मन को समझने और ठोकरों से बचने वाली आत्मकथा है मेरा मन – डॉ. दवे।
मन से लिखी ‘मेरा मन’- नागर ।
इन्दौर : ’सहज भाव में रहने वाले डॉ.नरेंद्र नागर ने अपनी पुस्तक मेरा मन को पूरे मन से लिखा है। यह पुस्तक उनके अनुभव और मनोभाव का संग्रह है।’ यह बात रविवार की शाम डॉ. नरेन्द्र नागर की पुस्तक ’मेरा मन’ के विमोचन समारोह में अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर ने कही।
मातृभाषा उन्नयन संस्थान व संस्मय प्रकाशन के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित इस पुस्तक विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ.विकास दवे और विशिष्ट अतिथि मध्य प्रदेश नागर ब्राह्मण समाज के प्रांताध्यक्ष केदार रावल रहे।
सर्वप्रथम सरस्वती वंदना मणिमाला शर्मा ने पेश की। अतिथि स्वागत नितेश सेतवाल, राजकुमार जैन, राजेन्द्र नागर, राम गुर्जर, सुमित शर्मा ने किया। स्वागत उद्बोधन मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने दिया।
मेरा मन, मन को समझने वाली आत्मकथा है।
डॉ. विकास दवे ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘डॉ. नागर साहब की पुस्तक ‘मेरा मन’ तो मन को समझने और ठोकरों से बचने वाली आत्मकथा है। इससे प्राप्त अनुभवजन्य दृष्टांतों से समाज को शिक्षा लेनी चाहिए।’
केदार रावल ने कहा कि ‘ सौम्य व्यक्तित्व के धनी डॉ. नागर समाज जीवन में भी प्रभावकारी और प्रेरक हैं।’
आयोजन का संचालन प्रो. अखिलेश राव ने किया। आभार मुकेश तिवारी ने माना।
आयोजन में डॉ. कमल हेतावल, अश्विनी दुबे, राजेन्द्र कोपरगांवकर, सरला मेहता, माधुरी नागर, रंजना नागर, श्रीमती मिश्रा, आकाश यादव, डॉ. तेज़ प्रकाश व्यास, गोपाल गर्वित, अशोक गौड़, संदीप जैन, नवीन मौर्य, आदि मौजूद रहे।