कानून बनने के पहले ही विरोध की बात ठीक नहीं।
‘सेवा सुरभि’ एवं इंदौर प्रेस क्लब द्वारा आयोजित संवाद में शहर के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों की बेबाक राय।
इंदौर : समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर चर्चा करने का यही सही समय है। इस मुद्दे को किसी धर्म विशेष अथवा पार्टी से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। इससे किसी भी धर्म का नुकसान नहीं होगा। अभी हम इस मुद्दे पर गुण, दोष के आधार पर विचार कर सकते हैं। केन्द्र सरकार समान नागरिक संहिता का जो मसौदा लेकर आएगी उसका रूप, स्वरूप क्या होगा, इस पर पहले से कोई धारणा बना लेना अथवा इसका विरोध करना सही नहीं होगा। ये सार है उस संवाद का,जिसका विषय था ‘समान नागरिक संहिता।’ ‘संस्था सेवा सुरभि’ और इंदौर प्रेस क्लब ने मिलकर रविवार शाम प्रेस क्लब के राजेन्द्र माथुर सभागृह में इस बहुचर्चित विषय पर शहर के प्रख्यात विधि विशेषज्ञों, शिक्षाविद, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि एवं सामाजिक क्षेत्र से जुड़े गणमान्य लोगों को आमंत्रित कर उनकी राय जानने का प्रयास किया।
संवाद का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने प्रारंभ में समान नागरिक संहिता पर केन्द्रित इस आयोजन की महत्ता बताई। विषय प्रवर्तन वरिष्ठ पत्रकार अमित मंडलोई ने किया और कहा कि विविधता ही हमारी एकता है, जहां अलग-अलग परंपरा, बोली, भाषा, पहनावा है, वहां समान नागरिक संहिता की बात करना चुनौतीभरा है। हिन्दू धर्म में विविधता है तो मुस्लिम समाज में भी कई फिरके हैं। बीजेपी इसे इसीलिए ला रही है, क्योंकि यह उसका एजेंडा है। कुछ लोगों को लगता है कि समान नागरिक संहिता लागू हो गई तो अल्पसंख्यक काबू में आ जाएंगे या सरकार के सामने सरेंडर कर देंगे। हालांकि गोवा में आज भी समान नागरिक संहिता लागू है।
अतिथियों का स्वागत संस्था सेवा सुरभि के संयोजक ओमप्रकाश नरेड़ा, अतुल शेठ, कुमार सिद्धार्थ, अरविंद जायसवाल, अनिल मंगल, प्रेस क्लब उपाध्यक्ष प्रदीप जोशी आदि ने किया।
अतिथि वक्ताओं में पूर्व राज्यपाल एवं न्यायमूर्ति वी.एस. कोकजे, पद्मश्री जनक पलटा, शहर काजी डॉ. इशरत अली, इंदौर डायोसिस के बिशप चाको, अभ्यास मंडल के रामेश्वर गुप्ता एवं शिवाजी मोहिते, इंदौर उत्थान अभियान के अध्यक्ष अजीतसिंह नारंग, वरिष्ठ अभिभाषक अजय बागड़िया, पूर्व उप महाधिवक्ता अभिनव धनोतकर, अभिभाषक शन्नो शगुफ्ता खान, शिक्षाविद एवं उद्योगपति अशोक बड़जात्या, आदिवासी संगठन के प्रतिनिधि पोरलाल खरते शामिल थे, जिन्होंने पूरी बेबाकी के साथ अपनी राय रखी।
ये रखे गए विचार :- 👇
