उत्तर भारत में भूकंप, जानिए कैसे खतरा अभी टला नहीं

  
Last Updated:  February 7, 2017 " 06:08 am"

उत्तराखंड समेत समूचे उत्तर भारत और दिल्ली में सोमवार रात भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए। मौसम विभाग के अनुसार भूकंप का अधिकेंद्र रुद्रप्रयाग जिले में था। एनडीआरएफ की टीमों को अलर्ट पर रखा गया है।

रिक्टर पैमाने पर इसका परिमाण 5.8 मापा गया। भूकंप के झटके उत्तराखंड के सभी जिलों में महसूस किए गए। देहरादून के त्यूणी के अलावा चमोली जिले में कुछ स्थानों पर घरों में दरारें पड़ने की सूचना है। भूकंप से अभी किसी प्रकार की क्षति की जानकारी नहीं मिली है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अधिकारियों से बात कर हालात का जायजा लिया। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी भूकंप को लेकर अधिकारियों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। एनडीआरएफ की दो टीमों को भूकंप के केंद्र रुद्रप्रयाग रवाना कर दिया गया है।

10.33 बजे पहला झटका

बता दें कि उत्तराखंड में सवा दो माह के अंतराल में छठवीं बार धरती डोली है। सोमवार को भूकंप का पहला झटका 10ः33 बजे महसूस हुआ। कुछ देर बार दूसरा झटका भी महसूस किया गया। इस दरम्यान मोबाइल सेवाएं भी कुछ देर के लिए गड़बड़ा गई थीं। भूकंप के झटके न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि पड़ोसी उत्तर प्रदेश समेत अन्य स्थानों पर भी महसूस हुए।

हरियाणा-पंजाब में भी भूकंप के तेज झटके

भूकंप से पानीपत, अंबाला, करनाल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में अचानक धरती हिलने से अफरा-तफरी मच गई। घरों में सामान हिलने लगे और लोग घरों से बाहर निकल गए।

पंजाब के लुधियाना, पटियाला सहित चंडीगढ़ में भी सोमवार रात 10.35 बजे भूकंप के झटके लगे। लोग घरों से बाहर सड़कों पर निकल आए। तीन झटके लगने के बाद लोगों में अफरातफरी मच गई।

जानिए कैसे खतरा अभी टल नहीं

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की मानें तो और भी शक्तिशाली भूकंप के उत्तर भारत खासकर उत्तराखंड समेत हिमाचल प्रदेश, जम्मू एंड कश्मीर, पंजाब के क्षेत्र में आने की आशंका हर समय बनी है।

यह भूकंप आने वाले दिनों से लेकर 50 साल बाद भी आ सकता है। इसकी प्रमुख वजह है इन हिमालयी क्षेत्र की भूगर्भीय प्लेटों का लगातार तनाव की स्थिति में रहना।

संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार के मुताबिक इंडियन प्लेट सालाना 45 मिलीमीटर की रफ्तार से यूरेशियन प्लेट के नीचे घुस रही है। इससे भूगर्भ में लगातार ऊर्जा संचित हो रही है।

तनाव बढ़ने से निकलने वाली अत्यधिक ऊर्जा से भूगर्भीय चट्टानें फट सकती हैं। 2000 किलोमीटर लंबी हिमालय श्रृंखला के हर 100 किमी क्षेत्र में उच्च क्षमता का भूकंप आ सकता है। हिमालयी क्षेत्र में ऐसे 20 स्थान हो सकते हैं।

वैसे इस बेल्ट में इतनी शक्तिशाली भूकंप आने में करीब 200 साल का वक्त लगता है। अप्रैल 2015 में काठमांडू क्षेत्र में आए भूकंप को भी इस बात समझा जा सकता है। काठमांडू से 80 किलोमीटर पश्चिमोत्तर में इसी केंद्र पर 7.5 रिक्टर स्केल की तीव्रता का भूकंप 1833 में आया था।

इस लिहाज से देखें तो उत्तराखंड समेत समूचे उत्तर भारत में कभी भी विनाशकारी भूंकप आ सकता है और यह रुद्रप्रयाग में आए भूकंप से कहीं अधिक ऊच्च क्षमता का हो सकता है।

उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्य ऐसी अल्पाइन पट्टी में आते हैं, जिसमें विश्व के 10 फीसद भूकंप आते हैं। यह धरती की सतह पर मौजूद तीन भूकंपीय पट्टी में से एक है।

नेपाल भी इसी अल्पाइन पट्टी में आता है। वैसे यह पट्टी न्यूजीलैंड से होते हुए ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, अंडमान एंड निकोबार, जम्मू कश्मीर, अफगानिस्तान, भूमध्य सागर व यूरोप तक फैली है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक करीब चार करोड़ साल पहले आज जहां हिमालय है, वहां से भारत करीब पांच हजार किलोमीटर दक्षिण में था।

प्लेटों के तनाव के कारण धीरे-धीरे एशिया और भारत निकट आए और हिमालय का निर्माण हुआ। प्लेटों की इसी गति के कारण एक समय ऐसा भी आएगा कि दिल्ली में पहाड़ अस्तित्व में आ जाएंगे।

Facebook Comments

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *