भारतीय पत्रकारिता महोत्सव का तीसरा दिन।
भविष्य की मीडिया शिक्षा पर हुआ रोचक टॉक शो।
इन्दौर : स्टेट प्रेस क्लब, इन्दौर द्वारा आयोजित पत्रकारिता महोत्सव के तीसरे (समापन दिवस) दिन भी बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी और शोधार्थी छात्र रवींद्र नाट्यगृह में एकत्रित हुए और प्रिन्ट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया और सोशल मीडिया से जुड़े विषयों पर बेबाकी के साथ चर्चा की।
संस्था अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल और संयोजक सुदेश तिवारी ने बताया कि महोत्सव के तीसरे दिन के पहले सत्र के मंथन कार्यक्रम में भविष्य की मीडिया शिक्षा विषय पर रोचक टॉक शो हुआ, जिसमें कई महत्वपूर्ण बातें निकलकर सामने आई।
देश में हो केंद्रीय मीडिया विश्वविद्यालय।
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. मानसिंह परमार ने कहा कि यह खुशी की बात है कि देश में मीडिया शिक्षा को शुरू हुए सौ बरस हो चुके हैं। आज हम सब यहां भविष्य की मीडिया शिक्षा पर खुलकर संवाद कर रहे हैं। देश में एक केन्द्रीय मीडिया विश्वविद्यालय होना चाहिए, क्योंकि मीडिया का हर क्षेत्र में विस्तार होता जा रहा है। रोजगार के नए-नए क्षेत्र पैदा हो रहे हैं। जब मेडिकल, चिकित्सा और प्रबंध शिक्षा के लिए एक विद्यापीठ हो सकता है तो मीडिया के लिए केन्द्रीय मीडिया विश्वविद्यालय क्यों नहीं हो सकता। डॉ. परमार ने आगे कहा कि हमारी यहां की मीडिया शिक्षा के पाठ्यक्रम में एकरूपता नहीं होने से कई तरह के भ्रम पैदा होते हैं। कहीं पर एक वर्ष का स्नातक डिप्लोमा है तो कहीं तीन वर्ष का डिग्री कोर्स। कहीं पर किताबी ज्ञान कम दिया जाता तो कहीं प्रायोगिक शिक्षा पर ध्यान कम। 21वीं सदी में जिस तरह से तकनीक का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है, ऐसे में यह जरूरी है कि मीडियाकर्मियों को प्रौद्योगिकी का ज्ञान मीडिया संस्थान में दिया जाए। साथ ही मीडिया शिक्षकों को भी प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
पत्रकारिता संवेदनशील हो।
वरिष्ठ पत्रकार बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि पत्रकार वह है जो सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाता है। उसकी पत्रकारिता का मकसद आम आदमी के साथ-साथ किसी की आँख के आंसू पोछना होना चाहिए। पत्रकारिता में मानवीय संवेदनाओं को शक्ति सम्पन्न बनाना जरूरी है। पत्रकार जन्मजात नहीं होता। उन्हें प्रशिक्षित करना पड़ता है। पत्रकारिता ना कोई पेशा है और ना कोई व्यवसाय। यह तो एक तरह की साधना है। हमारे पूर्व के पत्रकारों के जीवन पर दृष्टिपात करेंगे तो पता चलेगा कि उन महान पत्रकारों ने पत्रकारिता की साधना की और उसे जिया। पत्रकारिता जब तक मूल्यपरक और सैद्धांतिक नहीं होगी तब तक वह अधूरी है। उन्होंने आगे कहा कि आने वाले दिनों में मीडिया में तकनीक का प्रभाव बहुत तेजी से बढ़ेगा। ऐसे में हमे अधिक चौकन्ना रहने की जरूरत है, क्योंकि जिस तरह से फेक न्यूज का बाजार बढ़ता जा रहा है और अफवाह फैलाने वाली खबरें बढ़ रही है, ऐसे में पत्रकार का धर्म बनता है कि वह पत्रकारिता में तकनीक का इस्तेमाल बहुत सावधानी से करें।
खबरें अच्छी होने के साथ मनोरंजक भी हों।
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. पुष्पेन्द्र पालसिंह ने कहा कि पत्रकारिता शिक्षा की शुरुआत 1920 में भले ही मद्रास में एक विभाग में शुरू हुई हो, लेकिन उसका विस्तार चौतरफा फैल गया है। देश में 850 टी.वी. चैनल्स है, लाखों प्रकाशन है और सालाना 1000 फिल्में बनती है, ऐसे प्रतिस्पर्धा के दौर में हमें ऐसी पत्रकारिता शिक्षा की आवश्यकता है जो पाठकों को अच्छी खबरें देने के साथ उनका स्वस्थ मनोरंजन भी कराए, वरना दर्शकों के हाथ में रिमोट है, जिसे चैनल बदलने में देर नहीं लगती। फील्ड में रहकर जो पत्रकारिता सीखने को मिलती है, उसका कोई जवाब नहीं है, केवल डिग्री प्राप्त करना ही पत्रकारिता नहीं है। हमें अच्छे पत्रकार ही नहीं चाहिए, बल्कि अच्छे क्रिएटिव थिंकर और क्रिएटिव रायटर भी चाहिए। देश में ऐसे लोगों की बहुत जरूरत है।
