अपने बच्चों से मातृभाषा में ही करें बात, परिसंवाद में बोले वक्ता

  
Last Updated:  March 1, 2022 " 07:06 pm"

इंदौर : दक्षिण- मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र नागपुर और मराठी साहित्य अकादमी भोपाल के संयुक्त बैनर तले मराठी भाषा गौरव दिवस के उपलक्ष्य में परिसंवाद का आयोजन किया गया। स्थानीय प्रीतमलाल दुआ सभागृह रखे गए परिसंवाद का विषय था ” मराठी भाषा आज आणि उद्या ” परिसंवाद के मुख्य अतिथि थे उस्ताद अल्लाउद्दीन खाँ संगीत, कला अकादमी के निदेशक जयंत भिसे, जबलपुर के लेखक और वक्ता प्रशांत पोळ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।

मातृभाषाओं के लिए खतरे की घंटी।

मुंबई से पधारे प्रोफेसर नरेंद्र पाठक ने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं की तरह मराठी को लेकर भी खतरे की घंटी बज चुकी है। बच्चों को मातृभाषा मराठी मे अध्ययन कराना संभव न हो पर घर में उनसे अपनी मातृभाषा में ही वार्तालाप करना चाहिए। उन्हें मराठी साहित्य से परिचित कराएं। मातृभाषा और संस्कृति के संस्कार बच्चों पर होना आवश्यक है, तभी हम अपनी भाषा को बचा पाने में सफल होंगे।

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी मातृभाषा के प्रति लगाव बरकरार।

पुणे से आए प्रोफेसर मिलिंद जोशी ने परिसंवाद में कहा कि मातृभाषा मराठी को लेकर जितनी चिंताजनक स्थिति शहरों में नजर आती है, उतनी गांवों में नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपनी मातृभाषा में ही बोलना, लिखना, पढ़ना पसंद करते हैं। उनके बच्चे अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। प्रोफेसर जोशी ने मराठी भाषा को रोजगार से जोड़ने का सुझाव दिया।

भाषा पर प्रभुत्व जरूरी।

मुंबई से पधारी पत्रकार अश्विनी मयेकर ने कहा पत्रकारिता में कई नए अयाम जुड रहे हैं। ऐसे में भाषा के जानकार लोगो की माध्यमो को बेहद जरूरत है। जिन लोगो को पत्रकारिता में कॅरियर करना है, उनका अपनी मातृभाषा पर प्रभुत्व होना आवश्यक है।

सोशल मीडिया ने बढ़ाए अवसर।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रशांत पोळ ने कहा कि हालात उतने बुरे नहीं हैं, जितना कहा और समझा जा रहा है। सोशल मीडिया पर भारतीय भाषाओं का प्रयोग बढा है। स्टोरी टेल एप जैसे माध्यम आने से बड़ी संख्या में युवा मराठी भाषा, साहित्य और संस्कृति से रूबरू हो रहे हैं।इसी के साथ मराठी फिल्म, सीरिअल्स और वेब सीरीज में अच्छे कंटेंट राइटरों की मांग बढ़ी है। मराठी 2001 में भारत की चौथे नंबर की भाषा थी जो 2011 में तीसरे नंबर की हो गई है। इससे पता चलता है कि मातृभाषा को लेकर हालात गंभीर नहीं हैं।
परिसंवाद का संचालन मोहन रेडगावकर ने किया। आभार पुरुषोत्तम सप्रे ने माना। बडी संख्या में सुधि श्रोता परिसंवाद को सुनने मौजूद रहे।

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