कीर्ति राणा
इंदौर : वामपंथी विचारधारा वाले कवि राजकुमार कुम्भज थोक में इतनी कविताएं कब लिख लेते हैं कि तीन साल से भी कम समय में 33वां काव्य संग्रह आ जाए।अपनी बेजोड़ कविताओं के कारण तो उनकी पहचान है ही, इंदौर जो उनके नाम से भी पहचाना जाता है तो उसकी एक बड़ी वजह है उनका पद्य के साथ गद्य में भी साधिकार और निरंतर लिखते रहना यही वजह है कि इतना अधिक लिखने, धड़ाधड़ मार्केट में काव्य संग्रह आने से साहित्य जगत में एक बड़ा खेमा ऐसा भी है जो उन से मन ही मन ईर्ष्या रखता है और अपनी इस डाह के चलते वह कुम्भज के लेखन को आसानी से नकारने की तत्परता दिखाता है।कुम्भज जैसा न लिख पाने वाले रचनाकर्मियों के लिए खुशी का बहाना भी यही रहता है कि उन्होंने कुम्भज के लिखे को नकारने का साहस दिखाया है।
हाल ही में उनका 33 वां काव्य संग्रह ‘था थोड़ा लोहा भी था’ प्रकाशित हुआ है।जिस तरह कवि नीरज बीमारी की हालत में भी माइक सामने आते ही तरोताजा हो जाते थे, कुछ ऐसा ही कुम्भज के साथ भी है।घुटनों के दर्द की वजह से वे आसानी से चल फिर नहीं सकते। इस दर्द की वजह से अन्य सहायक बीमारियों ने भी कवि से दोस्ताना कर लिया है।पहली कविता भी कवि को जन्मे दर्द से ही जन्मी थी।शायद यही दर्द एक के बाद एक कविता संग्रह का कारण भी बन गया है कुम्भज के लिए।
उनके इस 33वें काव्य संग्रह का लोकार्पण इंदौर रायटर्स क्लब की बैठक में इंदौर कॉफी हाउस में किया गया। उनकी कविताओं पर जवाहर चौधरी, अश्विन जोशी, सुभाष खंडेलवाल डॉ स्वरूप बाजपेई, चंद्रशेखर बिरथरे नरेंद्र शर्मा शशिकांत गुप्ते, नवनीत शुक्ला, मनोहर लिंबोदिया आलोक शर्मा, अर्जुन राठौर, शैलेश वाणी ने अपने विचार रखे।कुंभज जी ने अपनी चुनिंदा रचनाओं का पाठ भी किया।