धर्म में पाखंड नहीं सेवा का भाव होना चाहिए- स्वामी भास्करानंद

  
Last Updated:  January 11, 2021 " 12:31 am"

इंदौर : वर्तमान युग धर्म जागरण का है। धर्म प्रदर्शन के लिए नहीं, दर्शन के लिए होता है। धर्म समाज को चैतन्यता देता है। धर्म में पाखंड नहीं, सेवा और परमार्थ का भाव होना चाहिए। भारतीय संस्कृति परंपराओं और मर्यादाओं से जुड़ी हुई है। राम और कृष्ण के बिना भारत भूमि की कल्पना भी संभव नहीं है। रूक्मणी विवाह नारी के प्रति भगवान की करूणा, कृपा और मंगल भाव का प्रतीक है।
ये दिव्य विचार श्रीधाम वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंदजी ने व्यक्त किए। वे रेसकोर्स रोड खेल प्रशाल के सामने स्थित ‘अनंत’ परिसर में समाजसेवी ब्रम्हलीन बालकिशन-सूरजदेवी गोयल की पुण्य स्मृति में चल रही संगीतमय भागवत कथा में रूक्मणी विवाह प्रसंग का वर्णन कर रहे थे। कथा के दौरान कृष्ण-रूक्मणी विवाह का उत्सव भी गरिमापूर्ण माहौल में मनाया गया। जैसे ही कृष्ण और रूक्मणी ने एक-दूजे को वरमाला पहनाई, मनोहारी भजनों पर कथा पांडाल में मौजूद श्रद्धालु थिरक उठे। भक्तों ने पुष्पवर्षा की। कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी टीकमचंद गर्ग, बृजकिशोर गोयल, श्याम अग्रवाल मोमबत्ती, सुभाष गोयल बजरंग, राधेश्याम शर्मा गुरूजी, मुकेश अग्रवाल, अनिल राठी, योगेश संघवी, प्रकाश नाहर आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। आरती में राजेश चेलावत, सुरेंद्र संघवी सहित अतिथियों ने भाग लिया। मेहमानों की अगवानी संयोजक अरूण-ममता गोयल ने की। कथा में साध्वी कृष्णानंद ने भी अपने विचार रखे। जिला प्रशासन की गाइडलाइन के अनुसार कथा स्थल पर सेनेटाइज्रर, मास्क एवं सोशल डिस्टेंस का पूरी तरह पालन किया जा रहा है।
स्वामी भास्करानंद ने कहा कि भगवान को अर्पित करने के लिए हमारा मन ही पर्याप्त है क्योंकि भगवान हमारा निश्छल मन ही चाहते हैं, उन्हें हमारे वैभव और तन-धन से कोई मतलब नहीं। अपने मन को यदि हम एक फूल की तरह सुंदर निर्मल और सुगंधित बना लें तो भगवान की प्रसन्नता के लिए यही पर्याप्त है। दुनिया को हमारा धन चाहिए लेकिन भगवान को केवल मन ही चाहिए। दुनिया स्वार्थी है लेकिन हमारे कृष्ण सारथी हैं जो जीवन की अंतिम यात्रा तक हमारी गाड़ी को चलाते हैं। विवाह हमारी संस्कृति में सबसे श्रेष्ठ संस्कार माना गया है।

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