कुतुबमीनार महाराजा विक्रमादित्य द्वारा निर्मित वेधशाला है..!

  
Last Updated:  January 23, 2023 " 09:32 pm"

नर्मदा साहित्य मंथन में पुरातत्वविद डॉ. धर्मवीर शर्मा ने किया दावा।

धार : नर्मदा साहित्य मंथन – भोजपर्व के दूसरे दिन की शुरुआत माँ वाग्देवी के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुई। प्रथम सत्र में “भोजशाला एक स्थापित विश्वविद्यालय” विषय पर
सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता एवं भारतीय पुरातत्व संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ धर्मवीर शर्मा ने संबोधित किया। उन्होंने कहा, हमारी समृद्धि का प्रमाण यह है कि सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भारतीय लोग मेसोंपोटामिया की सभ्यता में व्यापार करते थे। वहां मेहलुआ से लोग मेसोंपोटामिया आते थे। उनका मानना है कि ये मेहलुआ ही आज के समय का मालवा है। महाराजा विक्रमादित्य साहित्य संकलन के लिए अपने राज्य में गोष्ठी आयोजित करते थे , ये साहित्य मंथन भी इसी प्रकार का आयोजन हैं।
उन्होंने कहा कि भोजशाला ही नहीं पूरे भारत में मुग़लों ने पुरातत्व महत्व के अनेक स्मारक तोड़े और वहां मस्जिद का निर्माण किया।

कुतुबमीनार वेधशाला है..!

पुरातत्वविद डॉ. शर्मा ने अपने संबोधन में दावा किया कि कुतुब मीनार 25° दक्षिण में झुकी हुई है। इसके नीचे 64 फ़ीट का अधिष्ठान है। मीनार में 27 झरोखे हैं जिससे 27 नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता था। कुतुब मीनार महाराजा विक्रमादित्य के द्वारा बनाई गई वेधशाला है।
मुग़ल शासकों द्वारा विध्वंस करके मस्जिदें बनाई हैं। आवश्यकता हैं कि व्यापक शोध और खुदाई से तथ्य संकलित करे तो ये प्राप्त होगा कि ये मंदिर और पाठशाला, गुरुकुल, विश्वविद्यालय ही होंगे।

उन्होंने साहित्यकारों एवं विद्यार्थियों को पुरातत्व शोध के लिए आगे आने का आह्वान किया ताकि भारत का स्वाभिमान स्थापित किया जा सके।

सांस्कृतिक धरातल पर भारत को बांटने का अंग्रेजों ने किया प्रयास।

द्वितीय सत्र वरिष्ठ लेखक एवं विचारक प्रशांत पोल का रहा। उन्होंने “सांस्कृतिक धरातल पर भारत को बांटने के प्रयास” विषय पर संवाद स्थापित किया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ अंग्रेजों ने यह विमर्श स्थापित करने का प्रयास किया कि भारत कभी एक था ही नहीं। इस अंग्रेज़ी मानसिकता को स्थापित करने में वो सफल भी रहे। भिन्न भाषाओं के लोग एक साथ नहीं रह सकते इस आधार पर आगे चलकर हमारे राज्यों को बाटा गया।
समाज को तोड़ने के प्रयास लगातार जारी हैं। वर्तमान समय में भारत के विरोध में एक नैरेटिव चल रहा है कि आदिवासी हिंदू नही है। यह देश को बांटने वाले फेक्टर है। भारत को तोड़ने की साजिशें है। इन्हें सामने लाना जरूरी है। वर्तमान समय में संस्कृति की रक्षा बहुत आवश्यक हैं। युवा इसके लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं।

मानसिक गुलामी से बाहर आएं।

श्री पोल ने कहा, हम अंग्रेजी सभ्यता के मानसिक गुलाम हो रहे है। इसे बदलने की जरूरत है। भारत को तोड़ने के जो प्रयास हो रहे हैं, उनसे बचने के लिए हमे जनजागरण की आवश्यकता है।

भारत के विभाजन का प्रस्ताव लाए थे वामपंथी।

तृतीय सत्र के वक्ता ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर रहे। उन्होंने “वामपंथ का कलुष” विषय पर अपने विचार रखे।
उन्होंने कहा ब्रिटिश विचारधारा को बढ़ाने का कार्य वामपंथ ने किया हैं। भारत के विभाजन पर अधिकृत रूप से रिज़ोल्यूशन लाने का कार्य मुस्लिम लीग के बाद अगर किसी पार्टी ने किया तो वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया थी। देश के टुकड़े-टुकड़े का विचार मूलतः वामपन्थ का रहा हैं। समाज में गैर हिन्दू विचार को स्थापित करने का काम बॉलीवुड का कर रहा है। धर्म विशेष को सनातन से बेहतर दिखाना सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा है ताकि हमारे युवाओं में हिंदू धर्म के प्रति आस्था कम हो।

उन्होंने युवाओं से कहा कि भूगोल को इतिहास के पन्नों से देखना शुरू करना होगा। इस्लाम और क्रिश्चनिटी कहा-कहा कब कब आये और इन्होंने संस्कृति को कैसे खत्म किया इसके प्रमाण मिलने लगेंगे। भारत पूरे विश्व में अकेली ऐसी धरती है जिसमे सर्वधम को मानने या ना मानने का अधिकार है, यह भारत की ताक़त हैं। हम सनातन धर्म को मानने वाले हैं। हम हिंसा के रास्ते से चलने वाले लोग नही है। हम लोकतंत्र के रास्ते इस विचार धारा को उखाड़ फेकेंगे। सत्र का संचालन सिद्धार्थ शंकर गौतम ने किया।

चौथा सत्र “भारतीय संविधान -भारतीय संस्कृति का दर्पण” विषय पर केंद्रित रहा। इस सत्र के वक्ता सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संविधान विशेषज्ञ डीके दुबे थे। उन्होंने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका के निर्माण का आधार अर्थव्यवस्था हैं। इसलिए उनके संविधान आवश्यकता के अनुसार बदलते रहते हैं जबकि हमारे संविधान का निर्माण समग्र और व्यापक रूप से विचार करके ही किया गया है।
जो भारत मे रहने वाले हैं, वो हिन्दू हैं, इस विचार को लेकर राजाओं ने महर्षियों से विमर्श कर जो सूत्र स्थापित किए, उस समय के संविधान बन गए। भारत एक ऐसा देश है जहां संसार के किसी भी देश के मुकाबले सबसे ज्यादा भाषाए व प्राकृतिक संसाधन है।
भारत को एक सूत्र में बांधना किसी भी कानून का उद्देश्य होना चाहिए।
उन्होंने कहा, महाभारत काल मे भी महिला अधिकार की बात हुई है। इस तरह की बातों को आधार बनाकर संविधान में महिलाओं को लेकर कानून बनाए गए।समाज के अंदर हम अपनी जिम्मेदारियों को कैसे देखते है उसके आधार पर भारत का भविष्य तय होगा।

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