बिशप चाको ने कहा कि अभी से कोई धारणा बनाना ठीक नहीं होगा। पता नहीं आगे क्या होगा, यह अभी से आंकलन करना उचित नहीं है। अभिभाषक अजय बागड़िया ने कहा कि यूसीसी मोदी सरकार का राजनीतिक शगूफा है। जब अपराधिक कानून सीआरपीसी देश के राज्यों में अलग-अलग है तो इस स्थिति में समान नागरिक संहिता की बात बेमानी है। सामाजिक कार्यकर्ता अजीतसिंह नारंग ने कहा कि सिख धर्म में सबसे बड़ा राष्ट्र धर्म है। जब भी राष्ट्र पर संकट आया सिखों ने बलिदान देने में देर नहीं की। गुरूनानक देव ने भी मानव धर्म की बात की है। उन्होंने कहा कि आज समान नागरिक संहिता की जरूरत है। उद्योगपति अशोक बड़ाजात्या ने कहा कि कानून बनने के पहले ही उसका विरोध करना ठीक नहीं है। विवाह, तलाक और उत्तराधिकार जैसी तीन बातें यूसीसी में प्रमुख है। हम धर्म सापेक्ष हैं, निरपेक्ष नहीं। अभिभाषक शगुफ्ता खान ने कहा कि कुरान शरिया 1400 साल पुराना है। कुरान की कई आयतें हैं, उनसे छेड़छाड़ नहीं कर सकते। सभी धर्मों के प्रमुखों को बैठकर इस पर चर्चा करना चाहिए। यदि किसी राज्य के पास शक्ति है तो वह इसे तुरंत लागू कर देगा। समान नागरिक संहिता संविधान के अनुसार अपेक्षित है, लेकिन इसे धर्मावलंबियों पर छोड़ देना चाहिए। आदिवासी समाज के पोरलाल खरते ने कहा कि आदिवासी समाज में आज भी लोकतंत्र है और महिला-पुरुष विवाह के लिए स्वतंत्र है। आदिवासी समाज प्रकृति और संस्कृति से अधिक जुड़ा है। यह समाज चाहता है सबको हवा, पानी और अनाज मिले तथा आर्थिक भेदभाव समाप्त हो। अभ्यास मंडल के शिवाजी मोहिते ने कहा कि नदियों की सफाई, पर्यावरण, मास्टर प्लान, आर्थिक मंदी और मंहगाई पर चर्चा करने के बजाए हम समान नागरिक संहिता पर चर्चा कर रहे हैं। इससे लगता है कि ये विषय किसी को खुश करने के लिए रखा गया है, जिसकी कोई जरूरत नहीं। उद्योगपति प्रमोद डफरिया ने कहा कि सबको न्याय मिलना चाहिए, सामाजिक सुधार होना चाहिए और लिंग भेद नहीं होना चाहिए। अग्रवाल समाज की प्रतिभा मित्तल ने कहा कि कोई भी संहिता बने, महिलाओं के सम्मान की पूरी रक्षा होनी चाहिए। किशोर कोडवानी ने कहा कि यह चर्चा गलत समय पर हो रही है। मनुष्य के हाथ में नहीं की वह किस जाति या परिवार में पैदा हो।
समान नागरिक संहिता को धर्म के चश्मे से न देखें।
संवाद का समापन करते हुए निष्कर्ष के रूप में न्यायमूर्ति वी.एस. कोकजे ने कहा कि जब एक देश एक विधान की बात हो रही है तो समान नागरिक संहिता पर बात क्यों नहीं होना चाहिए। 1948 से यह विषय लंबित है, लेकिन इस पर चर्चा करने और विधेयक बनाने का यही सही समय है। हर कानून को धर्म के चश्मे से देखना बंद करना होगा। धर्म को हमे समझने की जरूरत है। सबकी आस्था अलग-अलग है। समान नागरिक संहिता की बात डॉ. अम्बेडकर और के.एस. मुंशी ने भी की है। तलाक मुस्लिम समाज में होते हैं, हिन्दुओं में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी, लेकिन बाद में बन गई। हम एक-दूसरे से सीखते हैं फिर इतना विरोध क्यों। बाहर के देशों में तो हम अपने धर्म की रक्षा की बात नहीं करते, लेकिन अपने देश में खूब हायतौबा मचाते हैं। अगर समान नागरिक संहिता विधेयक पास नहीं हुआ तो केन्द्र सरकार अलग-अलग राज्यों में इसे पास करवाकर अपना एजेंडा पूरा कर सकती है। संचालन अतुल शेठ ने किया और आभार कुमार सिद्धार्थ ने माना।