मरीजों में अपने परिजनों की छवि देखकर उपचार करें चिकित्सक – राज्यपाल

  
Last Updated:  March 29, 2023 " 10:31 pm"

एक सप्ताह देश के नाम कार्यक्रम का इंदौर में समारोहपूर्ण समापन।

इंदौर : देश के विभिन्न हिस्सों से आए चिकित्सा के विद्यार्थियों ने झाबुआ में एक सप्ताह के लिए स्वयं को समाज की सेवा में समर्पित किया। समाज सेवा के विभिन्न प्रकल्पों की सक्रिय सहभागिता से “एक सप्ताह देश के नाम” कार्यक्रम में उन्होंने झाबुआ के वनवासी अंचल में रह कर नए अनुभव लिए और जीवन को सही अर्थों में समझा।

सेवांकुर के बैनर तले आयोजित इस सेवा सप्ताह का समापन इंदौर के रवींद्र नाट्यगृह में मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल के मुख्य आतिथ्य में हुआ।उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों से आए इन मेडिकल विद्यार्थियों व आयोजक संस्थाओं के प्रयास को सराहा और साधुवाद दिया।

समापन समारोह में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मध्य क्षेत्र संचालक अशोक सोहनी, पश्चिम क्षेत्र के संचालक डॉ. जयंतीभाई बाड़ेसिया, डॉ.अशोक खंडेलवाल, डॉ.राजेश पंवार, डॉ. किरण आल्हाट और डॉ. आरती रोजेकर भी अतिथि के बतौर मौजूद रहे।

जीवन कितना जिया ये महत्वपूर्ण नहीं, कैसे जिया ये महत्वपूर्ण।

इस मौके पर अपने संबोधन में राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने कहा कि जीवन कितना जिया यह महत्वपूर्ण नहीं है, जीवन कैसे जिया यह महत्वपूर्ण है। सेवा भाव से चिकित्सक जीवन की सम्पूर्णता को प्राप्त करें। अपने यहाँ आने वाले मरीज़ को देखें तो मन में यह भाव जागृत हो कि वे हमारे परिजन हैं। उनमें माँ-पिता, भाई-बहन की छवि देखें।

सेवांकुर भारत के तहत देश के विभिन्न हिस्सों से आए सेवाभावी वैद्यकीय विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने आगे कहा कि शिक्षा और सेवा का अनूठा संगम सेवांकुर के इस कार्यक्रम में देखने को मिल रहा है। शिवगंगा संस्था के मार्गदर्शन में तीन सौ वैद्यकीय विद्यार्थियों ने जिस तरह से झाबुआ में एक सप्ताह तक रह कर ग्रामीणों की सेवा सुश्रुषा और चिकित्सा की है, वे निश्चित ही साधुवाद के हक़दार हैं।

आदिवासी इलाकों में सिकलसेल एनीमिया की भयावहता से कराया परिचय।

राज्यपाल श्री पटेल ने कहा कि बीते दिनों उन्होंने झाबुआ में आयोजित हलमा कार्यक्रम में भाग लिया था। हलमा अपनी भूमि के प्रति अपना योगदान देने की एक अद्भुत और पावन परंपरा है। उन्होंने वनवासी अंचल में सिकलसेल एनीमिया की भयावहता से सभी को अवगत कराया।उन्होंने गुजरात में 4 साल की राधा और बारह साल की सुधा नाम की दो बहनों की सिकल सेल एनीमिया से अकाल मौत का उदाहरण देते हुए कहा कि सिकलसेल के प्रति व्यापक जागरूकता लायी जाना ज़रूरी है।मंगूभाई ने कहा कि उन्हें इस बात का संतोष है कि मध्यप्रदेश के राज्यपाल के बतौर उन्होंने इस दिशा में कार्य प्रारंभ किया है। प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों ने पाँच-पाँच गांवों को गोद लिया है। वे सिकलसेल एनीमिया के प्रति जागरूकता लाने और ऐसे मरीज़ों को चिन्हित करने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

विपदाओं से लड़ने में अग्रणी रहा है आदिवासी समाज।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अशोक सोहनी ने कहा कि वनवासी अंचल में रहने वाले बंधु संपूर्ण समाज के अभिन्न अंग हैं। यह एक ऐसा वर्ग है जो सुविधाओं से वंचित रहते हुए भी शौर्य साहस और पराक्रम से समाज के संकटों और समय-समय पर आई विपदा से लड़ने में सदैव अग्रणी रहा है। उन्होंने जनजातीय समाज के जीवन और संस्कृति की सूक्ष्म विवेचना प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि सेवांकुर के इस सेवा भाव से परिपूर्ण प्रकल्प से एक नव सृजन होगा और देश के अन्य हिस्सों में भी इसका विस्तार होगा।

डॉ. जयंतीभाई ने अपने उद्बोधन में अभियान के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि समाज के अनेक वर्ग अभी भी ऐसे हैं जिन्हें समृद्ध वर्ग की सेवा की ज़रूरत है।

विद्यार्थियों ने साझा किए अपने अनुभव।

कार्यक्रम में एक सप्ताह देश के नाम आयोजन के प्रतिभागी रहे देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के विद्यार्थियों ने अपने अनुभवों को साझा किया। सांगली की शिवानी चौहान, मेडिकल कॉलेज धुले के चिन्मय पाटिल, इंदौर की हर्षिता निंगवाल, नांदेड की कस्तुरी ब्रह्मे, आँध्रप्रदेश के डॉ. श्रीनिवास गुंडू, बनारस के पार्थसारथी चतुर्वेदी ने झाबुआ शिविर और गांवों में भ्रमण के बारे में अपने भावों से सभी को अवगत कराया। मुंबई के अथर्व और नंदुरबार के रोहन ने “मन समर्पित, तन समर्पित और यह जीवन समर्पित” के ओजपूर्ण गायन से उपस्थित दर्शकों को भावविभोर किया। कार्यक्रम के अंत में डॉ. राजेश पवार ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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