विश्व गठिया रोग दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित
कार्यक्रम में गठिया के तमाम पहलुओं पर विस्तार से डाला गया प्रकाश।
इंदौर : विश्व गठिया रोग दिवस (21अक्टूबर) के उपलक्ष्य में आर्थराइटिस एवम बोन केयर सोसायटी द्वारा गठिया रोग जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन एक निजी होटल परिसर में किया गया। कार्यक्रम में गठिया रोग के कारण, लक्षण, उपचार और बचाव पर विशेषज्ञ डॉक्टरों ने विस्तार से प्रकाश डाला। गठिया से जुड़ी आहार, तनाव, डिप्रेशन और दांतों संबंधी परेशानियों पर भी कार्यक्रम में चर्चा की गई और उनके निदान बताए गए। गठिया रोग विशेषज्ञ डॉ. अक्षत पांडे के संयोजन और संचालन में संपन्न हुए इस कार्यक्रम में आहार विशेषज्ञ डॉ. प्रिया चितले, मनोरोग विशेषज्ञ डॉ.अनुभूति उपाध्याय और दंत एवम् मुख रोग विशेषज्ञ डॉ. मिमांशा पांडे ने शिरकत कर अपनी बात रखी। डॉक्टर्स ने कार्यक्रम में मौजूद गठिया के मरीजों के सवालों का जवाब देने के साथ उनकी जिज्ञासाओं का भी समाधान किया।
गठिया रोग के लक्षण, कारण और उपचार के आधुनिक आयामों पर प्रकाश डालते हुए गठिया रोग विशेषज्ञ डॉ. अक्षत पांडे ने कहा कि आर्थराइटिस याने गठिया यूं तो कई प्रकार का होता है पर मुख्य रूप से रूमेटाइड, ओस्टियो आर्थराइटिस,गाउट, जुवेनाइल इडियोपैथिक और एंकोलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस ज्यादातर मरीजों में पाया जाता है।
ये हैं गठिया के लक्षण :-
डॉ.पांडे ने बताया कि 40 की उम्र के बाद गठिया के लक्षण उभरने लगते हैं। जोड़ों में सूजन इस समस्या का सबसे सामान्य लक्षण है। घुटने, कोहनी और उंगलियों के जोड़ों में सुबह उठने पर जकड़न महसूस होना, पैरों को मोड़ने अथवा मुट्ठी बांधने में दर्द और परेशानी होना गठिया की पहचान है। गला सुखना और आखों में रूखापन महसूस होना भी गठिया का लक्षण हो सकता है। गठिया का समय पर इलाज न किया जाए तो उसका असर जोड़ों के अलावा आंखें, लीवर, किडनी, हृदय व त्वचा पर भी हो सकता हैं। शरीर का इम्यून सिस्टम जब गड़बड़ाने लगता है, तो ये बीमारी धीरे धीरे शरीर को अपनी चपेट में ले लेती है। इस ऑटोइम्यून डिजीज में बॉडी में मौजूद हेल्दी सेल्स पर अटैक किया जाता है। इससे शरीर में सूजन की स्थिति पैदा हो जाती है।
गठिया के प्रकार :-
रूमेटाइड आर्थराइटिस
यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिससे जोड़ों में दर्द, सूजन और गर्माहट का अहसास होने लगता है।
ओस्टियो आर्थराइटिस
इस तरह के गठिया में घुटनों में दर्द और स्टिफनेस महसूस होने लगती है।
गाउट
शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने के चलते गाउट की स्थिति उत्पन्न होती है। इसमें जोड़ों में दर्द और सूजन होने लगती है।
जुवेनाइल इडियोपैथिक
जुवेनाइल रूमेटोइड गठिया आमतौर पर 16 साल से कम उम्र के बच्चों में पाया जाता है। इससे बच्चों की ग्रोथ में दिक्कत आती है और आंखों में सूजन भी रहती है।
एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस
एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस एक तरह का क्रॉनिक अर्थराइटिस है जो रीढ़ की हड्डी के कुछ हिस्सों में सूजन का कारण बनता है।
गठिया का उपचार :-
डॉ. अक्षत पांडे ने बताया कि हरतरह के गठिया का उपचार संभव है। नियमित रूप से दवाई का सेवन कर गठिया से ग्रस्त व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है।अब गठिया के उपचार हेतु कारगर दवाइयां उपलब्ध हैं।
गठिया से ग्रस्त मरीज हो जाता है तनाव और डिप्रेशन का शिकार।
मनोचिकित्सक डॉ. अनुभूति उपाध्याय ने बताया कि गठिया से ग्रस्त मरीज की दिनचर्या बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है। वह पहले की तरह अपनी लाइफ को जी नहीं पाता, महिला हो या पुरुष वो अपना रूटीन काम नहीं कर पाते, नौकरी अथवा कारोबार नहीं कर पाते हैं। इससे उनमें चिड़चिड़ापन, तनाव, अनिद्रा, उदासी, डिप्रेशन, किसी काम में मन नहीं लगना जैसी परेशानियां उभरने लगती हैं। नकारात्मक विचार आने लगते हैं और वह खुद को दूसरों पर बोझ समझने लगता हैं। ऐसी हालत में मरीज को मनोचिकित्सक की जरूरत होती है। मनोचिकित्सक उसकी काउंसलिंग करने के साथ उपचार के जरिए उसे तनाव, डिप्रेशन और नकारात्मक विचारों से उबरने में मदद करता है।
सही खानपान गठिया को नियंत्रित रखने में होता है मददगार।
आहार विशेषज्ञ डॉ. प्रिया चितले ने बताया कि गठिया के इलाज में सही खानपान की भी बड़ी भूमिका होती है। अक्सर गठिया के मरीज खानपान को लेकर भ्रांतियों के शिकार हो जाते हैं। आहार विशेषज्ञ मरीज को गाइड करता है कि उसका खानपान कैसा हो ताकि वह जल्द गठिया की बीमारी पर काबू पा सके। डॉ. चितले ने बताया कि पैकेज्ड फूड से गठिया के मरीज को दूरी बनानी चाहिए। वे घर में बना पौष्टिक भोजन करें तो बीमारी से कारगर ढंग से लड़ सकते हैं। उन्हें मौसमी सब्जियां, फल आदि समुचित मात्रा में लेना चाहिए। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए विटामिन, मिनरल्स और प्रोटीन से भरपूर खाद्य वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। इलाज के साथ खानपान सही तरीके से हो तो मरीज को बीमारी से उबरने में खासी मदद मिलती है।
दांतों पर भी पड़ता है गठिया का असर।
दंत रोग विशेषज्ञ डॉ. मीमांशा पांडे ने बताया कि गठिया का असर मरीज के दांतों व मसूड़ों पर भी पड़ता है। इसका प्रमुख लक्षण मुंह का सुखना है। इसके अलावा उंगलियों के जोड़ों में जकड़न व दर्द रहने से मरीज दांतों की सफाई ठीक ढंग से नहीं कर पाता। इससे पायरिया, कैविटी, कोचर जैसी डिजीज दातों में घर कर जाती हैं। इसकी रोकथाम व इलाज के लिए डेंटिस्ट की जरूरत पड़ती है। गठिया के साथ ही डेंटिस्ट का इलाज भी चलता है। गठिया के रोगी को चार से छह माह में एक बार डेंटिस्ट से चेकअप करवा लेना चाहिए।
कार्यक्रम में वरिष्ठ गठिया रोग विशेषज्ञ और एमजीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ. वीपी पांडे ने भी गठिया के इलाज को लेकर मार्गदर्शन दिया। गठिया के मरीजों और उनके परिजनों के साथ कई चिकित्सकों ने भी गठिया से जुड़े नवीनतम पहलुओं पर केंद्रित इस कार्यक्रम का लाभ लिया।