की संत परंपरा में भी हास्य विनोद की झलक नजर आती है। संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव और रामदास जैसे संतों ने भी अपनी रचनाओं में हास्य – व्यंग्य का भरपूर उपयोग किया है। संत ज्ञानेश्वर ने भारूड की रचना की, जिसके माध्यम से उन्होंने हास्य विनोद को अपना कर समाज प्रबोधन किया।

कार्यक्रम की शुरूआत मुख्य अतिथी पार्षद प्रशांत बडवे, अध्यक्षता कर रहीं श्रीमती स्नेहल महाजन, प्रमुख वक्ता प्रो. मिलिंद जोशी, मुक्त संवाद के अध्यक्ष मोहन रेडगावकर द्वारा दीप प्रज्वलन से की गई। आभार मुक्त संवाद के सचिव निलेश हिरपाठक ने माना। संचालन संजीव दिघे ने किया।

कार्यक्रम में उस्ताद अलाउद्दीन खा कला और संगीत अकादमी के निदेशक जयंत भिसे, डॉ. बाबा साहेब तराणेकर और अन्य गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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