गूगल, व्हाट्सएप चलाने भर से कोई पत्रकार नहीं बन सकता।
वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्रा ने अपने धारा प्रवाह और प्रभावी संबोधन में कहा कि गूगल जर्नलिस्ट ना देश का भला कर सकते हैं और ना पत्रकारिता का। वाट्सअप यूनिवर्सिटी के कई खतरें हैं। यह नई पीढ़ी जितनी जल्दी समझ लें उतना ही अच्छा है। ग्राउण्ड में जाए बगैर पत्रकारिता सीखी नहीं जा सकती। अच्छे पत्रकार को अपने सामाजिक दायित्व पता होना चाहिए। केवल इंटरनेट चलाने या वाट्सअप चलाने से कोई पत्रकार नहीं बन सकता, जब तक एक पत्रकार की खबरों में पैनापन और नयापन नहीं होगा तब तक ऐसी खबरों को कोई नहीं पढ़ेगा। श्री मिश्र ने चेताया कि मीडिया में पूंजी का गठजोड़ खतरनाक है। पत्रकारिता का भी कोरोना काल चल रहा है, जैसे खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को बाहर कर रही है वही स्थिति अब पत्रकारिता में भी आती जा रही है। नए पत्रकार को चाहिए कि जो खूब अध्ययन करें , स्पॉट रिपोर्टिंग करें, सबकुछ गूगल पर नहीं मिलेगा।
संवेदनशील क्षेत्रों में रिपोर्टिंग का लें प्रशिक्षण।
वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी कुमार (जम्मू) ने कहा कि संवेदशील क्षेत्रों में रिपोर्टिंग करना कठिन है। इसका प्रशिक्षण पत्रकारों को पहले लेना चाहिए। पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है जिसमें हमें रोज एक नई चुनौती का सामना करना पड़ता है। हम रोज नया सीखते हैं। आज भी नए पत्रकारों को तीन कृषि कानूनों के बारे में ठीक से जानकारी नहीं है।वो किसान आंदोलन पर रिपोर्ट कर रहे हैं। ऐसे में उनसे आप क्या अपेक्षा करेंगे। प्रिन्ट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए आज सोशल मीडिया चुनौती बनता जा रहा है, क्योंकि एक वर्ग ऐसा है जो सोशल मीडिया में ही इंटरेस्ट रखता है। इसे भी समझने की जरूरत है। न्यूज चैनलों पर भाषा का घाल-मेल भी समझ से परे हैं। ऐसे में नई पीढ़ी के मीडिया स्टूडेंटों को सही बातें बताना जरूरी है।
सामाजिक सरोकारों से जुड़े पत्रकारिता।
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. विकास दवे ने कहा कि इन्दौर उस शहर का नाम है जिसने स्वास्थ्य पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता और बाल पत्रकारिता में अपनी पताका फहराई है। आज अखबारों में सबकुछ पढऩे को मिलता है, लेकिन बालमन के बारे में कुछ नहीं। ऐसे में अच्छे बच्चे कहां से तैयार होंगे। संयोगवश इन्दौर में 20 वर्ष पूर्व स्थापित देवपुत्र बाल शोध संस्थान में बाल पत्रकारिता पर अच्छा काम हो रहा है। अभी तक 73 विद्यार्थी पी.एच.डी. कर चुके हैं। अत: पत्रकारिता में जितना अधिक शोध होगा उतना ही वह और नखरेगी। उन्होंने आगे कहा कि नए पत्रकारों को भाषा का ज्ञान होना जरूरी है। कम से कम वे अपनी मातृ भाषा को सही रूप में लिखना और बोलना सीख लें। पत्रकारिता जबतक सामाजिक सरोकारों से जुड़ी नहीं होगी वह निष्प्रभावी रहेगी।
मंच पर उद्योगपति राजेश बाहेती विशेष रूप से उपस्थित थे। आकाश चौकसे ने कहा कि स्टेट प्रेस क्लब, इन्दौर में बहुत जल्द पत्रकारिता का शोध संस्थान प्रारम्भ करने जा रहा है।
अतिथि स्वागत गौरव चतुर्वेदी, कमल कस्तूरी, प्रमोद राघवन, अजय भट्ट, गोपाल जोशी, पियुष भट्ट, नवनीत शुक्ला, गौरीशंकर दुबे ने किया। कार्यक्रम का संचालन आकाश चौकसे और अर्पण जैन ने किया। अंत में आभार माना नवनीत शुक्ला ने। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा, अशोक वानखेड़े, शीतल पी. सिंह, जे.पी. दिवान, आलोक वाजपेयी, विजय गुंजाल, संजीव आचार्य, राजेश बादल, मनोहर लिम्बोदिया, प्रवीण जोशी, मनस्वी पाटीदार, शीतल राय, मीना राणा शाह, सरिता शर्मा, राकेश द्विवेदी, श्रीमती लीना खारीवाल, राजेन्द्र वाघमारे सहित बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।