( राज राजेश्वरी क्षत्रिय )
आओ तुम्हे गाँव दिखाती हूँ
बड़े बड़े शहरों में रहने वाले मेरे दोस्तों ने जब मुझे अपने शहर बुलाया तो मैंने कहा
आउंगी तो मैं जरुर, पर पहले तुमको बुलाती हूँ
शहरों की चकाचौंध भूल जाओगे
मेरे गाँव से तुम्हे ज़रा नज़दीक से मिलवाती हूँ
मेरे पास आओ मैं तुम्हे गाँव दिखाती हूँ ।
कभी कभार,
सनराइज और सनसेट पॉइंट्स में जाकर
खुश हो जाने वालों
घर के आँगन से ही रवि की सौम्य छवि का दर्शन मैं करवाती हूँ
मेरे पास आओ
मैं तुम्हे गाँव दिखाती हूँ ।
जॉगर्स पार्क में,
एक्युपंचर वाले जूते पहनकर
सेहत बनाने वालों
खेतो की पगडंडियों में तुम्हें चलवाती हूँ
मेरे पास आओ
मैं तुम्हे गाँव दिखाती हूँ ।
बहुत हुआ डिब्बों में बंद
दवाओं से पके फल खाना
पेड़ों में पके टपके का रस तुम्हे पिलवाती हूँ
मेरे पास आओ
मैं तुम्हे गाँव दिखाती हूँ ।
एयरकंडीशन कमरों में बैठकर,
बनावटी ठंडक में राहत पाने वालों
पीपल की ठंडी छाव और मदमस्त बयारों से मिलवाती हूँ
मेरे पास आओ
मैं तुम्हे गाँव दिखाती हूँ।
पिज़्ज़ा, बर्गर, पेटिस में डूबे,
नकली स्वाद पर वाह कहने वालों
कन्डो में पकी अन्गाकड़ रोटी, घी लगा चखवाती हूँ
मेरे पास आओ
मैं तुम्हे गाँव दिखाती हूँ ।
व्यावहारिकता को भूलते लोगों के बीच
सच्ची भावनाओ को ढूंढने वालों,
बूढी काकी, प्यारी दाई, बाबूजी और अम्मा का
प्यार तुम्हे दिलवाती हूँ
मेरे पास आओ
मैं तुम्हे गाँव दिखाती हूं ।
( कविता की लेखिका छत्तीसगढ़ से ताल्लुक रखती हैं। वे अच्छी पत्रकार भी हैं। इंदौर में उन्होंने रिपोर्टिंग की है। )